प्राचीन काल में कावेरिपूंपट्टिनम या पुगार नाम की एक विख्यात नगरी थी । उसकी गिनती विश्व के पुरातन नगरों में की जाती थी । यह नगरी पूर्व चोला राजाओं की राजधानी थी और यहाँ कावेरी नदी समुद्र में प्रवेश करती है। राजधानी होने के कारण, यह एक मुख्य व्यापार केंद्र था।
इस नगरी में एक प्रमुख व्यापारी थे जिनकी अपार संपत्ति थी । वे एक शिव भक्त थे और अपना जीवन भगवान के भक्तों की सेवा में व्यतीत कर रहे थे । भगवान के भक्तों को वे कभी मना नहीं करते थे। शिवभक्तों की इच्छाएं उनके व्यक्त करने से पहले ही पूरे किए जाते थे । इस कारण उनका नाम इयरपगै पडा, अर्थात वे जिनके कर्म स्वाभिक लौकिक आचार के विरुद्ध थे । इयरपगै सुख से वैवाहिक जीवन यापन कर रहे थे । संसार को इयरपगै की निष्ठा दिखाने के लिए, एक दिन भगवान शिव ब्राह्मण शिवभक्त के रूप में उनके घर के द्वार पर प्रकट हुए। उनको देखकर इयरपगै का मुख कमल के समान विकसित हुआ और उन्होंने अथिति का आदर सतकार किया । फिर उन्होंने शिवभक्त को दान में अपनी इच्छित वस्तु माँगने का अनुरोध किया । शिवभक्त को संकोच हुआ । पर आश्वासन देते हुए इयरपगै ने तुरंत कहा –“यदि वह वस्तु मेरी है तो वह मैं आपको निस्सन्देह दूँगा । कृपया माँगिए ।” भगवान शिव जो उस भक्त के रूप में आए थे, इयरपगै की पत्नी को दान में माँगा ।
इयरपगै को बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने कहा – “यह मेरा भाग्य है कि आपने वही माँगी है जो मैं आपको दे सकूँ ।” फिर उन्होंने अपने पत्नी, जिसका अपने पति के प्रति असीम स्नेह था, को सूचित किया कि उन्होंने उन्हे उस शिवभक्त को दान में दे दिया था । उनकी पत्नी स्तंभित थी । पहले तो उन्हे चिन्ता हुई पर स्वयं को सांत्वना देते हुए, अपने पति को प्रणाम करके उन्होंने कहा – “यदि यही आपकी इच्छा है तो यह मेरा कर्तव्य है । ” इयरपगै को अपने पत्नी के प्रेम और पवित्र हृदय पर गर्व हुआ और उन्होंने उन्हे प्रणाम किया । इस एक कर्म से उनकी पत्नी महान बन गई थी ।
इयरपगै ने शिवभक्त के वेश में भगवान शिव को प्रणाम करते हुए पूछा – “मैं आपके लिए और क्या कर सकता हूँ ?” अब वह भगवान जो अपने भक्तों की रक्षा करते है, उन्होंने इयरपगै से उनके परिजनों से सुरक्षा का अनुरोध किया । तुरंत नायनार तलवार और ढाल ले कर प्रस्तुत हो गए । ऐसा लग रहा था मानो शेर आखेट के लिए उद्यत था । फिर वे उस शिवभक्त और अपनी पत्नी के अनुरक्षक बनकर नगर से बाहर जाने के मार्ग पर चलने लगे । इयरपगै और उनकी पत्नी के परिजनों को क्रोध आया और वे आपस में बात करने लगे – “इयरपगै पागल हो गया है! कोई अनजान व्यक्ति उसके पत्नी को ले जा रहा है ! हम ये होने नहीं देंगें !” वे सभी अपने शस्त्र उठा कर लड़ाई के लिए खड़े हो गए । शिवभक्त को भय से कम्पन हुआ, पर इयरपगै की पत्नी ने कहा “चिन्ता न करें प्रभु, इयरपगै की ही जीत होगी । ” इयरपगै ने सब परिजनों को चेतावनी दी । पर वे सब उसे डांटने लगे और परिवार का नाम कलंकित करने के लिए कोसने लगे । फिर वे सब शिवभक्त की ओर बड़े । क्रुद्ध होकर इयरपगै ने अपनी तलवार से उन सबका वध कर दिया । अब उसका, जिसके शीर्ष पर भगवान शिव के चरणों का मुकुट था, उस इयरपगै का सामना करने के लिए कोई भी शेष नहीं था ।
इयरपगै ने शिवभक्त को आश्वासित किया कि अब कोई डर नहीं था । दोनों, इयरपगै और उनकी पत्नी, उस शिवभक्त के पीछे चले, वह जो स्वयं भगवान शिव थे जिनके चरण ब्रह्मा और विष्णु भी नहीं पा सकते थे । जब तीनों छायावन नाम के नगर के पास पहुंचे, तब शिवभक्त ने नायनार को वापस जाने की अनुमति दी । नायनार ने प्रणाम किया और बीने पीछे देखे अपनी पत्नी को छोड़कर वहाँ से चलने लगा । भगवान शिव उसकी सच्ची भक्ति को देख बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे पुकारा – “इयरपगै! ऐसा अकल्पनीय कार्य कैसे कर लिया ! शीघ्र आओ!” इयरपगै को लगा प्राय: उसके परिजन शेष रह गए और वह अतिशीघ्र लौटा । जहाँ उसने अपनी पत्नी और शिव भक्त को छोड़ा था वहाँ अब केवल उसकी पत्नी थी । फिर वृषभ वाहन पर शिव और पार्वती देवी, जो मरकत लता के समान लग रही थी, वहाँ प्रकट हुए । नायनार ने दंडवत प्रणाम किया और भगवान की स्तुति अपने शब्दों में की । भगवान शिव ने कहा – “तुम और तुम्हारा प्रेम दोनों ही निष्कलंक है । अब से तुम और तुम्हारी निर्दोष पत्नी दोनों कैलश में वास करेंगें ।” देवों ने पुष्प वृष्टि की और ऋषियों ने प्रशंसा की जब उस दंपति को शिवपद का वर मिला । जिन परिजनों की हत्या इयरपगै के हाथों हुई, वे सभी स्वर्गलोक को प्राप्त हुए ।
हमे इयरपगै नायनार की ख्याति सदैव स्मरण रहे, वे जिन्होंने अपने जीवन से भी प्रिय, अपनी पत्नी को भगवान शिव के भक्त को अर्पण कर दी ।
गुरु पूजा : मार्गलि /उतिरम या धनुर/उत्तरम
हर हर महादेव
पेरिय पुराण – ६३ नायनमारों का जीवन