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पूसलार नायनार दिव्य चरित्र

प्राचीन तोंडै नाडु में तिरुनिन्रवूर नामक नगर है, जहाँ अनुशासित वैदिक ब्राह्मण रहते थे। पूसलार का जन्म उसी नगर के एक ऐसे ही वैदिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने वेदों का अध्ययन किया और उनके सार को समझा। उन्होंने एक अनुशासित जीवन व्यतीत किया। उनका मन उस एक परब्रह्म के विचारों में लीन रहा, जो भावनाओं के माध्यम से हृदय में प्रवेश करते हैं, और उन्होंने त्रिनेत्रधारी ईश्वर के प्रति अगाध प्रेम विकसित किया। वे नीलकंठ के चरणों में सम्पूर्ण रूप से समर्पित थे और उनके भक्तों की हर संभव सेवा करते थे। भक्तवत्सल परमेश्वर के लिए पूसलार एक सुंदर मंदिर का निर्माण करना चाहते थे। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि वे आर्थिक रूप से सक्षम हैं या नहीं। उनके मन में बस यही था कि किसी तरह अपने हृदय में विराजमान महादेव के लिए एक मंदिर बनवाएँ। उन्होंने मंदिर बनाने के लिए आवश्यक धन एकत्रित करने की चेष्टा की। किन्तु उन्हें निराशा हुई कि वे पर्याप्त धन इकट्ठा नहीं कर पाए।

Poosalar Nayanar - The History of Poosalar Nayanarनिराशा हाथ लगने पर भी पूसलार ने भगवान के लिए एक भव्य मंदिर बनाने की महान योजना को कभी नहीं छोड़ा। धनवान हृदय वाले सेवक ने अपने पवित्र कार्य के लिए आवश्यक धन को अपने मन में ही संचित किया! मन में ही उन्होंने एक भव्य मंदिर बनाने के लिए सबसे उत्तम सामग्री का क्रय किया। अपने विचारों में उन्होंने मंदिर के निर्माण के लिए सबसे कुशल राजमिस्त्री और अन्य श्रमिकों को नियुक्त किया। उत्साह के साथ, जिसे सांसारिक निराशाएँ न बुझा सकी, उन्होंने अपने हृदय में पवित्र मंदिर की स्थापना के लिए आगमों के अनुसार उपयुक्त तिथि का चयन किया। पूरी निष्ठा से, योजनाबद्ध काम बिना किसी रुकावट के लंबे समय तक चलता रहा और उन्होंने मंदिर के सभी आंतरिक स्थानों के साथ गर्भगृह को पूरा किया। तद्पश्चात उन्होंने एक बड़ा गोपुर बनाया और उसे मृतिका मूर्तियों से सजाया, प्रतिदिन भगवान का अभिषेक करने के लिए जल हेतु उन्होंने एक तड़ाग खोदा, उन्होंने मंदिर के चारों ओर विशाल दृढ़ भित्तियाँ खड़ी कीं, और मंदिर के बाहर एक सुंदर ताल बनाया। उनके प्रेम की पूर्णता के समान मंदिर पूरा हो गया। तद्पश्चात उन्होंने मंदिर के कुंभाभिषेक के लिए एक उत्तम तिथि का चयन किया।

उसी समय, पल्लव राज्य के राजा ने कैलाशपति की सेवा करने की इच्छा से राजधानी कांची में वास्तुकला में उत्कृष्ट एक मंदिर बनवाया था। ज्योतिषियों के परामर्श से, उन्होंने मंदिर के कुम्भाभिषेक के लिए सबसे उपयुक्त तिथि तय की। अमलतास पुष्पों से भूषित ईश्वर पूर्व रात्रि राजा के स्वप्न में प्रकट हुए और उन्हें बताया कि अगले दिन वे तिरुनिन्रवूर के पूसलार द्वारा बनाए गए महान मंदिर में प्रवेश करेंगे। भगवान ने राजा से कांची में अपने मंदिर के कुंभाभिषेक की तिथि को किसी अन्य तिथि में रखने के लिए कहा। एक भक्त के शुद्ध और समर्पित प्रयास को संसार के समक्ष लाने की प्रभु की दिव्य लीला ने राजा को प्रेरित किया, जिन्होंने सवयं एक ऐसे भव्य मंदिर का  निर्माण किया था जो आने वाली युगों में मूर्तिकला की उत्कृष्ट उदाहरण बनने वाली थी। राजा पूज्य भक्त पूसलार को देखना और उनका अभिवादन करना चाहते थे, जिनकी सेवा से प्रसन्न सवयं परमेश्वर उनके मंदिर में प्रवेश करने की प्रतीक्षा कर रहे थे। राजा तिरुनिन्रवूर गए और पूसलार द्वारा निर्मित मंदिर के विषय में पूछताछ की। किन्तु उन्हे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि उस नगर में पूसलार नाम के किसी भक्त ने कोई मंदिर नहीं बनवाया था। राजा ने नगर के वैदिक ब्राह्मणों को बुलाया। जब उन्होंने उनसे पूसलार नायनार के विषय में पूछा, तो उन्होंने बताया कि पूसलार नाम का एक सच्चा भक्त वास्तव में उस नगर में रहते थे। उस विशाल राज्य के राजा, जिनकी सेवा में कई अन्य राजा थे, सवयं उस महान भक्त को प्रणाम करने चले।

राजा उस महात्मा को नमस्कार करने के लिए उत्सुक थे, जिनके मंदिर में उस दिन परमेश्वर प्रवेश करने वाले थे। राजा ने हाथ जोड़कर पूसलार से कहा कि उन्होंने अष्टभुजाधारी भगवान के लिए जिस श्रेष्ठ मंदिर का निर्माण किया था उसके विषय में उन्हे स्वयं भगवान से ज्ञात हुआ। असीम भक्ति के सरल भक्त भय और कृतज्ञता के मिश्रित भावों से अभिभूत हो गये। भगवान, जिनके पवित्र चरणों के दर्शन विष्णु और ब्रह्मा को भी कठिन हैं, ने स्वयं कहा था कि वे उनके सरल प्रेम को देखते हुए उस निर्दिष्ट दिन मंदिर में निवास करने आएंगे! उनकी आंखों से प्रेम के आंसू बह निकले।  उन्होंने अपनी कथा बताते हुए राजा से कहा कि वे भगवान के लिए एक भव्य मंदिर बनवाना चाहते  थे, आर्थिक संकीर्णता के कारण उन्हे अपने हृदय में ही इच्छानुसार मंदिर बनवाया। राजा को इस निष्कलंक भक्त की श्रेष्ठ भक्ति पर आश्चर्य हुआ! उन्होंने पूरी विनम्रता के साथ नायनार को प्रणाम किया और अपनी राजधानी लौट आया। महान भक्त ने भगवान के लिए बनाए गए भव्य मंदिर की प्रतिष्ठा योजना के अनुसार पूरी की। पूसलार ने जीवन भर भगवान शिव की अपने हृदय में शास्त्रोक्त पूजा की। अंतत उन्हें भगवान के पवित्र चरण प्राप्त हुए। भक्ति की वह दृढ़ता और पूर्णता, जिसके कारण सांसारिक बाधाओं को पार कर पूसलार नायनार ने सेवा में सफलता प्राप्त की, जिसकी प्रशंसा सवयं परमेश्वर ने भी की, हमारे मन में सदैव रहें।

गुरु पूजा : ऐपस्सी / अनुषम या तुला / अनुराधा

हर हर महादेव 

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