चोल राज्य में पलयारै नाम की चोलों की समृद्ध राजनैतिक राजधानी थी। इसी नगर में एक सत्यनिष्ठ व्यापारी अमरनीतियार का जन्म हुआ । उनका व्यापार समृद्ध था और उनकी धन संपत्ति इतनी थी की उसमे माणिक, हीरे, स्वर्ण और अमूल्य वस्त्र थे जो दूर दूर देशों से लाए गए थे । इतनी अधिकता होते हुआ भी, उनका मन सदैव सबसे अमूल्य रत्न, पशुपति शिव की भक्ति में लीन था। विनय एक साधारण मनुष्य के लिए एक उत्तम गुण कहलाता है किन्तु एक धनिक के लिए वह आभूषण कहलाता है । अमरनीतियार बहुत उदार थे और अपना सारा धन उन नागाभूषण शिव के भक्तों की सेवा में अर्पित करते थे । वे शिवभक्तों के लिए भोज का प्रबंध करते थे और उन्हे कौपीन दान करते थे ।
तिरुनल्लूर में भगवान त्रिलोचन के उत्सव में नायनार ने शिवजी की आराधना उनके भक्तों के लिए आश्रय और भोजन का प्रबंध की । वे अपने परिवार सहित वहीं रहे और उन्होंने भक्तों की सेवा स्वयं की । एक दिन जब नायनार पूरे उत्साह के साथ भगवान के सेवकों की सेवा कर रहे थे, तब शिवजी एक ब्रह्मचारी के रूप में, जो अपने मठ परंपरा के अनुसार भस्म और शैव चिह्न धारण किए हुए थे, वहाँ आए । उन्हे देखकर अमरनीतियार का हृदय प्रफुल्लित हुआ और वे ब्रह्मचारी के स्वागत करने तुरंत प्रस्तुत हो गए । उन निष्पाप भक्त ने भगवान नीलकंठ, जिन्होंने अपना तीसरा नेत्र छिपा लिया था, को प्रणाम किया । अमरनीतियार ने ब्रह्मचारी से अपना आतिथ्य स्वीकार करने की प्रार्थना की । वैदिक ब्रह्मचारी ने स्वीकार करते हुए कहा की वे कावेरी में स्नान करके आएंगे। वर्षा होने की संभावना के कारण वे अपने एक कौपीन को सूखा रखना चाहते थे । इस लिए उन्होंने अमरनीतियार को वह अनमोल कौपीन संभाल के रखने के लिए दे दिया और कावेरी की ओर चले गए । अमरनीतियार ने तुरंत उसे सुरक्षित स्थान में रख दिया । पर वे भगवान जो तीनों दुखों के कारणों को भक्तों के हृदयों से लुप्त कर देते है, उन्होंने उस कौपीन को लुप्त कर दिया ।
क्या ब्रह्मचारी शिव ने अपनी जटाओं से बहती गंगा में स्नान किया या धरती पर बहती कावेरी में? यह तो केवल उन्हे पता था पर स्नान के पश्चात वे पूरी तरह भीगे हुए थे । वापस आकर उन्होंने अपना सूखा कौपीन माँगा। पर वह तो लुप्त हो चुका था । नायनार ने प्रत्येक स्थान देख लिया था। पर उन्हे कहाँ पता था की जो हृदयों की चोरी करते है उन्होंने स्वयं उसे चुरा लिया था । नायनार को बडा दुख हुआ और उन्होंने ब्रह्मचारी से क्षमा माँगी अथवा एक नया अमूल्य वस्त्र से बना श्वेत कौपीन प्रस्तुत किया। ब्रह्मचारी ने उसे लेने से मना कर दिया। जिन भगवान ने स्वयं कुबेर को धन संपत्ति दी थी क्या वे उस श्वेत कौपीन को स्वीकार करते? भगवान जगत को अमरनीतियार के श्वेत हृदय और अतुलनीय सेवा को प्रदर्शित करना चाहते थे । अब ब्रह्मचारी ने क्रोध में आकार नायनार पर चोरी का आरोप लगाया और उनके व्यापार की नैतिकता पर भी प्रश्न उठाया । नायनार ब्रह्मचारी के पैरों में गिर कर क्षमा माँगने लगे और अपनी पूरी धन संपत्ति देने के लिए तत्पर थे । पर इस प्रस्ताव को भी ब्रह्मचारी ने अस्वीकार कर दिया। कुछ और समय के लिए क्रोध दिखाने के पश्चात ब्रह्मचारी कहा कि वे पहने हुए गीले कौपीन के भार के तुल्य वस्त्र स्वीकार करेंगे ।
अमरनीतियार ने तोलन यंत्र का प्रबंध किया। ब्रह्मचारी, जो वास्तव मे दिगम्बर नाथ कहलाते है, उनसे गीला कौपीन ले कर नायनार ने उसे तुला के एक पलड़े में रखा और दूसरी ओर बुने हुए कौपीन रखना प्रारंभ किया। पर जिस पलड़े में ब्रह्मचारी का कौपीन था वह नीचे का नीचे रहा। नायनार ने वस्त्रों के और गठरियों को मँगवाया । किन्तु तुला में संतुलन की कोई संभावना नहीं दिख रही थी। चिंतित नायनार ने ब्रह्मचारी से अपने स्वर्ण और रत्न को तुला में रखने की अनुमति माँगी । ब्रह्मचारी की स्वीकृति पाकर अमरनीतियार ने अपनी सारी धन संपत्ति उस तुला के पलड़े मे रख दिया। पर क्या कोई ऐसी वस्तु है जो भगवान के वेद रूपी वस्त्र की तुलना कर सकती है? अमरनीतियार ने अपना सब कुछ दे दिया। अंत में केवल उनका परिवार था । अब उन्होंने ब्रह्मचारी से अपनी पत्नी और पुत्र के साथ तुला के पलड़े में बैठने की आज्ञा ली । भगवान संसार के सागर से उभरने का मार्ग दिखाते हैं, अब उन्होंने अमरनीतियार को अपने परिवार सहित पलड़े में बैठने की अनुमति दे दी । अपने आप को धन्य समझते हुए, नायनार ने परिवार सहित उस पलड़े की प्रदक्षिणा की जिसमें ब्रह्मचारी का कौपीन था और प्रार्थना की – “यदि हमारा भगवान एवं उनके भक्तों के प्रति प्रेम सच्चा है और हमारी सेवा दोषरहित, तो यह तुला संतुलित हो जाए !”। फिर पंचाक्षर का जाप करते हुए वे उस पलड़े पर चढ़ गए जहाँ उनकी सारी धन संपत्ति थी।
अमरनीतियार और उनके परिवार के निर्मल हृदय और समर्पण ने उस तुला को संतुलित कर दिया । संसार को आश्चर्य हुआ ! देवों ने प्रशंसा की ! वेदों के भगवान ने जगत को अमरनीतियार का संतुलन दर्शाया और स्वयं क्षितिज पर वृषभारूढ़ अपनी शक्ति सहित, प्रकट हो गए । उन धन्य भक्त ने भगवान की स्तुति तुला पर खड़े खड़े की । जिन भक्त ने अपनी पूरी सांसारिक संपत्ति भगवान के भक्तों की सेवा में त्याग कर दी, उन भक्त को भगवान ने अपने समीप रहना का वर दिया । अमरनीतियार और उनके परिवार के लिए कैलश प्राप्ति के लिए तुला का पल्ला दिव्य वाहन बना । भगवान के भक्तों के प्रति सेवा का जो दृढ़ संकल्प अमरनीतियार ने लिया जिसकी पूर्ति के लिए उन्होंने अपने आप को भी समर्पित कर दिया, वह हमारे मन में सदैव रहें।
गुरु पूजा : आणि / पूरम या मिथुन/ पूर्व फाल्गुनी
हर हर महादेव
पेरिय पुराण – ६३ नायनमारों का जीवन