काविरी नदी ने चोल राज्य को इतना समृद्ध बनाया था कि कहा जाता था कि चोल राज्य ही अन्य राज्यों के लिए अन्न दाता है। इस भूमि में तिरुवाक्कूर नगर था, जिसकी प्रशंसा बालसंत तिरुज्ञान संबन्धर ने अपने देवारम में इस प्रकार की थी "... अगर संसार में कोई भी दरिद्र कुछ मांगता है, तो तिरुवाक्कूर के उदार लोग उसकी सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।"
तिरुवाक्कूर नगर में वेदों की ध्वनि इतनी व्याप्त थी कि मेघगर्जन भी उससे कम ही पड़ती थी। मधुमक्खियों के मधुर हूंकार के धुन पर भक्तगण भगवान की स्तुति में गीत गाते थे। अग्नि अनुष्ठानों के कारण घरों से निकलने वाला धुआँ वायु को शुद्ध करता था। उस सुंदर और धन्य तिरुवाक्कूर में, सिरपुली नायनार का जन्म एक वैदिक ब्राह्मणों के परिवार में हुआ। विष ग्रहण कर देवताओं को बिना किसी संकोच के अमृत प्रदान करने वाले ईश्वर के भक्तों को बिना किसी संकोच के वस्तुएं प्रदान करना ही नायनार का जीवन लक्ष्य था। जब भगवान के भक्त उनके घर पर आते थे, तो वे उनके चरणों में प्रणाम करते और मधुर वाणी एवं मीठे शब्दों से उनका स्वागत करते। फिर वे उन्हें बैठने के लिए उत्तम आसन प्रदान करते। फिर वे प्रेम से उन्हे भोजन परोसते। तद्पश्चात उन्हे मनोवांछित वस्तुएं देते। उनकी उदारता पर्जन्य के समान थी जो बिना किसी पक्षपात के वृष्टि करते हैं।
सिरपुलि नायनार ने भगवान के पवित्र पंचाक्षर का ध्यान किया, दिन के तीनों समय अग्नि अनुष्ठानों के माध्यम से भगवान की पूजा की, भगवान के मंदिर में सेवा की और सबसे बढ़कर जगत्पिता के चरणों का निरंतर स्मरण किया। उन्होंने भगवान और उनके भक्तों की सेवा से परमानंद प्राप्त किया। वे अंततः परमेश्वर के पवित्र चरणों में पहुँचे। सिरपुलि नायनार की निरंतर सेवा हमारे मन में सदैव रहें।
परिशिष्ट:
ऐसा कहा जाता है कि जब सिरुपुलि नायनार प्रतिदिन भगवान के भक्तों की सेवा कर रहे थे, तब भगवान स्वयं सहस्रतम भक्त के रूप में सेवा स्वीकार करने आए थे। तिरुवाक्कूर के मंदिर में इस घटना के प्रमाण स्वरूप यहाँ के ईश्वर की स्तुति “अयिरतिल ओरुवर” या “सहस्र में एक” के रूप में की जाती है।
गुरु पूजा : कार्तिकै / पूराडम या वृश्चिक / पूर्व आषाढ़ा
हर हर महादेव
See also:
63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र