logo

|

Home >

devotees >

tirugnana-sambandha-nayanar-divya-charitra-bhag-10

तिरुज्ञान संबन्धर नायनार दिव्य चरित्र - भाग १० - चरम भेंट

सीरकाली का दृश्य, जहां उनके ईश्वर अपनी नित्य भ्रमर पूजित अर्धांगिनी, के साथ विराजमान हैं, ने संबन्धर के नेत्रों और मन को प्रसन्नता से भर दिया। उनकी महिमा गाते हुए, उन्होंने नगर में प्रवेश किया और ब्रह्मा द्वारा सेवित भगवान को नमस्कार किया। यह सुनकर कि तिरुज्ञान संबन्धर सीरकाली पहुंच गए थें, भगवान के अन्य सेवक, मुरुग नायनार और तिरुनिलनक्क नायनार वहाँ पहुंचे। जब वे दिव्य भक्त भगवान की महानता गाते हुए अपना समय एक साथ व्यतीत कर रहे थे, संबन्धर के पिता और अन्य बंधुजनों को लगा कि संबन्धर के लिए विवाह करने का यह उपयुक्त समय था। उन्होंने उनसे गृहस्थ के रूप में वैदिक अनुष्ठान करने के लिए विवाह करने का अनुरोध किया। किन्तु कामन्तक भगवान के सेवक ने कह दिया कि उनका ध्यान केवल महेश पर केंद्रित था, वे विवाह नहीं करना चाहते थे। उनके पिता ने एक बार पुनः अनुरोध किया। वैदीक परंपरा को बनाए रखने के उद्देश्य से संबन्धर विवाह के लिए सम्मत हो गए। संबन्धर के पिता ने अपने महान पुत्र के लिए भगवान के भक्त नम्बियाण्डर नम्बी की प्रिय पुत्री का चयन किया। वे अपने बंधुजनों के साथ नम्बियाण्डर नम्बी के नगर तिरुनल्लूर पेरुमनम गए। नम्बियाण्डर नम्बी ने दीपों, पुष्पों और फलों से शिवपादहृदयर का स्वागत किया और वरदान के रूप में विवाह प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त की। उन्होंने एक शुभ तिथि तय की और बड़े हर्षोल्लास के साथ उपक्रम प्रारंभ हो गया।

Thirugnanachambandha Nayanar - Part X (Ultimate gift - Lord shiva)

सीरकाली के मार्गों को कुंभों, दीयों, झंडों, फूलों और मोतियों की मालाओं से सजाया गया था। विवाह के समारोहों के आरंभ में अनाज उगाया गया। जलती धूप से सुगंधित धूम्र के मेघ सीरकाली में व्याप्त हो गए। उस अद्भुत विवाह में भाग लेने आये भक्तों की भीड़ का आदर सत्कार किया गया। भक्तों और बंधुजनों ने रक्षा सूत्र, जिसे वर को विवाह से पूर्व बांधा जाता है, को नगर में ले जाकर सबका आशीर्वाद लिया। उस महत्वपूर्ण दिन के प्रातः उन्होंने रक्षा सूत्र को संबन्धर की कोमल करमूल पर बांधा। वे युवा संत, जो शैवम के सत्य को पुन: स्थापित करने आये थे, अपने शुद्ध हृदय और शरीर के साथ सबसे पहले उस आदि योगी को नमस्कार करने गये जो तिरुतोणिपुरम के मंदिर में अपनी वामांगी के साथ बैठते है। उनके आशीर्वाद और चारों ओर से आए भक्तों के साथ, संबन्धर मोती की पालकी में, जो भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया था, तिरुनल्लुर पेरुमनम गए। अपनी पालकी से उतरकर वे सीधे नल्लूर पेरुमनम में भगवान के चरणों में गिर गये और उनकी महिमा गाई। ब्राह्मणों ने उन्हें विवाह के पोशाक पहनने के लिए कहा। वे चंदन के लेप, धवल श्वेत वस्त्र, नौ रत्नों वाली स्वर्णिम माला और एक उद्दीप्त मुकुट से सुशोभित थे। सबसे बढ़कर, पवित्र पंचाक्षर का उच्चारण करते हुए उन्होंने स्वयं को जगत के सबसे मूल्यवान वस्तुओं को से सजाया - रुद्राक्ष और भस्म। प्रभु को नमस्कार करते हुए, उन्होंने वरमाला ली और एकत्रित भक्तों के जयकारों की गूंज के साथ विवाह स्थल पर पहुँचे।


धन्य वधू के पिता ने उस अद्वितीय भक्त के चरण चंदन के जल से धोये। उन्होंने महान संत के चरणों के पवित्र स्पर्श से शुद्ध हुए उस जल को अपने ऊपर और वहां उपस्थित अन्य सभी लोगों पर छिड़का। लावण्या वधू को विवाह मंच पर लाया गया और मंत्रोच्चार के साथ उसके कोमल करों को शैवम के अदम्य प्रकाशस्तंभ के करों में दिया गया। दंपति को पवित्र अग्नि की परिक्रमा करने के लिए कहा गया। विवाह की संस्कारों के समापन के रूप में, संत अपनी पत्नी समेत नल्लूर पेरुमनम के भगवान की परिक्रमा करने के लिए उठे। उनके मन में विवाहित जीवन व्यतीत करने के स्थान पर अपनी नवविवाहित पत्नी के साथ प्रभु में विलीन होने की इच्छा प्रबल थी। सभी भक्तों और बंधुजनों और अपनी वधू के साथ वे भगवान के पास गए और उनसे विनती करते हुए "कल्लूर पेरुमानम वेंडा" गाया कि अब उन्हें ले जाने का समय आ गया है। मुक्तिदाता के मंदिर में एक शुभ्र ज्योति दिखाई दी। संबन्धर ने “नमशिवाय तिरुपदिकम” गाते हुए भगवान के पवित्र पंचाक्षर मंत्र की महानता का गुणगान किया और इस बात की पुष्टि की कि केवल पवित्र मंत्र "नमः शिवाय" ही जगत का उद्धार कर सकता है। तद्पश्चात उन्होंने वहां एकत्रित सभी भक्तों को उस ज्योति में पद रखने के लिए कहा। तिरुनीलनक्कर, मुरुगर, तिरुनीलकण्ठ यालपानर, शिवपादहृदयर और नम्बियाण्डर नम्बी सहित शुद्ध हृदय वाले भक्तों ने अपने परिवारों के साथ उस आलौकिक ज्योति में प्रवेश किया। अंत में, शैवम की अग्निशलाका अपनी पत्नी सहित उस दिव्य ज्योति को साष्टांग प्रणाम करते हुए और परिक्रमा करते हुए उसमें विलीन हो गए। तुरन्त वह लौ दृष्टि से ओझल हो गया। बाहर खड़े लोग आश्चर्यचकित रह गए। देवताओं ने स्वर्ग से स्तुति की वर्षा की। तिरुज्ञान संबन्धर के प्रभु को नमन, जिन्होंने उनके हृदय को अधिकृत किया और उनसे सुंदर तमिल भाषा में परमसत्य के विषय में अद्भुत भक्ति देवारम की रचना कराई। परमानंद प्राप्त करने, भगवान की महिमा गाने, अन्य दर्शनों के अज्ञानी अनुयायियों पर विजय पाने और सत्य के मार्ग पर दृढ़ रहने के लिए तिरुज्ञान संबन्ध नायनार का स्नेह भरा आह्वान सदैव हमारे मन में बना रहे।

 

< PREV <    
भाग ९ - राख से पुनरोत्थान
 

 

गुरु पूजा : वैकासी / मूलम या वृषभ / मूला   

हर हर महादेव 

 

63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र 


 

Related Content

तिरुज्ञान संबन्धर नायनार दिव्य चरित्र - भाग १ - अद्भुत क्षीर

तिरुज्ञान संबन्धर नायनार दिव्य चरित्र - भाग २ - मौक्तिक शिवि

तिरुज्ञान संबन्धर नायनार दिव्य चरित्र - भाग ३ - मौक्तिक छत्र

तिरुज्ञान संबन्धर नायनार दिव्य चरित्र - भाग ४ - देदीप्यमान

तिरुज्ञान संबन्धर नायनार दिव्य चरित्र - भाग ५ - प्रतिदिन एक