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मुनैयडुवार नायनार दिव्य चरित्र

चोल साम्राज्य में, कावेरी के तट पर खेतों से परिवृत तिरुनीडूर नाम का एक नगर है। खिले पुष्पों से नहरों में प्रवाहित मधु और मिट्टी का मिश्रित सुगंध यहाँ के वातावरण में व्याप्त था। इसी नगर के एक कृषक परिवार में मुनैयडुवार का जन्म हुआ था। वे अपने हृदय और आत्मा से गजसम्हारमूर्ति परमेश्वर के प्रति समर्पित थे। वे वीर और सेवा-निष्ठ थे। उनकी निष्कलंक वीरता ने उन्हे धन दिया जिससे उन्होंने पशुपति के भक्तों की आवश्यकताओं की पूर्ति की।

Munaiyaduvar Nayanar - The History of Munaiyaduvar Nayanarमुनैयडुवार के प्रसिद्ध पराक्रम के कारण कई पराजित सेना नायक और राजकुमार उनके शरण में आते थे। अत्याधिक संपत्ति देकर वे उनसे सहायता माँगते थे। यदि नायनार को उचित लगे, तो वे चक्रवात के समान उन नायकों के शत्रुओं से लड़ने जाते और विजयी होकर स्वर्ण इत्यादि उपहार प्राप्त करते थे। यदि कोई सामान्य व्यक्ति होता, तो वह तत्काल इस धन को सुरक्षित करता पर अंततः आनंद से अधिक चिंताएँ उत्पन्न होती। किन्तु नायनार का उद्देश्य उस धन से नटराज के भक्तों के लिए भव्य भोज का आयोजन करना था। स्वर्ण और रजत, भक्तों के स्वागत के लिए चंदन लेप और दूध में, सरलता से परिवर्तित हो जाते थे। दही, घी, तरकारियाँ, दाल और प्रेम सहित परोसा चावल, उनके घर में प्रवेश करने वालों की भूख मिटा देता था। परिपक्व भक्ति से नायनार ने शिवभक्तों को मीठे फलों से उपचारित किया और वे स्वयं परमेश्वर की भक्ति के मीठे फल का आनंद लेते थे। जैसे निरंतर वर्षा पृथ्वी के दाह को शांत करती है, वैसे ही मुनैयडुवार ने शिवभक्तों की सेवा अपने जीवन के अन्त तक अनर्गल की और अंतत: शिवपद को प्राप्त हुए। मुनैयडुवार नायनार की भक्ति जिस कारण उन्होंने अपनी सम्पूर्ण संपत्ति प्रभु के भक्तों की सेवा में लगा दी हमारे मन में सदैव रहें।

गुरु पूजा : पंगुनी / पूसम या मीन / पुष्या 

हर हर महादेव 

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63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र 


 

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