तिरुवारूर में रहते हुए, सुंदरर पुनः चेरमान पेरुमाल से मिलने के इच्छुक थे। वे चेर राज्य में पहुँचे। राज्य के भक्तों ने राजा को सुंदरर के आगमन की सूचना दी और बताया कि शिवकृपा से उन्होंने मगरमच्छ द्वारा खाए गए एक छोटे बालक को पुनर्जीवित किया। समाचार सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने समाचार लाने वाले भक्तों को बहुमूल्य रत्न और स्वर्ण भेट किया। उन्होंने नगर को दीपों, पुष्पों और पताकाओं से सजाया। राजा प्रसन्नता के साथ शैव संत, उनके प्राण सखा, का स्वागत करने के लिए आगे बढ़े। सुंदरर और राजा ने एक दूसरे को प्रणाम और आलिंगन किया। राजा ने तिरुवारूर के भगवान के विषय में पूछा। राजा सुंदरर को हाथी पर बिठाकर उनके लिए राजसी छत्री धर कर तिरुवंचैकलम ले आए। वाद्यों की ध्वनि से गगन गूंज उठा; स्वागत के लिए शुभ कुंभों से मार्ग सजाया गया; पुष्पवर्षा से भूमी पर कोमल दरी बन गई और दोनों मित्र हाथी पर आए। राजमहल में राजा ने सुंदरर को सिंहासन पर बैठाया और उनकी सेवा की। तद्पश्चात उन्होंने सेवकों को रत्न और आभूषण दान किए। सुंदरर ने चेर राजा के साथ रहकर अनेक मंदिरों में पन्नगभूषित ईश्वर के दर्शन किए।
एक दिन सुंदरर तिरुवंचैकलम के मंदिर में गए और “तलैक्कुत तलैमालै” पदिगम के मध्यम से उन्होंने भगवान से इस जीवन के बंधन से मुक्ति का आग्रह किया। प्रभु ने सुंदरर को अपने धाम कैलाश लाने के लिए एक श्वेत हाथी भेजा। हाथी पर सवार होते समय सुंदरर ने अपने मित्र के विषय में सोचा। चेरमान पेरुमाल को तुरंत इसका अनुभव हुआ, वे अश्व पर सवार होकर तिरुवंचैकलम पहुंचे। उन्होंने देखा कि वनतोंडर एक श्वेत हाथी पर आकाश के मार्ग से यात्रा कर रहे थें। वे रुके नहीं! उन्होंने शिव के परम मंत्र को अश्व के कर्ण में कहा और तुरन्त ही वे आकाश में उड़ने लगे। वे सुंदरर के पास पहुंचे, उनकी परिक्रमा की और साथ-साथ यात्रा की। अश्व और हाथी भगवान के पवित्र शुद्ध श्वेत पर्वत के दक्षिणी द्वार पर पहुँचे। दोनों अद्भुत भक्त नीचे उतरे और कई पर्वतों को पार करते हुए रत्नजटित द्वार तक पहुँचे। तिरु-अनुकन वायिल में, चेरमान को द्वारपालों ने रोक दिया, किन्तु उन्होंने सुंदरर को भीतर जाने दिया। मन और आत्मा को परमेश्वर में लीन करके, सुंदरर पेरुमान ने त्रिनेत्र महादेव की स्तुति की। उन्होंने प्रणाम किया और कहा कि चेर राजा, जो उनके पवित्र चरणों की पूजा करने आये थे, अभी भी द्वार पर ही खड़े थे।
भगवान ने देवताओं को चेर राजा को भीतर लाने का आदेश दिया। राजा ने विनम्रता और प्रेम के साथ प्रवेश किया, भगवान ने मंदस्मित के साथ पूछा कि वे उनके निमंत्रण के बिना कैसे आ गये। राजा ने करञ्जली बद्ध कहा कि वे आरूरर के चरणों की स्तुति करते हुए, हाथी के सामने प्रणाम करते हुए वहाँ तक आये थे और वनतोंडर की कृपा से परमेश्वर के सामने भी आ गए। "मेरी एक और प्रार्थना है", उन्होंने आगे कहा। उनकी इच्छा थी कि भगवान उनके द्वारा रचित "तिरुक्कयिलै ज्ञान उला" सुनें। प्रभु ने अनुमति दी। भक्ति और प्रेम का गीत सुनने के पश्चात, ईश्वर ने उन दोनों को अपने गणों के प्रमुख के रूप में अपनी सेवा का आशीर्वाद दिया। उन दोनों ने महादेव को प्रणाम किया और उनके पवित्र चरणों में सेवा की। चेरमान पेरुमाल ने जो तिरुवुला रचा था, उसे कैलाश में महा शास्था ने सुना और उन्होंने इसे तिरुप्पिडवूर में संसार के लिए प्रकाशित किया। शिव और उनके भक्तों के प्रति विनम्रता, प्रेम और भक्ति, जिसका चेरमान पेरुमाल नायनार ने आजीवन अनुसरण किया, वह हमारे मन में सदैव रहें।
गुरु पूजा : आडी / स्वाती या कर्क / स्वाती
हर हर महादेव
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