भगवत सेवा के लिए किसी का राजा होने या बहुत अधिक धन-संपत्ति का स्वामि होना आवश्यक नहीं है। यदि लक्ष्य शिव सेवा करना है, तो सभी आवश्यक साधन अपने आप उपलब्ध हो जाते है। ईश्वर द्वारा दी गई कुशलता, चाहे वह जो कुछ भी हों, उसका सदुपयोग उनकी सेवा करने के लिए किया जाना चाहिए। कारि नयनार का जन्म तिरुक्कडवूर नगर में हुआ था, जहाँ भगवान ने स्वयं यमराज के प्राण हर लिए थे, जब वे भक्त ऋषि मार्कण्डेय के जीवन को समाप्त करने के उद्देश्य से आए थे। नायनार सरूप शब्दों और गूढ़ अर्थों से अलंकृत सुंदर कविता रचने में निपुण थे। वे अपने कविताओं के लिए प्रसिद्ध थे। वे पुरातन तमिल भूमी के तीनों राजाओं (चेर, चोल और पांड्या) के पास गए और उन्हें प्रसन्न करने वाले गीत गाए। प्रशंसा के रूप में प्राप्त धन से उन्होंने कई प्रकार की भागवत सेवाएँ की।
कारि नयनार ने नीलकंठ ईश्वर के लिए अनेक सुन्दर मंदिर बनवाये, जो उनके हृदय कमल के शिवालय के समान सुन्दर थे। सुन्दर शब्दों का प्रयोग करके, लोगों को आनंदित करके उन्होंने महादेव के भक्तों को निःस्वार्थ दान दिया और सदैव कैलाशपति के कृतज्ञ थे। उनकी वाणी ने तमिल भाषा में अद्भुत गीत रचे, जबकि उनका मन तमिल भाषा के सृजनकर्ता अद्भुत परमेश्वर में विलीन था। उनके शब्दों में प्रतिभा नृत्य करती थी और उनके शांत विचारों में सृष्टिकर्ता नृत्य करते थे। उस समय के महान राजाओं ने अपने धन से नायनार के मधुर गीतों को पुरस्करित किया, जबकि नायनार ने उस धन को भक्तों की सेवा करके सबसे महान धन - ब्रह्मांड के स्वामि का अनुग्रह प्राप्त करने में लगा दिया। उनके संगीत और लय ने इस संसार में उनके नाम को अंकित किया, यद्यपि उनके हृदय में महेश्वर ही सदैव अंकित थे। उनके विचार सदैव पवित्र कैलाश के हिम शिखर पर रहते थे और अंततः वे भी भगवान शिव के आशीर्वाद से उस पवित्र स्थान पर पहुँच गये। कारि नयनार के स्थिर विचार जो सदैव कैलाशपति के पवित्र चरणों में निवास करते थे, हमारे मन में सदैव रहें।
गुरु पूजा : मासी / पूराडम या कुंभ / पूर्व आषाढ़ा
हर हर महादेव
See also:
63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र