गणनाथ नायनार का योगदान शैव धर्म के प्रचार के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। उनके द्वारा दिखाए गए सेवा मार्ग का आज के समय में अत्याधिक आवश्यकता है। उन्होंने न केवल अपनी क्षमता में सेवा की, अपितु बहुत से उत्साही लोगों को सेवा करने के लिए प्रशिक्षित भी किया। इस संगठित सेवा ने बहुत अच्छे परिणाम दिए। शैव धर्म और सनातन धर्म के सभी महान गुरुओं ने भक्तों के मध्य सत्संग को महत्व दिया हैं। सामूहिक पूजा को सदैव श्रेष्ठ माना गया है और उसका पालन किया गया है। इससे लोगों को सीखने, अच्छे विचारों का आदान-प्रदान करने और उत्तम रीति से समाज सेवा करने का अवसर मिलता है। यदि हमारे प्राचीन ऋषियों ने अपने शिष्यों एवं ग्रंथों के माध्यम से अपनी अद्भुत विचारों को व्यक्त नही किया होता और व्यक्तिगत विकास को चुना होता, तो आज की और आने वाली संतति अंधकारमय मार्गों पर चल रही होतीं। हे प्रभु! आपकी कृपा हम सभी के माध्यम से पूरे ब्रह्मांड में प्रवाहित हो!
सीरकालि, जहाँ शिव और उनकी अविभाज्य शक्ति प्रलय के समय निवास करते हैं और जहाँ शैव धर्म के सूर्य - तिरुज्ञान संबन्धर का जन्म हुआ था, गणनाथ नायनार का जन्मस्थान है। उनका जन्म एक वैदिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने नाव पर विराजमान ईश्वर की सेवा करने के अपने सभी प्रयासों में उत्कृष्टता प्राप्त की। उस परमेश्वर के लिए उनका प्रेम अपार था, उनकी सेवा करने की प्रवृत्ति तीव्र थी, भगवत कार्यों में उत्कृष्टता उनका स्वभाव था और इसलिए उनके कठिन परिश्रम को प्रभु ने महान होने का आशीर्वाद दिया। जिस प्रकार एक तटाक पूरे नगर को जल देता है, उसी के समान उन्होंने भगवान की सेवा में कई उत्सुक धन्य आत्माओं को प्रशिक्षित किया। जैसे मधुमक्खियाँ पुष्पों के पराग से आकर्षित होती हैं वैसे ही कई लोग उनकी उत्कृष्टता और सेवा से आकर्षित हुए।
गणनाथर ने कार्यों में उपयोगी आवश्यक कौशल को लोगों की दक्षता के साथ मिलाकर, उन्हे कई क्षेत्रों में प्रशिक्षित किया। मंदिर के उद्यान की स्थापना और उसका पालन, पूजा हेतु निर्मल पुष्प का चयन, महेशश्वर के लिए मनमोहक मालाओं का गुंठन, पशुपति के अभिषेक के लिए स्वच्छ शीत जल और गोदुग्ध की व्यवस्था, भक्तों के हृदय से मैल मिटाने वाले महादेव के मंदिर की स्वच्छता, मंदिर की भूमि और पात्रों का परिमार्जन, तेल के दीयों से परंज्योति के मंदिर का अलंकार और शिव संबंधी पुराणों का निरंतर प्रचरण कुछ ऐसी सेवाएँ थीं जिनमें उन्होंने लोगों को प्रशिक्षित किया। उन्होंने मुक्ति के मार्ग पर एक पूरी सेना को उद्यत किया। उन्होंने भगवान की सेवा करके जनसमुदाय को अनुशासित और तृप्त बनाया।
सत्य, प्रेम और सेवा की संपदा से गणनाथर ने पुरुषार्थ के एक लक्ष्य को प्राप्त करते हुए सफल वैवाहिक जीवन व्यतीत किया। वे भक्तों के लिए विनम्रता के साथ आवश्यक सेवाएं प्रदान करते थे। मिथ्या संप्रदायों को समाप्त करने वाले इस संसार के वरदान तिरुज्ञान संबन्धर की वे सम्मान करते थे। संबन्धर के शब्दों और विचारों ने उन्हें बहुत प्रेरित किया। गणनाथर ने स्वयं एक सिद्धांतपूर्ण जीवन व्यतीत किया और सभी को प्रेरित किया। पृथ्वी पर अपने जीवन के अंत में, परमेश्वर के निवास पर उन्हे गण के नाथ का पद प्राप्त हुआ। गणनाथ नायनार की उत्तम सेवा हमें सदैव प्रेरित करती रहें।
गुरु पूजा : पंगुनी / तिरुवाद्रै या मीन / आर्द्रा
हर हर महादेव
See also:
63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र