भगवान तिरुवारूर के भक्तों के स्वपनों में प्रकट हुए और उन्हें आरूरर के उनके नगर में आगमन की सूचना दी। भक्त आश्चर्यचकित थे कि भगवान स्वयं उन्हें एक भक्त का स्वागत करने का आदेश दे रहे थे जिससे उन्हें अरूरर की महानता की अनुभूति हुई। तिरुवारूर के घरों और सड़कों को उत्साह और सम्मान के साथ आरूरर के स्वागत करने के लिए सजाया गया था। भक्त गण ने नगर परिसर ही में सुंदरर का भव्य स्वागत किया। आरूरर और अन्य भक्तों ने श्रद्धापूर्वक एक-दूसरे को नमन किया। जिस भक्त को स्वयं भगवान ने दास बनाया था ने यह कहते देवारम गाया कि क्या तिरुवारूर के भगवान उसे स्वीकार करेंगे! वे भक्तों के समूह के साथ प्रभु के पवित्र मंदिर – तिरुमूलस्थानम गए। कृपालु भगवान के चरणों में उत्साह के साथ पुनः पुन: नमस्कार और साष्टांग प्रणाम करते वे आगे बढ़े। जब वे भक्ति में मग्न थे, तब विज्ञान और ज्ञान से परे किन्तु भक्ति से सरलता से प्राप्त प्रभु ने एकत्रित भक्तों के समुदाय के मध्य स्वयं को उस सच्चे भक्त का मित्र घोषित किया और सुंदरर को उसी भव्य पोशाक में रहने का आदेश दिया जिनमें वे प्रथम बार प्रभु से अपनी विवाह पर मिले थे। महान भक्त ने भगवान की महिमा का गुणगान करते हुए विनम्रतापूर्वक उन्हें प्रणाम किया। तब से भक्तों ने उन्हें "तम्पिरान तोलर" (प्रभु के मित्र) कहना प्रारंभ किया। तद्पश्चात सुंदरर प्राय: वैभवशाली वस्त्र, सुगंधित माला, चंदन की मीठी गंध और राजसिक स्वर्ण छड़ी के साथ देखे जाते थे। किन्तु अपने हृदय में वे भगवान और उनके भक्तों के विनम्र सेवक ही थे। वे तिरुवारूर में रहने लगे और वहां अद्वितीय सर्वोच्च प्रभु की सेवा करने लगे।
इस बीच, देवी शक्ति की दो परिचारिकाओं में से एक, कमलिनी, जिसे अलाला सुंदरर से प्रेम हो गया था, का जन्म यायावर मंदिर-नर्तकियों की परंपरा में आरूर में परवैयार के रूप में हुआ था। सुंदर रूप, मधुर वाणी और आनंदमय शिव-शक्ति के प्रति परिपक्व भक्ति से संपन्न, वे देखने में अद्भुत थीं। एक दिन जब वे अपनी सखियों सहित मंदिर जा रही थी, आरूरर उसी मंदिर से भक्तों के साथ लौट रहे थे। उसी क्षण आरूरर युवती परवैयार से मोहित हो गया और अपना हृदय उसे समर्पित कर गए। कामदेव ने उसी समय परवैयार पर भी प्रहार किया। आरूरर को देखते ही उनका मन भी नियंत्रिण में न रहा। किन्तु, भगवान चन्द्रमौलि के प्रति प्रेम ने उन्हें मंदिर में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया। आरूरर ने साथ आए भक्तों से उस सुंदर युवती के विषय में पूछा। उन्हे यह ज्ञात हुआ कि उनका नाम परवै था और उन्हे प्राप्त करना देवताओं के लिए भी कठिन था। आरूरर मंदिर के भीतर परवैयार को देखने की इच्छा से गए। किन्तु, तब तक वे अपनी पूजा पूरी कर चुकी थी और वहां से चली गई थी। वे निराश हो गए। अपने मन से उस लावण्य सुंदरी को पृथक करने में और सोने में असमर्थ, आरूरर ने भगवान से उसे अपने लिए प्राप्त करने की प्रार्थना की। परवैयार को भी अपनी सखियों से आरूरर के विषय में ज्ञात हुआ कि वे भगवान के एक महान भक्त थे। इससे उनके मन में उस महान भक्त के लिए प्रेम बढ़ा और उन्हे भी रात्री निद्रा देवी ने त्याग दिया।
भगवान तिरुवारूर के भक्तों के स्वप्नों में प्रकट हुए और उनसे इन दो युवा सच्चे भक्तों के विवाह की व्यवस्था करने के लिए कहा। इस प्रकार विवाहित, वह दिव्य दंपति भगवान शिव के प्रति भक्ति के साथ जीवन व्यतीत करने लगे। एक दिन जब वे मंदिर गए, आरूरर ने देवाश्रय मण्डप देखा जहां भगवान के सभी अद्भुत भक्त एकत्र हुए थे। भगवान के पवित्र चरणों का स्मरण करते हुए, उन्होंने विलाप किया कि वे कब उन भक्तों के विनम्र दास होंगे! तब भगवान अपने विनम्र भक्त के समक्ष प्रकट हुए। सुन्दरर ने भक्तों के हृदय के विकसित कमल में निवास करने वाले प्रभु के पवित्र चरणों की स्तुति की। भगवान ने देवाश्रय मण्डप में भक्तों की महानता के विषय में बताते हुए आरूरर को उन्हे नमन करके, उनके विषय में गाकर उनके साथ सम्मिलित होने के लिए कहा। उत्कृष्ट भक्त को संकोच हुआ कि वे उन असाधारण महात्माओं की प्रशंसा कैसे कारेंगें! भगवान ने उन्हें प्रथम वाक्य "तिल्लै वाल अंधनर तम अडियारक्कुम अडियेन" ([मैं] तिलै के ब्राह्मणों के सेवकों के सेवक) प्रदान किया और उनसे गाने के लिए कहा। नंबियारूर ने उन श्रेष्ठ भक्तों की प्रशंसा करते हुए, उनके कई नामों का उल्लेख करते हुए और तिरुवारूर के महान देवाश्रय मंडप में भक्तों की भव्य सभा को नमस्कार करते हुए, उत्कृष्ट कृति “तिरुतोंड तोकै” गाया।
गुरु पूजा : आडि / स्वाती या कर्क / स्वाती
हर हर महादेव
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63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र