यह उन परम पिता गंगाधर ईश्वर का इष्ट निवास स्थान है। यह वह स्थल है जहां स्वस्थ पेड़ों पर लगे मधुमक्खियों के छत्ते से निकलने वाले मधु के कारण नहरों का पानी मीठा हो जाता है। यहाँ भिनभिनाती मधुमक्खियों मधुर गीत गाती है और उनकी धुन पर मोर नाचते है। इन दृश्यों और ध्वनियों का आनंद लेते हुए लोग खेत में अनाज ओर पेड़ उगाते है जिससे भूमि भी उपजाऊ बनती है। यह सुन्दर नगर कञ्चारूर है।
उस नगर में एक ब्राह्मण कलय रहते थे जो शिव भक्त थे और सभी प्राणियों के प्रति करुणा की दृष्टि से सोचने वाले लोगों की परंपरा में आते थे। उनकी करुणा उनकी अनुशासित जीवन शैली के कारण परिवर्धित थी । इसी करुणा के साथ उन्होंने भगवान शूलपाणि की सेवा करते हुए अपना जीवन व्यतीत किया। ये वही भगवान है जिन्होंने एक शरणागत ऋषि युवक के लिए यमराज को मारने हेतु त्रिशूल उठा लिया था। प्रभु के प्रेम में पिघलते हृदय के साथ नायनार प्रतिदिन गुग्गुल (एक गंधराल) का सुगंधित धूप भगवान को, जिन्हें वेदों में "सुगंधिन्" कहा गया है, अर्पण करते थे। यही उनकी सरल भगवत सेवा थी। उन्होंने बिना किसी संकोच के अपनी सारी संपत्ति उस सेवा में व्यय कर दी ।मानक्कञ्चार का जन्म इसी नगर में हुआ था और वे राजा की सेना के प्रमुख थे। उनकी भुजाएँ सदैव उन भगवान को, जो अपनी आठ भुजाओं के साथ नृत्य करते हैं और उनके भक्त को , जो स्वयं भगवान के अतिरिक्त किसी पर निर्भर नहीं होते हैं, प्रणाम करने के लिए ही उठती थीं।हालाँकि वे एक शक्तिशाली पद पर थे, फिर भी वे विनम्र थे। उनके पास बहुत सारी संपत्ति थी, फिर भी उन्होंने सरल जीवन व्यतीत किया। उनकी सेवा के लिए बहुत से सेवक थे, किन्तु वे स्वयं भक्तों की सेवा एवं उनकी आज्ञा का पालन करते थे। जबकि उनके आदेश का पालन करने के लिए पूरी सेना तत्पर होती थी, वे हर समय भक्तों के आदेश की प्रतीक्षा में खड़े रहते थे।
विवाह के कई वर्षों तक उन्हे संतान प्राप्ति नहीं हुई थी। उन्होंने भगवान शिव से बहुत प्रार्थना की जिन प्रभु के मनोहर चरण उनके हृदय में प्रतिष्ठित थे, वे चरण जिन्हें ब्रह्मा और विष्णु भी नहीं देख सकते थे। भगवत कृपा से, अंततः उन्हें एक सुंदर कन्या के रूप में आशीर्वाद मिला, जिसने अपने महान कार्यों से अपने पिता की कीर्ति को और बढ़ाया। मानक्कञ्चार ने अपनी तपस्या से वरदान स्वरूप प्राप्त अपनी पुत्री का पालन-पोषण बहुत उत्तम रीति से किया, जिसकी प्रशंसा पूरे नगर ने की। वह कन्या एक धनवान घराने में पली-बढ़ी। जहाँ उसके पीछे दौड़ रही सेविकाएं उसे दूध और मधु के साथ मिश्रित मीठे चावल खिलाती थी, वहाँ उसके प्रिय पिता उसे शिव के प्रति शाश्वत मीठे प्रेम खिला रहे थे।उन्होंने अपनी पुत्री के हर छोटीसी आवश्यकता का ध्यान रखा और उसे कभी स्नेह के अभाव का अनुभव होने नहीं दिया।वह कन्या देवी के समान सुंदर आभूषणों से सुशोभित बड़ी हुई। जब वह विवाह योग्य बनी, तब भगवान के एक प्रसिद्ध भक्त में उसे अपना वर मिला, जिनका भगवान के प्रति प्रेम इतना अधिक था कि उन्हे यह स्वीकार नहीं था कि भगवान को एक भक्त (सुंदरर) ने दूत के रूप में इधर उधर घूमाया। एयर्कोन कलिक्काम नायनार ही वे महान वर थे।यहां यह कहना उचित होगा कि मानक्कञ्चार को केवल एक वरदान (अपनी बेटी) की प्रार्थना की थी किन्तु उन्हे दो वरदान प्रदान किए गए थे - अपनी बेटी के लिए योगया वर के रूप में एयर्कोन कलिक्काम जैसे अद्भुत भक्त।
दोनों परिवार इस विवाह से बहुत प्रसन्न थे और उन्हें इन दो महान भक्तों के मिलन के लिए एक शुभ दिन का चयन किया। विवाह के लिए एयर्कोन कलिक्काम पूर्व में उदित होने वाले उज्ज्वल सूर्य के समान कञ्चारूर नगर में पहुंचे। ढोल और अन्य वाद्ययंत्रों से उठने वाली ध्वनि के, जो मेघ के गर्जन को भी लज्जित कर रही थी, बीच में वहाँ असामान्य रूप धरने वाले भगवान शिव का आगमन हुआ, इस बार एक योगी के रूप में। उनके गोलाकार कुंडल हवा में झूल रहे थे, जनेऊ उनके वक्ष को सुशोभित कर रहा था और उनके पास एक थैले में पवित्र भस्म था, जो भस्म दुखों के स्रोत को जलाकर भस्म कर देता है। उनका शरीर भस्म विभूत था और वे श्वेत ज्वाला के समान प्रकाशमान थे। उन्होंने भक्त के घर में अपने पावन चरण रखे। ये वही उज्ज्वल चरण हैं जिन्हें योगी भी जानने के लिए संघर्ष करते हैं और एक बार जानने के पश्चात, देखने या जानने के लिए और कुछ नहीं रह जाता है।
शिव योगी को देखते ही मानक्कञ्चार उनके चरणों में गिर पड़े। उन्हे परमानन्द का अनुभव हो रहा था। यह उनके लिए वरदान के समान था कि एक शिव योगी ने उनके जीवन के इतने महत्वपूर्ण अवसर की शोभा बढ़ाई थी। वरदान देने वाले शिव के लिए तो यह जगत को अपने भक्तों के उत्कृष्ट चरित्र दिखाने का एक अवसर था। उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद, मानक्कञ्चार ने अपनी बेटी को, जिसके केश बड़े घने काले मेघों के समान थे, ऋषि का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए बुलाया। भगवान भक्तों के हृदयों से भ्रम को मिटा देते हैं, अब वहि भगवान उन्हे भ्रमित करने वाले रूप में, मानक्कञ्चार के पुत्री के सुंदर बालों से अपने लिए पञ्चवड़ी (एक पवित्र सूत्र - बाल से बना जनेऊ - जिसे शिव योगी अपने वक्ष पर धारण करते है ) बनाने की इच्छा व्यक्त की। नायनार ने इस इच्छा को एक आदेश माना और वरदान के रूप में लिया। उन्होंने तुरंत अपना खंजर निकाला और अपनी पुत्री के काले सुंदर केश एक पल में काट दिए और योगी को भेंट कर दिया। शास्त्रों के अनुसार युवतियों के केश काटना अशुभ माना जाता है। किन्तु नायनार के लिए, भक्त की इच्छा अत्यंत महत्वपूर्ण थी और उसे पूरा करना सर्वोपरि था, वह चाहे किसी भी संदर्भ मैं क्यों न हो, अपनी एक मात्र पुत्री का विवाह ही क्यों न हो?
शिव योगी ने भेंट स्वीकार करने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाने का व्याज किया। पर दूसरे ही क्षण वे ओझल हो गए। स्वर्ग से फूलों की वर्षा हुई और जगन्माता सहित परम पिता शिव अपने दिव्य वृषभ पर दिखाई दिए। नायनार ने साष्टांग प्रणाम किया, उनके मनोहर रूप को देखकर परमानन्द से रो पड़े, और श्रेष्ठ शब्दों में भगवान की स्तुति की। भगवान ने कहा कि यह सारा वृतांत संसार के समक्ष मानक्कञ्चार के भगवत प्रेम को प्रदर्शित करने के लिए किया गया था और उन्होंने अपने भक्त को निष्कलंक प्रेम का आशीर्वाद दिया। ठीक उसी समय वर की बारात विवाह स्थल पर पहुंची और एयर्कोन को मानक्कञ्चार के महान कार्य के बारे में पता चला। उनका हृदय मानक्कञ्चार के प्रति श्रद्धा की भावनाओं से भर गया। धन्य थीं वे आँखें जिन्होंने उस युवती के साथ एयर्कोन के विवाह को देखा , जिसे भगवान की कृपा से उसके सुंदर केश पुनः प्राप्त हो गए। इसके पश्चात मानक्कञ्चार को भगवान के स्थिर चरणों के नीचे शाश्वत स्थान प्राप्त हुआ। मानक्कञ्चार नायनार की, अपनी प्रिय पुत्री के विवाह के समय भी, भगवान के भक्तों की सेवा को सर्वोपरि मानकर कुछ भी त्याग करने की तत्परता सदैव मन में बनी रहे।
गुरु पूजा : मार्गलि / स्वाती या धनुर / स्वाती
हर हर महादेव
See also:
1.एयर्कोन कलिक्काम नायनार
63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र