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कोचेङ्गण चोल नायनार दिव्य चरित्र

Kotchengatchozha Nayanar - The History of Kotchengatchozha Nayanarप्रसिद्ध चोल राजाओं द्वारा शासित राज्य में, जिस वंश के राजा ने एक बार शरणागत कपोत की रक्षा के लिए अपना शरीर से मांस दिया था, एक वन था। वहाँ काविरी नदी बहती थी, जिसमें चंदन की लकड़ियाँ प्रवाह करती थी जिस कारण से वन सुगंधित प्रतीत होता था। उस वन के मध्य में चंद्र तीर्थ के तट पर पुष्पों का एक उद्यान था। उस पुष्प उद्यान में, श्वेत-जामुन वृक्ष की छाया में एक शिवलिंग प्रकट हुआ। वहाँ एक महान तपस्वी श्वेत हाथी था जो प्रतिदिन भगवान का जल से अभिषेक करता था, अपनी सूँड़ में पुष्प लाता था और पूजा करता था। उसी स्थान पर एक मकड़ी थी जो भगवान के निवास पर जाल बुनकर महादेव की पूजा कर रही थी ताकि उस शिवलिंग पर कोई सूखा पत्ता न गिरे। दोनों प्राणी बड़े प्रेम से शिव की सेवा और पूजा कर रहे थे।

जब हाथी पूजा के लिए आया, तो उसने भगवान के ऊपर जाल देखा और उसे अपवित्र पाकर उसने अपनी सूंड से हटा दिया और अपनी पूजा समाप्त कीं। हाथी द्वारा उसकी सेवा में बाधा डालने पर मकड़ी को बुरा लगा। उसने भगवान की सेवा करने के लिए पुनः शिवलिंग के ऊपर जाल बुना। अगले दिन हाथी ने फिर से मकड़ी के जाल को हटाया और मकड़ी को क्रोध आ गया। उसने सूंड में प्रवेश किया और हाथी को काट लिया। तीव्र पीड़ा के कारण हाथी भूमि पर मृत गिर पड़ा। हाथी के गिरने के कारण मकड़ी ने भी अपने प्राण खो दिए। मकड़ी और हाथी दोनों की इस अद्भुत सेवा के कारण, इस स्थान को तिरुवानैक्का (गजारण्य क्षेत्र) के नाम से जाना गया। परमेश्वर ने हाथी को वरदान दिया और मकड़ी को प्राचीन चोल राजवंश में जन्म लेकर भूमि पर शासन करने का आशीर्वाद दिया।

चोल राजा शुभदेवन ने अपनी रानी कमलावती के साथ तिलै के नटराज के पवित्र चरणों में सेवा की। उत्तराधिकारी न होने से व्यथित रानी ने भगवान से प्रार्थना की और उनकी कृपा से, महान सेवा करने वाली मकड़ी ने उनके गर्भ में प्रवेश किया। जब रानी शिशु को जन्म देने वाली थी, तो उन्होंने ज्योतिषियों को यह चर्चा करते हुए सुना कि यदि शिशु एक नाडिका पश्चात जन्म ले, तो शिशु एक विशाल साम्राज्य पर शासन करेगा। रानी ने तुरंत अपने पैरों को ऊपर उठाने का आदेश दिया ताकि निर्दिष्ट समय तक जन्म को रोका जा सके। निर्दिष्ट समय पर, रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया और प्रेम से चीका "कोचेन कण्णानो!!" (ओह! लाल आँखों वाले!!)। रानी शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गई। राजा ने अपने प्रिय पुत्र को बड़ा किया और उसे राज्य भार सौंप कर वनवास के लिए प्रस्थान किया।

राजा, कोचेङ्गण चोलर ने भगवान की कृपा से अपने पूर्व जन्म की सेवाओं को स्मरण करते हुए, भूतेश्वर के लिए कई अद्भुत मंदिर बनाने की इच्छा व्यक्त की। वे अपने पूर्व जन्म के स्थान, तिरुवानैक्का गए और मृत्युंजय के लिए एक विशाल मंदिर का निर्माण किया। उन्होंने अपने मंत्रियों को सभी दिशाओं में भेजा और राज्य के सभी क्षेत्रों में अष्ट-भुजाओं वाले ईश्वर के लिए विशाल मंदिरें बनवाई। उन्होंने ऐसे मंदिर बनवाए जिनमें हाथी प्रवेश नहीं कर सकते क्योंकि वे एक मंजिल ऊपर बनाए गए थे। इसलिए इन्हें माडकोयिल (मंजिला मंदिर) कहा जाता है।   उन्होंने उन मंदिरों के निर्वाह के लिए भी दान दिया। अपने प्रभुत्व के छत्र के नीचे उन्होंने एक विशाल साम्राज्य पर न्यायपूर्वक शासन किया। वे तिलै में नटराज के चरणों को प्रणाम करने गए। उन्होंने तिलै के अनुशासित ब्राह्मणों, जिनका जीवन केवल परमेश्वर की सेवा में व्यतीत होता था, के लिए भवन निर्माण किए। समस्त भूमि उनकी सेवाओं की प्रशंसा करते हुए, कोचेङ्गण चोलर ने भगवान के पवित्र चरणों को प्राप्त की। कोचेङ्गण चोल नायनार की महान और पवित्र भक्ति, जिसके साथ उन्होंने भगवान के लिए विशाल, अद्भुत और असंख्य मंदिर बनवाए, हमारे मन में सदैव रहें।

कोचेङ्गण चोलर द्वारा निर्मित कुछ मंदिर (माड-मंदिर)

  1. आक्कुर तान्तोन्रिमाडम 
  2. आनाङ्गूर
  3. आवूर्पशुपतीश्वरम 
  4. अम्बर पेरुन्तिरुकोयिल 
  5. अरिसिर्करैपुत्तूर
  6. इलवनसुर्कोट्टै (उलुनदूरपेट्टै – तिरुकोविलूर के समीप)
  7. इन्दलूर – तान्तोन्रियप्पर 
  8. कैस्सिनम 
  9. कील्वेलूर
  10. कुडवायिल 
  11. कूत्तप्पर – तिरु-एरुम्बूर के समीप 
  12. मलैयीश्वरम (नागपट्टिनम)
  13. मरुगल 
  14. मूकीश्वरम (उरैयूर) 
  15. नालूर पेरुन्तिरुकोयिल 
  16. नल्लूर
  17. नन्निलम
  18. निन्रियूर 
  19. पशुपतिकोयिल (पशुमङ्गै) – अय्यमपेट्टै के समीप 
  20. पलैयायरै वडतलि 
  21. पेरुङ्कडम्बनूर (नागपट्टिनम से तिरुमरुकल)
  22. पेरुवेलूर
  23. सट्टैनाथर (नागपट्टिनम)
  24. सेय्ञलूर 
  25. सिक्कल
  26. तलैच्चङ्काडु 
  27. तलैच्चङ्काडु – दक्षिणेश्वर मंदिर 
  28. विर्कुडि 
  29. रुद्रगंगै (पून्तोट्टम और कोत्तवासल के समीप)
  30. मदलिवेलूर (मदरिवेलूर)   नागपट्टिनम जिला 
  31. गजारण्य – श्री गजारणेश्वर मंदिर (कल्लनै; तिरुचिरापल्लि के समीप)
  32. इलङ्काडु – श्री पल्लवनेश्वर मंदिर (कल्लनै; तिरुचिरापल्लि के समीप)
  33. ऊरुडैयप्पर – तिरुपननदल 
  34. चोलिय वलकम – चमुण्डेश्वर (सीरकालि - तिरुपननदल मार्ग, ५ की.मी पन्दनैनल्लूर से)
  35. पनमंगलम वारणपुरीश्वर मंदिर (समयपुरम के समीप)
     

गुरु पूजा : मासी / सदयम या कुम्भ / शतभिषा 

हर हर महादेव 

 

63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र 

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