नंबियारूर ने तिरुवारूर में निवास करते, भगवान और उनके भक्तों की सेवा की, तिरुतोंड तोकै गाया और वहाँ वल्मीक में उपस्थित भगवान पर अन्य देवराम भी गए। वहाँ एक किसान कुण्डयूर किलार थे जो आरूरर को बहुत मानते थे। वे श्रद्धा से सुंदरर के घर में चावल, दाल और अन्य खाद्यान्न की आपूर्ति करते थे। एक बार वर्षा न होने से कृषि उत्पादन कम हो गया। किसान-भक्त इस चिंता में पड़ गए कि वे इस स्थिति में आरूरर की सेवा कैसे करेंगे। उन्होंने व्याकुलता से रात बिताई। भक्ति से शीघ्र प्रसन्न भगवान उनके स्वप्न में प्रकट हुए और कहा कि वे आरूरर के लिए अन्न की आपूर्ति करेंगे। अगली सुबह नगर की सीमा तक पहुँचने वाला अन्न का एक विशाल पहाड़ देखकर वे स्तंभित रह गए। उन्होंने भगवान की महिमा और उनके भक्तों पर उनकी कृपा की सहजता की प्रशंसा की। अब अनाज का ढेर परवैयार के घर तक पहुंचाने एक कठिन कार्य था। कुण्डयूर के किलार ने आरूरर के समक्ष समर्पण करते हुए भगवान की कृपा और अनाज को पहुँचाने में असमर्थता के विषय में बताया।
आरूरर किसान के साथ कुण्डयूर आए। अनाज के ढेर को देखकर, उसे आरूर तक पहुंचाने की व्यवस्था करने के लिए, उन्होंने कोलिली में प्रभु के चरणों में स्वयं को समर्पित कर दिया। उस रात भगवत कृपा से, शिव-गण सेना ने पूरे अन्न के ढेर को आरूर पहुंचा दिया। परवैयार ने प्रभु की कृपा की प्रशंसा करते हुए घोषणा की कि अपने घरों की सीमा के भीतर पड़े अन्न के ढेर को नगरवासी स्वयं के लिए ले जा सकते हैं और स्वयं आवश्यकता के अनुसार अन्न ले गईं। नगरवासियों ने उनकी उदारता की प्रशंसा की।
तम्पिरान तोलर, भक्त कोट्पुलियर के अनुरोध पर नाट्टियत्तानकुडी गए। वहाँ कोट्पुलियर ने उनकी पूजा और अतिथि सत्कार किया। उन्होंने अपनी दो प्रिय पुत्रियों – वनप्पकै और चिङ्गडी, को आरूरर की सेवीकाओं के रूप में प्रदान किया। किन्तु आरूरर ने उन्हें अपनी स्वयं की पुत्रियों के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने नाट्टियत्तानकुडी के भगवान पर रचित देवारम में कोट्पुलियर के प्रेम की प्रशंसा की। वलीवलम में भगवान के दर्शन करते हुए, वे तिरुवारूर लौट आए। परवैयार को पंगुनी उत्तिरम उत्सव के लिए दान देने के लिए धन की आवश्यकता थी। हमारे नायनार जो अपनी आवश्यकताओं के लिए केवल भगवान से याचना कारते थे, तिरुपुकलूर गये। वहाँ मंदिर में भगवान के दर्शन के पश्चात थकान के कारण मंदिर के बाहर ही सो गये। जब वे जागे तो उन्होंने देखा कि सोते समय जिन ईटों को उन्होंने अपने सिर के नीचे रखा था वे स्वर्ण में परिवर्तित हो गए थें। उन्होंने एक देवारम गीत गाया जिसमें उन्होंने प्रख्यापित किया कि केवल भगवान की उदारता ही प्रशंसा योग्य है, न कि इस संसार के किसी अन्य की। तिरुपनैयूर में भगवान को प्रणाम करते हुए, वे दान हेतु उन स्वर्ण ईटों को तिरुवारूर ले आए।
नावलूर के राजा यात्रा करते हुए करकुडी, तिरुवारै मेट्रली, इन्नंबर, पुरंबयम, कुडलैयाटरूर के मंदिरों में भगवान के दर्शन कर, तिरुमुदुकुन्रम पहुंचे। वहाँ जब उन्होंने प्रभु के लिए देवारम समर्पित किया तो उन्हे १२००० स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त हुईं। भगवान ने मणिमुत्तारू नदी में स्वर्ण को गिराया और तिरुवारूर के तालाब में उन्हे पुनः प्राप्त करने का आदेश दिया। सुंदरर कडम्बूर, तिलै, करुप्परियलूर, मन्निपडिक्करै, वालकोली पुत्तूर, कनाट्टू मुल्लूर, तिरु-एदिरकोल पाडी और तिरुवेल्विक्कुडि, तुरुती में प्रेम स्वरूप प्रभु को नमन करते हुए तिरुवारुर के मार्ग पर अग्रसर हुए। तिरुवारूर के विदि विदनगर में दर्शन करके वे घर पहुंचे।
गुरु पूजा : आडि / स्वाती या कर्क / स्वाती
हर हर महादेव
<<Prev सुंदरमूर्ति नायनार दिव्य चरित्र - भाग ३ - तम्पिरान तोलन (प्रभु के मित्र) | Next >> सुंदरमूर्ति नायनार दिव्य चरित्र - भाग ५ - संगिली कोलुनर (संगिली के पति) |
63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र