हरे-भरे खेतों से परिपूर्ण, उर्वर चोल साम्राज्य में, तिरुपेरुमंगलम नगर है। भगवान शिव के पवित्र नामों के निरंतर जाप से यह नगर कैलाश जैसा प्रतीत होता था। उस धन्य नगर में एयर परंपरा में प्रतिभाशाली सेनापति कलिक्कामर का जन्म हुआ था। शिवभक्ति के अमूल्य रत्न से सुसज्जित, वे परिपूर्ण हृदय और विनम्रता के साथ भगवान नीलकंठ के भक्तों की सेवा करते थे। उन्होंने तिरुप्पुङ्कूर नगर के मंदिर में भक्तों के एकमात्र आश्रय, शिव की सेवा कीं।
एयर्कोन को महान भक्त सुंदरर के विषय में ज्ञात हुआ, जो कभी किसी से याचना नहीं करते थे अपितु सीधे भगवान से ही वे सब कुछ मांग लेते थे। सुंदरर के लिए, भगवान उनकी पत्नी परवैयार के पास दूत बनकर गए। यह सुनकर एयर्कोन कलिक्कामर व्याकुल हो गया और क्रोध से गरजे - "यह कैसी दासता है? एक दास का अपने स्वामी को आदेश देने का साहस कैसे हुआ! वह भी एक स्त्री को सांत्वना देने के लिए! घोर पाप! यह कैसे हो गया कि इस कृत्य को सुनने के पश्चात भी मैं जीवित हूं?" एक किंकर ने ऐसी याचना करने में कैसे संकोच नहीं किया?! अगर वह कभी मेरे सामने आ गया तो क्या होगा?" भगवान के प्रति उनका प्रेम इतना महान था कि तिरुवारूर के मार्गों पर सुंदरर और परवैयार के घरों के मध्य चलते भगवान के कोमल पैरों में चुभे कांटों की पीड़ा उन्हें हो रही थी। इस विचित्र समस्या का हल वे प्रतिदिन प्रभु से मांगते थे।
महादेव, सुंदरर और एयर्कोन, दोनों, के भिन्न और अद्वितीय भक्ति का आनंद ले रहे थे, किन्तु वे सुंदरर की भक्ति और सेवा में निष्ठा, एयर्कोन को दिखाना चाहते थे। अकस्मात, एयर्कोन सूलै रोग (जठर का एक पीड़ादायक रोग) से ग्रस्त हो गए। वेदना सहन करने में असमर्थ, वे भगवान नटराज के चरणों को स्मरण करते हुए रोने लगे। भगवान ने उन्हे बताया कि केवल सुंदरर इस रोग का निवारण कर सकते हैं। निराश होकर एयर्कोन ने प्रलाप किया, "हे भगवान, ये कैसा उपहास है! मेरे वंश ने सदैव आप पर विश्वास रखा हैं, हम केवल आप पर निर्भर हैं, हम केवल आपको ही को अपने एकमात्र स्वामी के रूप में पूजते हैं, किन्तु ये कैसी विडंबना है कि जिसने आपको दास बनाया है वह मेरे रोग का उपचार करेगा?! कितने दुख की बात है! इस स्थिति में मैं इस यातना को सह लूँगा। हे अनुग्रह! आपने सुंदरर का पक्ष सही कर दिया!"। एयर्कोन के इस वेदना को भगवान ने मानो अनदेखा कर दिया। सुंदरर के पास जा कर प्रभु ने उन्हे सुलै के उपचार करने के लिए कहा। भगवान के आदेश अनुसार, सुंदरर ने एयर्कोन को एक संदेश भेजा और उनके नगर की ओर चल पड़े।
पीड़ा से आर्तनाद करते हुए, प्रभु के शब्दों से निराश, एयर्कोन को सूचना मिलि कि सुंदरर उनका उपचार करने उसी ओर आ रहे थे। उन्हे सुंदरर द्वारा ठीक होना मन्य नहीं था और उन्होंने उनके आने से पूर्व, अपनी पीड़ा को समाप्त करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी असि से अपने जठर को चीर डाला और स्वयं को भयानक सूलै से मुक्त कर लिया! उनकी प्रिय पत्नी, जो अपने पति के साथ अग्निरोहण करने वाली थी, ने सुना कि सुंदरर उनके निवास पर पहुंच गए थें। दुःखी अवस्था में भी भक्तों की सेवा करना उनके मन में सर्वोपरि था। उन स्त्रियों में रत्न ने बंधुजनों को रोने या अनिष्ट का कोई संकेत दिखाने से मना किया। उन्होंने अपने प्रिय पति के शव को छिपा दिया और सभी मंगल वस्तुओं के साथ संत का स्वागत करने के लिए आगे बढ़ी। स्मित मुख के साथ उनके प्रेमपूर्वक स्वागत को स्वीकार करते हुए, सुंदरर ने उनके घर में प्रवेश किया और बैठ गये। उन्होंने तुरंत भक्त एयर्कोन के भयानक रोग को ठीक करने के लिए अपनी चिंता और उत्सुकता व्यक्त की। उनकी पत्नी के निर्देशानुसार वहां के लोगों ने उन्हें बताया कि एयर्कोन स्वस्थ थें और भीतर विश्राम कर रहे थें। लेकिन सुंदरर एयर्कोन को देखने पर दृढ़ रहे। छिपाने में असमर्थ, वे उन्हे वहाँ ले गए जहां एयर्कोन रक्त से द्रवित मृत पड़े थे।
निश्छल भक्त सुंदरर, जिनकी भगवान और उनके भक्तों के प्रति अपार भक्ति थी, जिसका प्रमाण उन्होंने अपने कई देवारमों में स्वयं को गंगाधर के “सेवकों के सेवक” संबोधित कर के दिया था, भक्त के मृत शरीर को देखकर और घटनाओं को सुनकर निराशा से त्रस्त हो गये। हताश उन्होंने अपना जीवन भी समाप्त करने के लिए असि उठा लिया। उस क्षण, उस दयालु भगवान के अनुग्रह से, एयर्कोन को अचानक जीवन मिल गया और उन्होंने उछलकर सुंदरर को रोक लिया – उन्हे सुंदरर के प्रति अपने प्रेम का अनुभव हुआ। सुन्दरर और एयर्कोन परस्पर एक दूसरे के चरणों में गिर पड़े। संसार ने इस अद्भुत दृश्य पर आश्चर्य किया और प्रशंसा की। उस सर्वज्ञ को कौन आदेश दे सकता है – जिनके लिए पृथ्वी रथ बन गई, सूर्य और चंद्रमा चक्र, पर्वत धनुष, भगवान विष्णु तीर, सम्पूर्ण देवताओं की सेना सेवा में खड़ी थी और जिनकी केवल एक मंदस्मित ने तीनों असुरों को भस्म कर दिया? यह सुंदरर के निष्कलंक और शाश्वत प्रेम के कारण था कि भगवान अपनी दया से उनके दूत के रूप में गए। उस प्रभु की जय हो जिनकी कृपा असीमित है!
दोनों भक्तों के मध्य विकसित मित्रता के साथ, उन्होंने तिरुप्पुनकुर में जटाधारी भगवान की स्तुति की। सुंदरर ने भक्तिभाव से भगवान की कृपा और एयर्कोन की महानता की प्रशंसा करते हुए देवारम "अंदलन" गाया। वे कुछ दिनों तक तिरुवारूर में वल्मीक के रूप में प्रभु की पूजा करते हुए एक साथ रहे। तद्पश्चात एयर्कोन कलिक्कामर अपने नगर लौट आए और अंततः उन्होंने भगवान के चरणों को प्राप्त किया। भगवान शिव के प्रति प्रेम और समर्पण जो एयर्कोन कलिक्कामर नायनार के मन में थी, वे हमारे मन में सदैव रहें!
टिप्पणी:
सुंदरर द्वारा तिरुप्पुनकुर में गाए गए देवारम में इस महान भक्त के विषय में एक रोचक विवरण का उल्लेख है। सूखा पड़ने पर लोगों की भलाई के लिए एयर्कोन कलिक्कामर ने भगवान की सेवा में बड़ी मात्रा में भूमि दान की। परिणामस्वरूप इतनी अधिक वर्षा हुई कि बाढ़ आ गई। तब कलिक्कामर ने बाढ़ को रोकने के लिए भगवान शिव को १२ वेली भूमि और दान दी। भगवान ने यह भेंट भी स्वीकार की और उन्हे आशीर्वाद दिया।
गुरु पूजा : आनि / रेवती या मिथुन / रेवती
हर हर महादेव
63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र