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तिरुनीलनक्क नायनार दिव्य चरित्र

चोल राज्य में तिरुचातमङ्गै नाम का एक नगर है। उस नगर में, वैदिक परंपरा में, भगवान नीलकंठ के उपासक नीलनक्क नाम से एक ब्राह्मण का जन्म हुआ था। वेदों का मार्ग गंगाधर भगवान शिव और उनके भक्तों की सेवा में ही है – इस गूढ विषय को वे जान गए। उन्होंने प्रेमपूर्ण हृदय से सेवा के इस मार्ग का पालन किया और पूरी विनम्रता से प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा की। वे भक्तों के लिए भोज का आयोजन करते थे और उनके अन्य आवश्यकताओं को भी पूर्ण करते थे। इसी अनुशासन का अनुसरण करते हुए वे भक्ति के मार्ग पर अग्रसर थे।

Thirunilanakka Nayanar - The History of Thirunilanakka Nayanar
आगमिक उपासना में प्रेम के महत्व का शिवजी दिखाया! 

एक शुभ अरुद्र नक्षत्र के दिन, घर पर शास्त्र विहित अपनी दैनिक पूजा के पश्चात, वे अपनी प्रिय पत्नी सहित पूजा सामग्रियों के साथ अयवंती भगवान के मंदिर में गए। उन्होंने भगवान को पुष्प और अन्य पवित्र वस्तुएँ अर्पित किए और उनके सामने साष्टांग प्रणाम किया। प्रेम से भरे हृदय से पूजा पूर्ण करने के पश्चात, उन्होंने पवित्र पंचाक्षर का ध्यान करते हुए मंदिर की परिक्रमा की। उसी समय एक मकड़ी भगवान के विग्रह पर गिर पड़ी। पास ही खड़ी नायनार की पत्नी ने एक माँ अपनी संतान के साथ जैसे करती है, वैसे ही कीड़े को हटाने के लिए पूंका। प्रभु के प्रति उसका प्रेम इतना सहज था कि उसने इसे तुरंत ही कर दिया। नायनार अपनी पत्नी के कृत्य से स्तब्ध रह गये और उन्होंने कांपते स्वर में उससे पूछा कि उसने क्या किया है। बिना किसी कपट के, उसने उत्तर दिया कि जैसे ही मकड़ी भगवान पर गिरी, उसे हटा देना पड़ा। नीलनक्क ने कहा कि ऐसा फूंकना आगमिक मार्ग के विरुद्ध है क्योंकि त्रुटि से भी भगवान के स्वरूप पर ष्ठीवन नहीं गिरना चाहिए। उसे कोई अन्य साधन अपनाना चाहिए था। वे पत्नी के कृत्य के लिए क्षमा माँगने के लिए परिहार पूजा करने के लिए आगे बढ़े। इसके पश्चात उन्होंने क्रोध में अपनी पत्नी का त्याग कर दिया।

सूर्य पश्चिमाचल पर अस्त हो गया। नायनार अपने घर में सो गया। उनकी पत्नी, जिसने वह कृत्य पूर्ण रूप से परमेश्वर के प्रति प्रेम के कारण किया था, अपने पति के आदेश की अवज्ञा करने में असमर्थ थी और मंदिर में ही रुकी थी। उस रात, भगवान, जो नीरस अनुष्ठानों की तुलना में शुद्ध प्रेम से अधिक प्रसन्न होते हैं, नायनार के स्वप्न में प्रकट हुए। उन भगवान ने अपना रूप दिखाया और कहा, "देखो! यहीं पर उसने फूंक मारी है और यह भाग बिल्कुल ठीक है जबकि दूसरा भाग मकड़ी के कारण सूज गया है।" भगवान के अद्भुत कृत्यों को कौन जान सकता है? जो शरीर या रूप से परे है, वे अपने प्रिय भक्त की सहायता करने के लिए सूजन के साथ प्रकट हो गए! भगवान के शब्द सुनकर तिरुनीलनक्क आश्चर्यचकित रह गए, किन्तु तुरंत अपने आपको एकत्रित कर उनकी स्तुति करने लगे। उन्होंने हर्षित होकर नृत्य किया। अगले दिन प्रातः वे अयवंती भगवान के मंदिर गए, भगवान के चरणों में गिर पड़े, उनकी पूजा की और अपनी प्रिय पत्नी को पुनः घर ले आये। उन्होंने शुद्ध प्रेम और समर्पण के साथ भगवान और उनके भक्तों की निरंतर सेवा की।

तिरुज्ञान संबंधर के अद्भुत गीतों और उनके चमत्कारों को सुनकर, नीलनक्क के मन में उन्हें देखने और उनकी सेवा करने की तीव्र इच्छा उत्पन्न हुई। उन्हें जानकारी मिली कि संबंधर तिरुनीलकंठ  यालपाणर और भक्तों के एक समूह के साथ मार्ग में कई मंदिरों के दर्शन करते हुए तिरुचातमङ्गै की ओर आ रहे थे। यह समाचार सुनकर उन्होंने पूरे मार्ग को फूल-पत्तियों से सजा दिया। वे बाल संत के स्वागत में नाचते और प्रभु की स्तुति गाते हुए आगे बढ़े। उन्होंने अपने घर में भक्तों की आतिथ्य की। सूर्यास्त के समय, तिरुज्ञान संबंधर ने तिरुनीलनक्क से यालपाणर और उनकी पत्नी के लिए रात के लिए एक स्थान का अनुरोध किया। उस भक्तिपूर्ण दंपति को, हमारे महान नायनार ने तुरंत वह स्थान प्रदान किया जहां वैदिक पूजा के लिए पवित्र अग्नि सदैव उज्ज्वल रहती थी। यह स्पष्ट था कि  तिरुनीलनक्क ने जन्म से उत्पन्न सामाजिक विभेदों को पार कर लिया था। उस केंद्रीय कक्ष में, जहां यालपाणर अपनी पत्नी के साथ उस रात रुके थे, अनुष्ठान अग्नि और भी अधिक प्रकाशमान थी।

महान भक्त तिरुनीलनक्क को तिरुज्ञान संबंधर के देवारम में स्थान मिला। तद्पश्चात, जब संबंधर ने नगर से प्रस्थान किया, तो उनके आदेश की अवज्ञा करने में असमर्थ, नायनार, वहीं रुक गये। उन्होंने अपना जीवन भगवान की कृपा और संबंधर के चमत्कारों की प्रशंसा करते हुए व्यतीत किया। संबंधर के विवाह के समय उन्होंने अनुष्ठानों (अनुष्ठान के अग्नि में भूने चावल डालना) में प्रमुख भूमिका निभाई। भगवान के नाम को स्मरण करते हुए, वे उस विवाह समारोह में प्रकट हुई शिव-ज्योति में विलीन हो गए और वेदों में प्रशंसित चरणों को प्राप्त किये। इस महान तिरुनीलनक्क नायनार की सेवा और निष्पक्ष दृष्टि हमारे मन में सदैव बनी रहे।

गुरु पूजा : वैकासी / मूलम या वृषभ / मूला

हर हर महादेव 

See also:
1. Thiruvadhirai 
2. Thirugnanachambandhar 
3. Thiruneelakanda Yaazhppaanar
 

63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र 


 

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