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सुंदरमूर्ति नायनार दिव्य चरित्र - भाग ६ - परवै कादलर (परवै के प्रेमी)

वसंत के आगमन के साथ दक्षिण से प्रवाहित पवन ने तिरुवारूर के भगवान का स्मरण कराया। सुंदरर वसंत उत्सव के समय अपने भक्तों के मध्य सुंदर नृत्य करते तिरुवारूर में भगवान को नमस्कार करने के लिए उत्सुक हुए। तिरुवारूर के प्रभु की स्मृतियों में आप्लुत सुंदरर ने विलाप किया - "मेरे प्राण – आरूर के भगवान, मैं आपके बिना कैसे रहूँ?" तिरुवोट्रियूर में भगवान को नमस्कार करते हुए, उन्होंने तिरुवारूर के लिए प्रस्थान किया। परमेश्वर की उपस्थिति में संगीलियार को दिए वचन को तोड़ने के कारण उनकी आँखों की ज्योति तुरंत चली गई और उन्हें अपना मार्ग खोजने में संघर्ष करना पड़ा। संगीलियार के विश्वास को तोड़ने से दुखी और भगवान से दया की याचना करते हुए, तिरुवारूर के भगवान के प्रति अपनी अटूट भक्ति के साथ, वे आगे बढ़े। उन्होंने तिरुमुल्लैवायिल में भगवान की कृपा के लिए प्रार्थना की। तद्पश्चात वेनपाक्कम में प्रभु ने उन्हें एक छड़ी दी और उन्हें आश्वस्त किया - "मैं तुम्हारे साथ हूँ, आगे बढ़ो!" पलय्यनूर तिरुवालंकाडु और तिरुवूरल में ईश्वर के दर्शन करते हुए वे कांची पहुँचे।

भक्तों की सहायता से तिरुकामकोटम में साष्टांग प्रणाम करते हुए सुंदरर तिरुएकम्बम में प्रविष्ट हुए। उन्होंने भगवान के चरणों में शीर्ष झुकाकर उन्हें प्रणाम किया और प्रार्थना की कि उन्हें भगवान के उस सुंदर रूप के दर्शन हेतु नेत्र-दृष्टि प्रदान करें। भगवान ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उनकी बायीं आँख की ज्योति लौटा दी। तिरुएकम्बम के भगवान को देखकर सुंदरर आनंदित हुए और एक देवारम में इस अनुभव के विषय में गाया। उन्होंने तिरुवामात्तूरमें भगवान को प्रणाम किया और तोंडै मंडल की सीमा पार की। उन्होंने तिरु-अरतुरै, तिरुवावडुतुरै और तिरुतुरुति में भगवान की स्तुति की। मार्ग में कई अन्य मंदिरों में भगवान के विषय में गाते हुए वे भगवान के अपनी नगरी तिरुवारूर पहुँचे जहाँ उनका हृदय वास करता था। उस पवित्र नगर में भगवान के मंदिरों को प्रणाम करते हुए, वनतोंडर प्रभु के दिव्य धाम पहुँचे। विलाप करते हुए, उन्होंने अपने हृदय की भावनाओं को प्रभु के समक्ष “मिला अडिमै” से प्रारंभ देवारम के व्यक्त किया, “हे भगवान! मैंने स्वयं को आपके दास के रूप में समर्पित कर दिया है! जब मैं संकट में होता हूँ तो आप कुछ नहीं करते, हे भगवान! तो में किससे याचना करूं!” दया के सनातन स्रोत ने उनकी दाहिनी आंख की ज्योति भी लौटा दी। सुंदरर ने कृतज्ञता के साथ, भक्ति में पुन: पुन: शीर्ष झुकाया।

जब परवैयार को ज्ञात हुआ कि आरूरर ने संगीलियार से विवाह कर लिया है, तो वे क्रोधित हो गईं। तिरुवारूर लौटने पर सुंदरर के साथ तीर्थयात्रा पर गए अन्य भक्तों को परवैयार ने अपने घर में प्रवेश करने से रोख दिया। उन्होंने तुरंत सुंदरर को इसकी सूचना दी। उनके क्रोध को शांत करने के लिए आरूरर ने नगर के मुख्य व्यक्तियों को भेजा, किन्तु परवैयार ने उन्हें पुन: लौटा दिया। चिंतित, नंबियारूरर को निद्रा नही आई, उन्होंने अपनी समस्या को हल करने के लिए पुनः प्रभु से प्रार्थना की। भगवान ने तुरंत उस देर रात्रि को आरूर नगर में अपने पवित्र चरण रखे। रोमहर्षित, नायनार ने उन्हें प्रणाम किया। उन्होंने भगवान से उनके और परवैयार के मध्य की समस्या को हल करने का अनुरोध किया। जिनके पवित्र चरण ब्रह्मा और विष्णु ने भी नहीं देखा, वे प्रभु अपने भूत गण, सिद्धों और देवताओं के साथ तिरुवारूर के मार्गों से चलते हुए परवैयार के घर गए। भगवान एक वृद्ध भक्त के वेश में परवैयार के घर गए। देर रात को एक भक्त के आने पर आश्चर्यचकित परवैयार ने आगंतुक का अभिवादन किया। भगवान ने अपने आने का उद्देश्य बताया और उसे सुंदरर के साथ समाधान करने के लिए कहा। किन्तु परवैयार ने स्वीकार नही कियाा। भगवान इस लीला का आनंद को कुछ समय उठाने के उदेश्य से, सुंदरर के समीप लौटे। 

परवैयार के उत्तर को सुनने के आतुर, आरूरर ने प्रभु को मन्द स्मिता के साथ आते हुए देखा, किन्तु उनका संदेश निराशाजनक ही था। उन्होंने पुन: भगवान से उस वैमनस्य को समाप्त करने की विनती की। इस बार सवयं के रूप में महादेव पुनः परवैयार के घर गए, और उनसे सुंदरर को स्वीकार करने के लिए कहा। परवैयार को तब अनुभव हुआ कि वृद्ध दूत भी छद्मवेश में ईश्वर ही थे। कराञ्जलीबद्ध, उन्होंने परमेश्वर के शब्दों को आदेश मानकर नमन किया! भगवान ने आशीर्वाद दिया और स्वीकृति के संदेश के साथ सुंदरर के पास लौट आए। प्रभु को धन्यवाद देते हुए, भोर की पहली किरण के साथ, आरूरर परवैयार के घर के लिए चल पड़े । परवैयार ने हृदय से उनका स्वागत किया। वे अद्वितीय ईश्वर की स्तुति करते हुए तिरुवारूर नगर में रहने लगे।

sundarar Eyarkon Kalikkamarपरमेश्वर के एक और महान भक्त एयर्कोन कलिक्काम नायनार, वैवाहिक कलह को सुलझाने के लिए ब्रह्मांड के सर्वोच्च भगवान को दूत के रूप में भेजने के सुंदरर के कृत्य से, क्रुद्ध थे। सर्वशक्तिमान के प्रति प्रेम के कारण, उन्होंने विलाप किया, "वह किस तरह का सेवक है जो स्वामी को एक स्त्री के समीप संदेश ले जाने का आदेश देता है!" अपने और अपने भक्तों के प्रति सुंदरर के वास्तविक स्नेह और सेवा से विदित महादेव, कलिक्कामर को सुंदरर का सहयोगी बनाना चाहते थे। कलिक्कामर को सूलै (जठर का एक पीड़ादायक रोग) हुआ। उन्हें बताया गया कि इसे केवल वन्तोंडर ही ठीक कर सकते थे। परमपिता ने वन्तोंडर को कलिक्कामर के रोग की चिकित्सा करने का आदेश दिया। सुंदरर एयर्कोन के घर की ओर चल पड़े। एयर्कोन को सूलै रोग की पीड़ा सुंदरर की चिकित्सा से अधिक मान्य थी। वन्तोंडर द्वारा ठीक होने के लिए अनिच्छुक, कलिक्कामर ने असि से स्वयं के प्राण ले लिए। सुंदरर उनके घर पहुंचे। स्वयं एक अद्भुत भक्त, एयर्कोन की पत्नी ने सुंदरर का स्वागत करने के लिए पति के शरीर और अपने दुख दोनों को छिपा लिया। किन्तु जैसे ही सुंदरर को इस आश्चर्यजनक घटना के विषय में ज्ञात हुआ, उन्होंने स्वयं के प्राण लेने के उद्देश्य से असि उठा ली। तत्समय महादेव की कृपा से, एयर्कोन पुनर जीवित होकर सुंदरर के हाथों को पकड़ लिया। उन्होंने प्रेम से एक-दूसरे को प्रणाम किया। भक्ति के दो रत्न घनिष्ट मित्र बन गए और दोनों ने एक साथ तिरुप्पुंकूर और तिरुवारूर में प्रभु को प्रणाम किया।

गुरु पूजा : आडि / स्वाती या कर्क / स्वाती   

हर हर महादेव 

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See also:
 

63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र 


 

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