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पुगल चोल नायनार दिव्य चरित्र

हिमालय पर्वत पर अपना ध्वज फहराने वाले साहसी पूर्व चोल राजाओं का केंद्र उरयूर था। चूंकि यह राजधानी थी, इसलिए चतुरंगिणी सेना का आवागमन होता रहता था। नगर में आकर्षक ऊंचे भवनों की आवलियां थीं। इस नगर के केंद्र में, मुकुट के समान, अर्धचंद्राभूषण से सुसज्जित, भगवान पंचवर्णेश्वर का मंदिर था, जहाँ ईश्वर एक ऋषि (उत्तङ्क) के लिए पांच रंगों में प्रकट हुए थे। आधुनिक समय मैं यह तिरुचिरापल्ली शहर के केंद्र का एक भाग है।

Pukazch Choza Nayanar - The History of Pukazch Choza Nayanarपुगल चोलर, जिनका नाम ही प्रसिद्धि का सूचक है और जिनके कर्मों ने उन्हे अमर प्रसिद्धि दिलाई, उस विख्यात नगर से शासन करने वाले राजा थे। वे सम्राट थे और आस-पास के अन्य राजाओं ने उनका आधिपत्य स्वीकार किया था। किन्तु वे शंभु और उसके सेवकों के सेवक थे। शैव धर्म की सुगंध उनके राज्य की सीमाओं में व्याप्त थी। त्रिनेत्रधारी भगवान के सभी मंदिरों में अत्यंत भक्ति के साथ समय पर पूजा की जाती थी। भक्तों की आवश्यकताओं का ध्यान राजा स्वयं रखते थे। शांति एवं समृद्धि राज्य और लोगों के मन में व्याप्त थी। भक्तों के प्रति उनका सम्मान इतना अधिक था कि जब महादेव के लिए रखे गए पुष्पों को कुचलने के कारण उनके राजकीय हाथी को एरीपत्तर ने मार डाला, तो उन्होंने एरीपत्तर से क्षमा माँगते हुए कहा, "इस अपराध के लिए केवल उस हाथी को मारना पर्याप्त न्याय नहीं है, कृपया मुझे भी मार दें!"

एक समय पुगल चोलर अपने मंत्रियों और परिवार सहित चोल वंश के एक पुरातन नगर करुवूर गए। अपने महल पहुंचने से पूर्व, उन्होंने करुवूर में पर्वत को धनुष के रूप में धारण करने वाले ईश्वर को प्रणाम किया। उनके बल और प्रेम के समक्ष नतमस्तक होने वाले राज्यों के राजाओं ने वहां उन्हे कई बहुमूल्य रत्न भेंट किए। उन्हें ज्ञात हुआ कि केवल एक राजा, अधिकन, ने उनका आधिपत्य स्वीकार नहीं किया था। सम्राट ने अपनी चतुरंगिणी सेना को शत्रु के दुर्ग पर आक्रमण करने का आदेश दिया। पुगल चोलर की शक्तिशाली एवं साहसी सेना ने दुर्ग और शत्रु को सरलता से परास्त कर दिया। वे राजा को अपनी वीरता दिखाने के लिए कटे शीर्षों के ढेर लेकर आए। तब अकस्मात एक दृश्य ने राजा को भयभीत कर दिया। उन्होंने एक कटे शीर्ष पर तामर जटा देख लिया था जो एक शिव भक्त का चिह्न था!

यद्यपि प्राचीन काल में राजा युद्ध करके अपनी राज्य की सीमाओं को बढ़ाते थे, तदापि उस दृश्य ने पुगल चोलर को ग्लानि में आप्लावित कर दिया था। उन्होंने वेदना के साथ कहा, "मैं इस साम्राज्य पर कैसे शासन कर रहा हूँ? एक भक्त के जटाधारी शीर्ष को देखने के पश्चात, मैं अपनी कीर्ति को कलंकित करके कैसे शासन कर रहा हूँ?" उन्होंने अपने मंत्रियों को आदेश दिया कि वे उनके पुत्र का राज्याभिषेक और ईश्वर भक्ति के पथ पर मार्गदर्शन करें। अपने मंत्रियों और प्रजा को दुःखि करते हुए उन्होंने अपने प्राण त्यागने का निर्णय लिया। पवित्र भस्म धारण करके, उस कटे हुए जटाधारी शीर्ष को एक स्वर्ण थाली में रखकर और परमेश्वर को अपने हृदय में स्मरण करते हुए उन्होंने अग्नि में प्रवेश किया। अपनी कीर्ति को पराकाष्ठा पर पहुँचाते हुए वे शिव के चरणों में पहुँचे। पुगल चोलर की वह भक्ति, जिसके कारण वे अपने हाथी की भूल के लिए एरीपत्तर के समक्ष अपने प्राण त्यागने के लिए तत्पर थे और जिसके कारण उन्होंने अपने सैनिकों की भूल के लिए अपने शरीर त्याग दिया, हमारे मन में सदैव रहें।

गुरु पूजा : आडी/ कृतिकै या कर्क / कृतिका     

हर हर महादेव 

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