पल्लवों के शिष्ट राज्य में मयिलापुर (मयिलै, मयिलापुरी) नगर है, जो अब चेन्नै महानगर का भाग है। यह वही स्थान है जहाँ भगवान शिव की कृपा से तिरुज्ञान संबंधर ने युवती पूम्पावै को अस्थियों से पुनर्जीवित किया था।
समुद्र तट पर बसा मयिलापुर एक समृद्ध नगर था, जहाँ तरंगें भी मोतियों के समान दिखाई देती थीं। क्षितिज पर उदय होने वाला लाल सूर्य स्त्रियों के माथे पर सजे सिंदूर के समान लगता था। गायों के दूध के समान श्वेत, चन्द्रमा की किरणें भगवान के मंदिर का अभिषेक करते हुए दिखाई देतीं थीं। इस मंदिर में प्रार्थना के लिए आए भक्तसमूह की ध्वनि समुद्र के रव को भी मन्द कर देती थी। निराकार भगवान, जगत कल्याण के लिए उस मंदिर में लिंग के रूप में प्रकट हुए थे।
इस नगर में एक योगी रहते थे, वायिलार, जो प्रसिद्ध पुरातन वायिलार-कुल के वंशज थे। उनका जीवन तिरुनावुक्करसर के देवारम का आदर्श उदाहरण है जिसमें वे कहते हैं "तिरुवैयारु के भगवान के लिए उनके सेवकों का मन, जो उनकी सेवा करता हैं, उनसे प्रेम करता हैं और उनके समक्ष दंडवत करता हैं – ही उनका मंदिर है ।" स्वयं सर्पों और कपालों से सजे होने के कारण मनमोहक ईश्वर के लिए वायिलार ने अपने मन में एक आकर्षक मंदिर बनवाया।
वायिलार ने अपने मन में एक मंदिर बनाया और उसकी वेदी में परमेश्वर को प्रतिष्ठित किया। अज्ञानता को अन्त करने वाली उनकी भक्ति प्रज्वलित दीप, उनका परमानन्द अभिषेक का सुगंधित जल, उनका प्रेम नैवेद्य और उनकी स्तुति सेवा बन गई। प्रतिदिन, उनका हृदय उस प्रार्थना में विकसित और पोषित होता था। वे अपने समर्पण की संपूर्णता के साथ भगवान की पूजा में लीन हो जाते थे, जो उनके निश्छल प्रेम का ही परिणाम था।
किसी भी भक्त का अंतिम लक्ष्य उस शिवानंद में पूर्णतया लीन होना है। उस अवस्था में भक्त जीवनमुक्त होता है और उसकी कोई इच्छा शेष नही रहती है। वायिलार ने इस अंतर्याग पूजा को जीवन भर किया, जिससे उन्हे सबसे श्रेष्ठ फल प्राप्त हुआ – वट वृक्ष की छाया में बैठे योगेश्वर के साथ विलय। वायिलार नायनार द्वारा प्राप्त अंतर्याग पूजा की पूर्णता हमारे मन में सदैव रहें।
गुरु पूजा : मालगली / रेवती या धनुर / रेवती
हर हर महादेव
See Also:
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2. Mangaiyarkkarasiyar
3. Kulachiraiyar
63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र