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पेरिय पुराण – ६३ नायनमारों का जीवन

    
भूतम ऐंतुम निलयीर कलंकिनुम 
मादोर बागर मलर्त्ताल मरप्पिलार 
ओदुकादल उरैप्पिन नेरि निन्रार 
कोदिलाद गुण पेरुं कुन्रनार

                                      - पेरिय पुराण श्लोक ०५.०७

अनुवाद : यद्यपि सृष्टि के पंच- भूत (धरती, जल, अग्नि, वायु, और आकाश) अस्थिर हो जाए, तदपि  वे (भक्त) उनके चरणों को स्मरण करना नहीं भूलेंगे जिन्होंने अपने शरीर के आधे भाग में देवी (परमेश्वरी) को स्थान दिया है । वे असीमित प्रेम के साथ भगवान की भक्ति के मार्ग पर स्थिर है ।  वे (भक्ति में इतने स्थिर है मानो) अकलंकित गुणों के पर्वत है । 

पेरिय पुराण नायनमारों या शिव भक्तों के इतिहास का वर्णन करता है । नायनमार ६३ (और सामान्य ९) शिव भक्तों को कहा जाता है जिन्होंने सुंदरमूर्ति नायनार के समय काल या उनसे पूर्व काल में इस भूमि को अपनी पवित्र भक्ति से सींचा था ।  सुंदरमूर्ति नायनार ने पहली बार शिव भक्तों की  प्रशंसा में तिरुवारुर शिवालय के देवाश्रय मंडप में शिव भक्तों की सभा में गाया था । इस कृति का नाम ‘तिरुतोंड तोकै’ है और इसमे ११ अनुवाक्य है । सेक्किलार स्वामी का पेरिय पुराण इसी मूल रचना - ‘तिरुतोंड तोकै’,  से प्रेरित है और ६३ शिव भक्तों के वृत्तांतों को विस्तृत करता है। 

भगवान शिव के धन्य भक्तों के जीवन पर लिखी अपनी रचना को सेक्किलार स्वामी ने ‘तिरुतोंडर पुराण’ अर्थात ‘भगवान के धन्य सेवकों का जीवन पुराण’ का शीर्षक दिया था । चूँकि यह रचना महानों के जीवन के बारे में है इसको ‘पेरियार पुराण’ अर्थात ‘महानों का जीवन पुराण’ नाम से जाना जाने लगा। बाद में यह ग्रन्थ ‘पेरिय पुराण’ अर्थात ‘महा पुराण’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।  

पेरिय पुराण में उल्लिखित प्रत्येक शिव भक्त का जीवन और परमानन्द प्राप्त करने का मार्ग भिन्न था , किन्तु उन सभी में एक समानता थी जो था उनका प्रेम और उनकी श्रद्धा उन भगवान पर जिनका आभरण बालचंद्र है (शिवजी)। प्रत्येक नायनमार ने भक्ति के चर्या, क्रिया, योग और ज्ञान में से पृथक मार्ग का चयन किया था । वे जीवन के विभिन्न आश्रमों के पालक थे – ब्रह्मचर्य (चण्डेशवर), गृहस्त (नीलकंठर), वानप्रस्थ (ऐयाडिगल काडवर्कोन) और सन्यास (तिरुमूलर)। इन सभी भक्तों के वर्ण भिन्न थे – संबंधर (ब्राह्मण), अप्पर (कृषक), निलकंठर (कुंभार), तिरुनालैपोवार (चर्मकार)। स्त्री (इसैज्ञानियार, कारैकाल अम्मैयार) और पुरुष दोनों का ही इस पेरिय पुराण में उल्लेख है । कुछ स्त्रियों को उनके महान पतियों के साथ किये पुण्य के कारण शिवपद प्राप्त हुआ था (निलकंठर की पत्नी)। नायनमारों में कुछ महान विद्वान (तिरुमूलर) और कुछ सरल भक्ति मैं उत्कृष्ठ थे (कण्णप्पर)।  कोई राजा था (पुगल चोला) तो किसी के पास रहने तक के लिए घर नहीं था (तिरुमूलर) । 

हालाँकि हर शिव भक्त की पृथक जीवन अवस्था थी, फिर भी उनके हृदयों में शिव के प्रति अपार प्रेम और भक्ति थी और उन सभी ने भगवान शिव के पूर्ण अनुग्रह का आनंद उठाया । एक सच्चा भक्त किसी भी परिस्थिति में कैसे आचार करता है यही पेरिय पुराण के हर कथा में उभर कर बाहर आता है । किसी भी भक्त की तुलना दूसरे भक्त के साथ नहीं की जा सकती है । इन सभी की जीवन कथाएं हुमे भक्ति के विभिन्न मार्गों की ओर प्रेरित करती हैं जिससे हमारा उद्धार हो और हम भी शिव-अनुग्रह के पात्र बन सके। 

पेरिय पुराण में कुछ मौलिक सीख है जिन्हे हम अपने दैनिक जीवन में अपना सकते हैं । भक्ति की अभिव्यक्ति सरल है और हम इसे अपने साधनों के अनुसार प्रकट कर सकते है । अधिकांश नायनमारों ने जो सेवा/दान किया था वह उनके उपजीविका से संबंधित था।  जैसे नेसर बुनकर थे और वे शिव भक्तों को कपड़े दान करते थे। इलैयांकुडीमारर कृषक थे और वे शिव भक्तों को अन्न दान देते थे ।  शिवलिंग पर पत्थर फेंकने जैसे साधारण कृत्य, शिव के प्रति भक्ति और प्रेम के कारण असाधारण बन जाते थे । ऐसे कहा जाता है कि शिव की सेवा में सहस्र बाधाएं आती हैं, किन्तु शिव भक्त हार ना मानकर, पहाड़ जैसे बाधाओं को भी अपनी समर्पण-शक्ति के साथ सरलता से पार कर लेते हैं।  इसी विचार को सेक्किलार स्वामी इस पृष्ठ के ऊपर लिखित “भूतम ऐंतुम” पद्य में दर्शाते है। 

भगवान शिव के कृपा के बिना ६३ नायनमारों के जीवन के बारे में पढ़ना या सुनना संभव नहीं है। इन कथाओं को ग्रहण कर, इनके भक्ति के उत्साह में लीन होना भगवान शिव का अनुग्रह ही है । इसमे कोई संदेह नहीं है कि इस पेरिय पुराण की कथाओं पर ध्यान केंद्रित करने से वे भगवान शिव, जिनका वेद भी पूर्ण रूप से वर्णन नहीं कर सकते हैं, हमारे हृदय को सदैव के लिए मोहित कर लेंगे ।  


हर हर महादेव 
 

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