खेतों से परिवृत, जहाँ केले के ढेर हरी पत्तियों की शय्या पर पड़े दिखाई देते हैं, मिललै राज्य में पेरुमिललै नाम का नगर है। यह नगर ऐसे लोगों से सम्पन्न था जिनके माथे पर लगाया श्वेत पवित्र भस्म, उनके हृदयों में सत्य के ज्ञान और पवित्रता को मात्र प्रतिबिंबित करता था। नगर के प्रमुख पेरुमिललै कुरुंब नायनार, न केवल सबसे प्रमुख भक्त थे, अपितु जटाधारी भगवान के सेवकों के मुख्य सेवक भी थे। इन महापंडित ने अपने ज्ञान का उपयोग पन्नग-भूषण शंकर के सेवकों की सेवा में किया। स्पष्ट रूप से पूछे बिना ही सेवा सम्पन्न हो जाती थी। वे सदैव भगवान के भक्तों की सेवा के लिए तत्पर रहते थे और इसे अपना प्रमुख कर्तव्य मानते थे। पाटल की पंखुड़ियों से भी कोमल प्रभु के चरण, प्रेम की सुगंध प्रसारित करते हुए, उनके हृदय रूपी कमल में निवास करते थे।
पेरुमिललै कुरुंब नायनार के व्यक्तित्व में कई सराहनीय विशेषताएं थीं। उन्होंने परशुधारी भगवान के कई भक्तों की आतिथ्य-सत्कार कर उन्हें असीमित भोजन और धन प्रदान किया था। वे सदैव उन वीतरागी भक्तों के प्रति विनम्र थे। अटल और निःस्वार्थ सेवा ने उन्हें उन महान भक्त का साहचर्य दिया, जो आवश्यकता पड़ने पर केवल भगवान शिव से याचना करते थे - सुंदरमूर्ति नायनार। यह जानते हुए कि महात्माओं की संगति ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है, उन्होंने अपने विचारों में उन अद्वितीय भक्त को रखा जिनके स्वयं के विचार सदैव परमेश्वर पर ही केंद्रित थे। उन तेजस्वी भक्त का अनुसरण करते हुए, उन्होंने अष्ट महा सिद्धियाँ प्राप्त कीं। किन्तु, उनके लिए उन सभी शक्तियों से परे, असीम भक्ति के साथ, आनंद के आँसू से आर्द्र, पवित्र पंचाक्षर का ध्यान करना था। भगवान, योग और सेवा के प्रति उनका प्रेम निर्बाध रूप से चल रहा था।
इस समय, भगवान के सेवक, सुंदरमूर्ति नायनार चेरमानपेरुमाल नायनार द्वारा शासित चेर साम्राज्य की राजधानी, कोडुन्गोलूर गए। तिरुवन्चैकलम के भगवान के दिव्य आशीर्वाद से, शिव के स्वयं अपना श्वेत हाथी भेज था सुंदरर को कैलाश लाने हेतु। महान पेरुमिललै कुरुंब नायनार, जिनके पास विशेष आध्यात्मिक दृष्टि और ज्ञान था, ने इस महान घटना को अपने हृदय में अनुभव किया। जब उनके प्रिय सुंदरर कैलाश की ओर बढ़ रहे थे, तो वे इस पृथ्वी पर क्या करें? यह सोचकर, उसी दिन अपनी योग शक्ति से वे उस आनंदमय स्थान पर पहुँचने के लिए उत्सुक थे। ज्ञान की पूर्णता में चारों अंतःकरणों को एक कर , प्राण वायु को ब्रह्म नाड़ी में प्रवाहित कर, कपाल के केंद्र के गुप्त मार्ग द्वारा, नायनार ने अपना देह त्याग दिया और सुंदरर से पहले, भगवान शिव के शाश्वत चरणों में निवास करने के लिए, कैलाश पहुंच गये। भगवान और उनके भक्तों की सेवा से प्राप्त पेरुमिललै कुरुंब नायनार के दिव्य योग ज्ञान हमारे मन में सदैव रहें।
गुरु पूजा : आडि / चित्रै या कर्क / चित्रा
हर हर महादेव
63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र