तिरुवोट्रियूर का समृद्ध नगर, जहाँ यज्ञों के भगवान विराजमान हैं, ऊँची प्राचीरों से घिरा हुआ है। समीप ही, समुद्र की गर्जना अनवरत प्रणव नाद के समान सुनाई देती है! सागर की तरंगें प्रभु के चरणों को स्पर्श करने का प्रयत्न करते हैं और वायु एक अच्छे मित्र के समान उनकी सहायता करता है। लहराते सुपारी के वृक्ष सुंदर परिदृश्य को विस्तृत करते हैं। कला के ईश्वर की यह भूमि कई कलाओं और शिल्पों से समृद्ध थी।
उस नगर में, जहाँ भगवान भक्तों द्वारा अभिषेक किए जाने का आनंद लेते हैं, वहाँ एक वीथिका थी जिसका नाम चक्कर पाडी था, जो तेल उत्पादकों का क्षेत्र था। उन लोगों की तपस्या के लिए वरदान स्वरूप यहाँ महान भक्त कलिय नायनार का जन्म हुआ। जिनका ध्यान वेद भी प्रकाश के रूप में करते हैं, उन भगवान की सेवा करना ही कलियर का तप था। वे तिरुवोट्रियूर के मंदिर में दीप जलाते थे। जिनके तीन नेत्र जगत के लिए प्रकाश के तीन स्रोत हैं और जो अपने भक्तों के हृदय में सत्य की ज्योति प्रज्वलित करते हैं, उन भगवान के मंदिर पर बिना ध्यान आकर्षित किए, कलियर यह तपस्या करते थे। जैसे उन्होंने अपने हृदय में भगवान शिव के मंदिर को प्रकाशित किया था, वैसे ही उन्होंने तिरुवोट्रियूर के मंदिर के भीतर, बाहर और चारों ओर दीप जलाए। उनके हृदय के परमानंद के समान, मंदिर में प्रतिदिन दीप प्रज्वलित होते थे। ब्रह्मा और विष्णु के समक्ष अनंत ज्योति स्तंभ के रूप में प्रकट हुए ईश्वर, उस मंदिर में निवास करते थे और अपने मंदिर को सुशोभित करने के लिए नायनार की सेवा का आनंद लेते थे।
सांसारिक जीवन के उतार-चढाव ने कलियर की संपत्ति पर अपना प्रभाव डाला और वे क्रमश: दरिद्र होते गए। किन्तु इससे उनकी सेवा के संकल्प में कोई कमी नहीं आई! अपनी भौतिक स्थिति से अप्रभावित और पृथक, उनका हृदय, भक्तों के लिए सबसे बहुमूल्य संपदा, परमेश्वर के चरणकमलों में लीन था। अपनी सामाजिक स्थिति को महत्व दिए बिना, दूसरे तेल उत्पादकों के लिए तेल विक्रय करके जो वेतन उन्हें मिला, उन्होंने उससे अपनी अद्भुत सेवा अनर्गल रखी। जब धनी उत्पादकों ने उन्हें वेतन के लिए काम देने से मना कर दिया, तो कलियर ने दृढ़ संकल्प के साथ कोल्हू पर स्वयं कार्य करना प्रारंभ कर दिया। इस शारीरिक श्रम से प्राप्त वेतन का उपयोग करके उन्होंने भगवान के लिए दीपक जलाने के लिए तेल का क्रय किया और अपनी भगवत सेवा निरंतर रखी। तेल-कोल्हू पर काम करने के लिए अधिक लोगों की होड़ के कारण उन्हें पर्याप्त काम नहीं मिला। तद्पश्चात उन्होंने अपनी सेवा के लिए अपनी सारी संपत्ति बेच दी। जब अपनी प्रिय पत्नी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचा, तब वे उन्हे भी बेचने के लिए उद्यत थे! किन्तु कोई विक्रेता नहीं मिला।
कलियर ने कभी भी अपनी सेवा में बाधा नहीं आने दी और एक दिन जब उन्हे सेवा के लिए तेल नहीं मिला तो वे बहुत चिंतित हो गए। यद्यपि भगवान को किसी दीपक या नैवेद्य की आवश्यकता नहीं होती है, तथापि अनुरक्त भक्त का भागवत प्रेम संतान का लालन पालन करने वाली एक माँ के समान है, जिनकी सेवा जब बाहरी परिस्थितियों के कारण बाधित होती है तो वे असहाय अनुभव करते हैं। यह वह महान निस्वार्थ प्रेम ही है जो भगवान को भक्त की सेवा का आनंद लेने देता है। शुद्ध भक्ति के साथ, नायनार ने दृढ़ निश्चय किया कि चाहे कुछ भी हो, उस दिन मंदिर के दीपक जलाए जाएँगे। वे तिरुवोट्रियूर के मंदिर में गए। तेल के स्थान पर, उन्होंने अपने रक्त का प्रयोग करने का निर्णय लिया! उन्होंने अपना गर्दन काटना प्रारंभ किया। सेवा के प्रति उनका दृढ़ निश्चय देखकर भगवान नीलकंठ ने उनका हाथ पकड़ लिए और उन्हे रोक दिया। परमेश्वर अपनी अर्धांगिनी के साथ क्षितिज पर ऋषभारूढ प्रकट हुए। देखते ही देखते कलियर का घाव तुरंत ठीक हो गया और उनकी आँखों में प्रेम के आँसू भर आए। भगवान ने इस संसार के बंधनों से उन्हे मुक्त कर दिया और शिवलोक में स्थान दिया। कलिय नायनार की विशिष्ट सेवा हमारे मन में सदैव बनी रहे।
गुरु पूजा : आडी / केटै या कर्क / ज्येष्ठा
हर हर महादेव
See also:
63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र