logo

|

Home >

devotees >

ilayankudi-maranar-nayanar-divya-charitra

इलयाङ्कुडि मारनार नायनार दिव्य चरित्र

    
इतिहास के पृष्ठों पर इलयाङ्कुडि  नगरी का नाम प्रसिद्ध केवल इस लिए है क्योंकि वह भगवान शंकर के भक्तों के भक्त इलयाङ्कुडि मारनार नायनार का निवास स्थान था । उनके हृदय के स्वामी वे भगवान शिव थे, जो मात्र स्मरण करने से हृदयों को चुरा लेते है । खेतों मे परिश्रम कर के इलयाङ्कुडि मारनार ने अपार संपत्ति अर्जित किया था । उनका हृदय इतना विशाल था कि त्रिपुरांतक भगवान शिव के सेवकों की सेवा करने के लिए वे किसी भी सीमा तक जा सकते थे । वे एक परिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे । जब जटाधारी भगवन शिव के सेवक उनके घर आते थे, तो इलयाङ्कुडि मारनार उनका करबद्ध स्वागत करते थे । शीलवंत मुख, मधुर शब्द और विनयपूर्वक शैली में अतिथि का सत्कार करते थे।  अतिथि के चरण धोकर उन्हे उचित आसन देते थे । इसके पश्चात वे उन भक्त, जो पंचाक्षर के रस में आनंद पाते थे, उन्हें षदरसों से पूर्ण भोज परोसते थे । इलयाङ्कुडि मारनार कुबेर, जिन्हे भगवान शिव ने अपार संपत्ति का स्वामी बनाया था, के समान रहते थे । 

Ilaiyankudimara Nayanar - The History of Ilaiyankudimara Nayanar
इलयाङ्कुडि मारनार नायनार 


संसार को नायनार की शिवभक्तों के प्रति सेवा परायणता दिखने के लिए, जो धन के अभाव में भी अटल थी, उन वेद प्रशस्त भगवान शिव ने नायनार को धीरे धीरे दरिद्र बना दिया। पर दरिद्र बन कर भी नायनार की उदारता काम नहीं हुई । अपनी संपत्ति बेच कर और सीधे उपायों से ऋण लेकर, नायनार ने अपनी सेवा का स्थर काम होने नहीं दिया । भगवान, जिनका सत्य ब्रह्मा और विष्णु भी पूर्ण रूप से जान नहीं पाए , नायनार के घर एक शिव भक्त के रूप में पदारे । वर्षा ऋतु की काली रात थी, जब भीगे हुए अतिथि का नायनार के घर में आगमन हुआ । चारों ओर छाए अंधकार को मात्र अपनी भक्ति के ज्योति से प्रकाशित करते हुए, नायनार और उनकी पत्नी ने उस अतिथि का स्वागत किया जिनका निज स्वरूप ज्योति ही है । 

घर के भीतर अतिथि को लाकर, नायनार ने उन्हे, जो दिगम्बर कहलाते है, सूखे वस्त्र दिए । फिर उन्हे, जिनमे तीनों लोकों शरण लेते है, विश्राम करने के लिए स्थान दिया । जब अतिथि के भोजन की बात आई तब नायनार को चिन्ता हो रही थी कि वे कहाँ से अच्छे भोजन का प्रबंध करेंगे ? उनके स्वयं के पास खाने कुछ नहीं था। रात भी बहुत बीत चुकी थी और गाँव में भी जाकर किसी से कुछ उदार ले नहीं सकते थे । फिर उनकी पत्नी ने सुझाव दिया कि मध्यान के समय जो चावल के बीज बोए थे यदि नायनार उन्हे ले आए तो वह कुछ बना लेगी। यहाँ पर यह बताना आवश्यक है की कृषक के लिए बोए हुए चावल के बीज बहुत महत्वपूर्ण थे क्योंकि वे अगले फसल के लिए होती थी और उन्हे ग्रहण नहीं किया जाता था । पर इस परिस्थिति में, नायनार को अपनी पत्नी का सुझाव सही लगा । 


रात के अंधेरे और बारिश में, मार्ग दर्शन के लिए केवेल हृदय में भगवात-प्रेम के साथ, नायनार अपने खेतों में गए। गाँव में सब निद्रा के आलिंगन में थे और मूसलाधार वर्षा हो रही थी । पर नायनार के भक्ति की दृढ़ता को कुछ भी हिला नही सका । अपने पैरों के साथ स्पर्श करते हुए वे खेतों के भीतर चले गए। बोए हुए चावल के बीज वर्षा के कारण खेतों के कोनों में मिट्टी के साथ मिले हुए थे । एक टोकरी में सब इकट्ठा कर, नायनार शीघ्र घर लौटे । अब चावल पकाने के लिए काष्ठ ईंधन नहीं था । वे महान पुरुष जिन्होंने पहले से ही अपने अहंकार के काष्ठ को काट डाला था, उन्होंने अपने घर के आधारभूत लकड़ी को काट कर ईंधन का प्रबंध किया । पत्नी ने चावल और मिट्टी को अलग कर चावल पका लिया। पर अब यह प्रश्न उठा कि चावल के साथ क्या परोसा जा सकता है । पत्नी के सुझाव पर , नायनार फिर से घर के बाहर निकले और पालक की खेत की ओर चले । उन्होंने पालक के पौधों को ऐसे तोड़ा मानो वे अपने सब पाशों को एक ही रात में काट रहें हों। उनकी पत्नी ने पालक के साथ विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए । इसके पश्चात दोनों खाने के लिए अतिथि को जगाने गए । 
 

“प्रभु, कृपया हमारे घर का भोजन ग्रहण कर हमे धन्य करें।” यह कहते दंपति ने अतिथि के समक्ष बद्ध करों से निवेदन किया । वे सोते हुए अतिथि एक ज्योतिमय रूप में जागे । नायनार और उनकी पत्नी अचंभित रह गए । भगवान शंकर, जो सबका शं अर्थात हित करते है, अपनी अर्धांगिनी पार्वती देवी के साथ वृषभ पर प्रकट हुए। भगवान ने कहा – “मेरे प्रिय भक्तों, तुमने मेरे भक्तों की सेवा की है, अब से मेरे साथ कैलाश में वास करोगे और वहाँ कुबेर तुम्हारी सेवा करेंगे ।”

जिस दृढ़ता से इलयाङ्कुडि मारनार ने शिवभक्तों की सेवा की, वह हमारे मन में सदैव रहें ।  

गुरु पूजा : आवनी/मगम या सिंह/माघ 

हर हर महादेव 

पेरिय पुराण – एक परिचय

पेरिय पुराण – ६३ नायनमारों का जीवन


 

Related Content

पेरिय पुराण – एक परिचय

पेरिय पुराण – ६३ नायनमारों का जीवन

सेक्किलार स्वामी – ऐतिहासिक परिचय

तिरुनीलकण्ठ नायनार दिव्य चरित्र

इयरपगै नायनार दिव्य चरित्र