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सेरुतुनै नायनार दिव्य चरित्र

वह अन्नभूमि, जहां कुल्याओं के सुर में मेढकों के गीत और धीमी पावन से लहराते खेतों के ताल के मध्य ब्रह्माण्ड के स्वामी विराजमान हैं, तंजावूर (पूर्व तंजावूर) है। उस नगर के एक कृषक परिवार में सेरुतुनैयार नामक कालान्तक प्रभु के निष्ठावान सेवक का जन्म हुआ था। भगवत प्रेम से परिपूर्ण हृदय, हाथ और शीर्ष सदैव मुक्तिदाता को नमस्कार करते हुए, वे तन और मन से ईश्वर की सेवा में लीन थे। तिरुवारूर के मंदिर में वे भगवत सेवा करते थे।

Cheruththunai Nayanar - The History of Cheruththunai Nayanarजैसे भ्रमर अपनी इच्छा से पुष्प के समीप जाता है, वैसे ही नायनार तिरुवरूर आए, जहां भगवान वल्मीक में प्रादुर्भूत है। मंदिर के विभिन्न सेवाओं में उत्साह के साथ सेरुतुनैयार ने योगदान दिया। सेवा ही नायनार का उद्देश्य, उनकी संतुष्टि, यहाँ तक कि उनका जीवन भी था और इसे दोषहीन करना उनका एकमात्र लक्ष्य। महादेव नायनार के पवित्र कार्य से प्रसन्न थे। एक दिन पल्लव सम्राट कलर्सिंह की रानी ने प्रभु को अर्पण करने हेतु रखे पुष्पों के मंच के समीप नीचे पड़े एक पुष्प को सूंघा। पूजा के लिए रखे पुष्पों का पूर्व सूंघना या उपयोग करना निषिद्ध है।

नायनार इस कृत्य को सहन में असमर्थ थे और क्रोधित हो गये। उन्होंने सोचा – “परमेश्वर के पवित्र जटाजूट के लिए रखे गए पुष्प को कोई कैसे सूंघ सकता है?” उन्होंने एक असी से उस रानी की नाक काट दी। उनका यह कृत्य अत्याधिक लग सकता है, किन्तु यह प्रेम और अनुशासन से उत्पन्न था। भक्त के लिए यह आप्रसंगिक था कि वे रानी थी या कोई सामान्य नागरिक। अपने जीवन के अन्त में निडर भक्त ने शिव पद प्राप्त किया। भगवान शिव की अमल सेवा का सेरुतुनै नायनार का संकल्प हमारे मन में सदैव रहें।

गुरु पूजा : आवणी / पूसम या सिंह / पुष्या    

हर हर महादेव 

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