वे दो अग्निकण थें, जिन्होंने आँधी की उपस्थिति में अज्ञानता के एक बड़े घने वन को जलाकर भस्म कर दिया। वे दो दीपक थें जिन्होंने मिथ्या दर्शन के मेघों तले अंधकार को दूर भगाया और प्राचीन पांड्य साम्राज्य में शैव धर्म के सूर्य को पुनः उदित किया। वे स्त्रियों में रत्न - रानी मंगैयर्करसियार और अत्यंत बुद्धिमान और विश्वसनीय मंत्री – कुलचिरैयार थें।
दो व्यक्ति हैं जो एक पुरुष के जीवन को सँवारते हैं। प्रथम एक माता जो उसका पालन करती है और द्वितीय उसकी पत्नी। हमारी संस्कृति में पत्नी को अर्धांगिनी कहा जाता है। एक विवाहित दंपति से धर्म और प्रेम से पोषित जीवन जीने की आशा की जाती है। एक पत्नी को एक दासी के रूप में नहीं अपितु एक सखी के रूप में माना जाना चाहिए जो अच्छे कार्यों के लिए प्रोत्साहित करती है। यदि पति धर्म के मार्ग से विमुख हो जाता है तो उसे सही मार्ग दिखाती है। मंगैयर्करसियार में एक आदर्श पत्नी के सभी गुण समाहित थे। इन्होंने अपने धैर्य, दृढ़ संकल्प, प्रेम और सबसे बढ़कर भगवान के दिव्य चरणों के प्रति अथाह भक्ति के साथ अपने पति की आँखों को अनावृत किया था।
Drama - Punitavay Malarndhazhudhar - Part 2 - Sambandhar Arriving at Madurai
मंगैयर्करसियार का जन्म चोल वंश में हुआ था। वे पार्वतीपति के प्रति सच्चे प्रेम और भक्ति के साथ बड़ी हुई। इन योग्य कर्मों और सुचरित्र वाली स्त्री ने पांड्य राजा नेडुमारन से विवाह किया। राजा नेडुमारन वीर और शक्तिशाली थे, किन्तु वे कुपथगामी थे। वे जैन धर्म से प्रभावित थे और उसका पालन करते थे। उस समय पांड्य साम्राज्य में प्राचीन और निरूपित सनातन धर्म, जो बिना किसी बल या प्रतिबंध के जीवन जीने की प्रचलित रीती थी, जैन दर्शन की छाया में था। जैन दर्शन न केवल ज्ञान में संकुचित था अपितु अपने अनुयायियों के मुक्ति हेतु कठोर नियम अधिरोपित करता था। किन्तु जनसमूह के मध्य इसे एक उच्च दर्शन के रूप में प्रचारित किया गया था। लोग बिना मार्गदर्शन के ऋषियों के माध्यम से युगों से उपलब्ध सनातन धर्म के ज्ञान के सागर को अनुभव करने में असमर्थ थे। उस प्रसिद्ध राज्य में भगवान के मंदिरों पर जैनों ने अधिक्रमण कर लिया था। जिनका मूल सिद्धांत अहिंसा था, उन्ही जैनों ने उस सिद्धांत का पुनः पुनः उल्लंघन किया।
Drama - Punitavay Malarndhazhudhar - Part 3 - Curing the Pandya King
भगवान शिव के प्रति असीम भक्ति रखने वाली मंगैयर्करसियार पांड्य राज्य की स्थिति देखकर बहुत व्यथित थीं। उन्हें चिंता थी कि उनके पति शैव के श्रेष्ठ अमृत का आनंद लेने में असमर्थ थें। अविश्वसनीय सहनशक्ति वाली उन स्त्रीरत्न ने एक नवीन भोर की प्रतीक्षा की। दूसरी और प्रधान मंत्री कुलचिरैयार थे जो राज्य के नैतिक पतन के विषय में दिन-रात व्याकुल रहते थे। इन दोनों भक्तों ने उन अंधेरे दिनों में शैव की लौ को प्रज्वलित रखा। उन्होंने राज्य के उद्धार के लिए अज्ञानता का विनाश करने वाले अंधकान्तक भगवान शिव से प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना और धैर्य तब फलित हुआ जब उन्हें एक संदेश मिला कि सीरकालि के संत तिरुमरैकाडु पहुँच गए थें। उन्होंने उनसे आशीर्वाद और उन्हें अपने राज्य में आमंत्रित करने के लिए विश्वसनीय दूतों को भेजा। दयालु बाल संत ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। चारों ओर शुभ संकेत दिखाई दिए और रानी को लगा कि अब समय आ गया था कि उनके प्रिय पति राजा का उद्धार होगा। राजा और राज्य की रक्षा के लिए आए बाल संत को प्रणाम करने की अत्यधिक उत्सुकता के साथ, उन्होंने राजा को बताया कि वे मदुरै के शिवमंदिर जा रही थी और संत का स्वागत करने के लिए चली गई। रानी और मंत्री के साथ, तिरुज्ञान संबंधर ने मदुरै में ईश्वर की पूजा की।
Drama - Punitavay Malarndhazhudhar - Part 4 - Victory at Madurai
रानी को इस बात की चिंता थी कि जैन संबंधर को कष्ट पहुंचाएंगे और उन्होंने निश्चय किया कि यदि उनके साथ कुछ अनहोनी हुई तो वे प्राण त्याग देंगी। उन्होंने परमेश्वर के उस पुत्र की सुरक्षा के लिए प्रार्थना की। जैनों ने तिरुज्ञान संबंधर के निवास स्थान में आग लगा दी। किन्तु ईश्वर की कृपा से, बाल संत ने अग्नि को राजा के उदर में स्थानांतरित कर दिया। रानी और प्रधानमंत्री यह सुनकर व्यथित हो गए कि जैनों ने संत के निवासस्थान पर आग लगा दी थी। उनकी चिंता और बढ़ गई जब उन्होंने राजा के उदर में पीड़ा के विषय में सुना। चूँकि राजा मंगैयर्करसियार का पति थे, इसलिए संबंधर ने राजा के उदर पीड़ा को धीरे से बढ़ने का आदेश दिया था। जब जैन भिक्षुओं ने राजा की पीड़ा को अपने मंत्रों से कम करने की चेष्टा की तो वे विफल हुए। तब बाल संत ने पंचाक्षर जाप करते हुए पवित्र भस्म को राजा पर लगाया। राजा का रोग तुरंत ठीक हो गया। महान रानी मंगैयर्करसियार, जिन्होंने एक आदर्श पत्नी के रूप में अपना जीवन व्यतीत किया, पति की त्रुटियों को सुधारा और उन्हे उचित जीवन जीने के लिए प्रेरित किया, इस पर बहुत प्रसन्न हुई। तिरुज्ञान संबन्धर ने जैनों के साथ विवाद स्पर्दा जीती और राजा और जनसमूह को शैव धर्म की उत्कृष्टता की शिक्षा दी। रानी अपने प्रिय पति और पूरे राज्य को जागृत करने के लिए परमेश्वर की कृतज्ञ थी। रानी मंगैयर्करसियार के धैर्य, दृढ़ संकल्प और महादेव के लिए अथाह प्रेम हमारे मन में सदैव रहें।
गुरु पूजा : चित्रै / रोहिणी या मेष / रोहिणी
हर हर महादेव
See Also:
1. तिरुज्ञान संबन्धर नायनार दिव्य चरित्र
2. कुलचिरै नायनार दिव्य चरित्र
3. निन्रचीर नेडुमार नायनार दिव्य चरित्र