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कुंगुलिय कलय नायनार दिव्य चरित्र

चोल राज्य में जहाँ कुल्याएं कावेरी नदी के पानी को खेतों तक ले जाती हैं, वहाँ कडवूर नाम का  एक नगर है। वहाँ ऊंचे नारियल के पेड़ थे जो चामर के समान वहाँ के भगवान की सेवा करते थे । यह भूमि धान्य और भगवत भक्ति दोनों में समृद्ध थी । निरंतर हो रहे वैदिक अनुष्ठानों के कारण, यज्ञ अग्नि में आहुति के रूप में डाले जाने वाले घी की गंध वहाँ पड़ने वाली वर्षा में भी आती थी।
 

Kungiliya Kalaya Nayanar - The History of Kungiliya Kalaya Nayanar
Kunguliyam for Lord Shiva in exchange of Mangal Sutra!

उस नगर में एक ब्राह्मण कलय रहते थे जो शिव भक्त थे और सभी प्राणियों के प्रति करुणा की दृष्टि से सोचने वाले लोगों की परंपरा में आते थे। उनकी करुणा उनकी अनुशासित जीवन शैली के कारण परिवर्धित थी । इसी करुणा के साथ उन्होंने भगवान शूलपाणि की सेवा करते हुए अपना जीवन व्यतीत किया।  ये वही भगवान है जिन्होंने एक शरणागत ऋषि युवक के लिए यमराज को मारने हेतु त्रिशूल उठा लिया था। प्रभु के प्रेम में पिघलते हृदय के साथ नायनार प्रतिदिन गुग्गुल (एक गंधराल) का सुगंधित धूप भगवान को, जिन्हें वेदों में "सुगंधिन्" कहा गया है, अर्पण करते थे। यही उनकी सरल भगवत सेवा थी। उन्होंने बिना किसी संकोच के अपनी सारी संपत्ति उस सेवा में व्यय कर दी ।

जब उनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था और उनका परिवार कष्ट में था, तो भगवत सेवा में नायनार की सहभागी, उनकी पत्नी ने भोजन के लिए चावल लाने के लिए अपना मंगल-सूत्र दे दिया। जब वे मंगल-सूत्र बेचकर कुछ चावल खरीदने जा रहे थे, तभी उसी मार्ग पर गुग्गुल बेचने वाला एक व्यापारी आया। वे जनेऊधरी भक्त गुग्गुल को देखकर अति प्रसन्न हुए । उन्हे लगा ये तो स्वयं भगवान का आशीर्वाद है, जिन्होंने गंगा को धारण किया था। अब उस दिन भी वे भगवान की सेवा कर सकेंगे । बड़ी श्रद्धा के साथ, उन्होंने गुग्गुल की एक बोरी के बदले में मंगल-सूत्र बेच दिया। वे सीधे भगवान के मंदिर की ओर चल पड़े । भगवत प्रेम के अमृत से परिपूर्ण अपने हृदय के साथ, उन्होंने सम्पूर्ण गुग्गुल भगवान को अर्पण कर दिया, वे भगवान जो वास्तव में स्वयं दिव्य अमृत थे। 

जब उनका भक्त मंदिर में उनकी सेवा में व्यस्त था, तब सर्वशक्तिमान प्रभु ने धन के देवता कुबेर को भक्त के घर को धन से भरने का आदेश दिया। जब पूरा परिवार भूख से सो रहा था, तब भगवान अपने वृषभ पर आरूढ़ होकर नायनार की पत्नी के स्वप्न में प्रकट हुए और उन पर की गई कृपा का संकेत दिया। जैसे ही वे इस सुखद सपने से जागी, उन्होंने सुखद वास्तविकता देखी – उनका घर अब एक धनवान घर में परिवर्तित हो चुका था। उन्होंने कृतज्ञता से प्रभु की स्तुति की, वे प्रभु जो सांसारिक दोषों से पीड़ित लोगों के एकमात्र आश्रय है। फिर उन्होंने अपने प्रिय पति के लिए स्वादिष्ट भोजन पकाया। इसी बीच, भगवान ने नायनार  को घर लौटने और चावल-दूध पायस से अपनी भूख मिटाने का आदेश दिया। भगवान की आज्ञा की अवहेलना करने में असमर्थ, नायनार ने खड़े होकर भगवान को प्रणाम किया और घर चले गये । जब वे अपने घर पहुंचे तो उसे पहचान नहीं पाये।   वह घर पूर्णतः बदल गया था और ऐश्वर्य से परिपूर्ण हो गया था । संदेह वश उन्होंने अपनी पत्नी से पूछताछ की। उनकी पत्नी ने भगवान शिव की कृपा के बारे में बताया। इसके पश्चात दोनों ने साथ में भगवान के चरणों की पूजा की और महादेव के भक्तों के लिए एक भव्य भोज का आयोजन किया । नई प्राप्त संपत्ति के साथ नायनार ने भगवान की सेवा अनवरत रखी।

जिस समय नायनार तिरुक्कडवूर में भगवान की सेवा कर रहे थे, उस समय राज्य के राजा तिरुप्पनंदाल में भगवान को सीधा खड़ा देखना चाहते थे। तिरुप्पनंदाल में शिवलिंग उस समय से झुका हुआ था जब से भगवान ताड़का नाम की एक दिव्य युवती की पूजा में सहयता करना चाहते थे। राजा ने शिवलिंग को सीधा करने के लिए अपनी सारी शक्ति लगा दी – वे शक्तिशाली हाथियों और कई सैनिकों ले आए । वे सभी थक गए किन्तु प्रभु का रूप सीधा नहीं हुआ । कुंगुलियम कलय नायनार को राजा का उद्देश्य अच्छा लगा, इसलिए उन्होंने इस प्रयास के लिए अपना योगदान देने का निर्णय लिया । उन्होंने तिरुप्पनंदाल की हरी-भरी भूमि तक यात्रा की, मार्ग में परशु धारी भगवान के कई पवित्र मंदिरों के दर्शन किए।

नायनार शिवलिंग को सीधा करने के महान प्रयास में सहयता करना चाहते थे। अपने हृदय में अत्यंत प्रेम भरकर उन्होंने शिवलिंग को एक माला पहनाया और उसमें एक रस्सी बाँध दी। रस्सी का दूसरा सिरा नायनार की गर्दन से बंधा हुआ था। उन्होंने अपनी शक्ति दिखाने के लिए नहीं, अपितु भगवान की सेवा में भाग लेने के लिए रस्सी खींची। उनके पास अधिक शारीरिक शक्ति तो नहीं थी, किन्तु उन्होंने प्रभु के प्रति अपने प्रेम की शक्ति से इस न्यूनता की पूर्ति कर ली। निःस्वार्थ प्रेम के इस प्रदर्शन से भगवान कैसे नहीं पिघलते? भगवान ने नायनार के परिपक्व प्रेम को आशीर्वाद देते हुए शिवलिंग को सीधा कर दिया । आकाश से पुष्पों की वर्षा होने लगी। राजा भगवान के महान भक्त के चरणों में गिर पड़े । इसके पश्चात राजा ने तिरुप्पनंदाल में भगवान की कई सेवाएँ कीं और अपनी राजधानी के लिए प्रस्थान किया। नायनार भी कुछ दिनों के बाद तिरुक्कडवूर में अपने घर लौट आए।

कुछ समय बीत गया। तिरुतांडकम के रचयिता अप्पर और बाल संत तिरुज्ञान संबंधर, अपनी तीर्थयात्रा के दौरान तिरुक्कडवूर पहुंचे। नायनार ने उनकी और उनके साथ आये भक्तों का अतिथी-सत्कार किया और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। नायनार विभिन्न उपायों से भगवान मृत्युंजय की सेवा करते रहे और अंततः भगवान के सुगंधित चरण प्राप्त किए। कुंगुलियम कलय नायनार की सरल, मधुर, अनुशासित और दृढ़ भक्ति सदैव मन में रहे।

गुरु पूजा : आवणि / मूलम या सिंह / मूल   

हर हर महादेव 

See also:
1. Thirunavukkarasu Nayanar(appar)
2. Thirugnanasambandha Nayanar

 

63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र 


 

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