तिरुवेण्णैनल्लूर की पंचायत ने प्रमाणों के आधार पर निष्पक्ष निर्णय सुनाया था। उन्होंने नंबियारूर के स्वामि घोषित वृद्ध व्यक्ति से उस नगर में अपने घर का स्थान दिखाने का अनुरोध किया। अपनी स्वेच्छा से भक्तों को दास बनाने वाले वृद्ध वेश में भगवान ने उन्हें अनुसरण करने के लिए कहा। उन्होंने तिरुवरुत्तुरै (अनुग्रह का निवास) – तिरुवेण्णैनल्लूर के मंदिर में प्रवेश किया और अन्तर्धान हो गये। सुंदरर और अन्य लोग अचम्बित रह गए। तब क्षितिज पर ऋषभारूढ भगवान प्रकट हुए और कहा कि वचन के अनुसार वे सुंदरर का उद्धार करने आए थे। विनम्रता और भक्ति के सागर में निमग्न सुंदरर से प्रभु ने कहा कि चूंकि उन्होंने उनके लिए कठोर शब्दों का प्रयोग किया था, इसलिए अब से वे "वण्तोन्डन" के नाम से प्रसिद्ध होंगे। परमेश्वर ने उन्हे मीठे तमिल भाषा में देवारम गाकर उनकी सेवा करने का आदेश दिया। अद्वितीय भक्त को चिंता हुई, "हे निश्छल! जो अपार कृपा से मेरे समान श्वान को भी दास बनाने आये! मैं क्या जानता हूँ और मैं आपके विषय में कैसे गा सकता हूँ?" सुंदर त्रिलोचन भगवान ने कहा कि चूंकि आरूरर ने उन्हें पित्तन (मतिभ्रष्ट) कहा था, इसलिए ‘पित्तन’ शब्द से देवारम का आरंभ करें। सुंदरर ने प्रेम से आर्द्र शब्दों से सर्वोच्च की स्तुति में, इस संसार के लिए राग "इन्तलम" में मधुर तमिल में "पित्ता पिरैसूडी" देवारम आरंभ किया। भगवान ने अपने भक्त को शेष जीवन देवारम द्वारा सेवा का आदेश दिया। षडङ्गवियार की पुत्री, जिनका विवाह सुंदरर से निश्चित हुआ था, ने सुंदरर पर ध्यान केंद्रतित कर के शिवलोक में प्रवेश किया। तद्पश्चात सुंदरर ने तिरुनावलूर में महादेव पर एक अद्भुत देवराम गाया।
सुंदरर ने तिरुतुरैयूर की यात्रा करते हुए देवारम के साथ भगवान शिव की स्तुति की और उनसे एक संयमित जीवन के लिए आवश्यक अनुशासन का अनुरोध किया। अपने हृदय में शुद्ध प्रेम के साथ, तिलै में नृत्य करते भगवान के दर्शन के लिए उत्सुक, वे तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। मार्ग में पेन्ना नदी पार करते हुए वे तिरुवदिकै पहुँचे। वे उस भूमि पर चरण रखने से संकोच कर रहे थे क्योंकि वह शैव धर्म के महान संत तिरुनावुक्कारसु नायनार का निवास स्थान हुआ करता था। वे रात के लिए परिसर में सिद्धवट मठ में रुक गए। उस रात भगवान एक वृद्ध व्यक्ति के भेष में उस मठ में आए और सुंदरर के समीप लेट गए। कुछ समय पश्चात उन्होंने सुंदरर के शीर्ष पर अपना पैर रखा। आरूरर जाग गये और उन्होंने उस वृद्ध व्यक्ति को अवगत कराया कि उनका पैर उनके शीर्ष पर था। वृद्ध व्यक्ति ने बताया कि उनकी आयु के कारण उन्हे दिशाओं का ध्यान नहीं रहा। सुंदरर कुछ दूर जाकर लेट गये। वहां भी वृद्ध व्यक्ति ने अपने पैर उनके शीर्ष पर रखा और कुछ देर तक ऐसा ही करते रहे। कैसे महान भक्त है, जिनके शीर्ष पर स्वयं भगवान ने अपने पवित्र चरण रखे, वे चरण जिनके लिए देवता और ऋषि भी उत्कंठित रहते हैं! अब आरूरर क्रुद्ध होकर वृद्ध व्यक्ति से ऊंचे स्वर में कहा - "आपको क्या लगता है कि आप कौन हो?" भगवान, जिनकी लीला ब्रह्माण्ड के अतिसूक्ष्म भागों में भी दिखाई देती है, ने सुंदरर से पूछा कि क्या उन्हें अभी तक इसकी अनुभूति नहीं हुई कि वे कौन हैं और अकस्मात अन्तर्धान हो गए। चकित सुंदरर ने परमानंद से तिरुवदिकै में भगवान की कृपा के बारे में गाया - "तममानै अरियाद"।
उन्होंने भक्तों के हृदय में सदैव प्रतिष्ठित नगर तिलै पहुंचने से पूर्व, तिरुमानिक्कुल और तिनैनगर में गंगाधर भगवान के दर्शन किये। केले और लौंग के पेड़ों से भरे उपजाऊ भूमि को पार करते हुए, वे उस भक्ति के उर्वर भूमि पर पहुँचे। प्रत्येक दिशा में एक गोपुर से सुशोभित मंदिर में उन्होंने उत्तरी गोपुर से प्रवेश किया। मार्ग में भगवान के पवित्र निवास को पुन: पुन: नमस्कार करते हुए, उन्होंने "पेरम्बलम" (कनक सभा) के दर्शन किये और फिर भक्तों के हृदय में सदैव नृत्य करते भगवान नटराज की पूजा करने के लिए द्वार में प्रवेश किया। नमस्कार की मुद्रा में अपने शीर्ष के ऊपर हाथ रखकर, पांचों इंद्रियां को केंद्रित कर, चार अवस्थाओं को मन में विलीन कर और तीन गुणों को एक सत्व में लाकर, वे उन चंद्रमा से सुशोभित भगवान के महान नृत्य में मग्न हुए। उन्होंने नमन करते स्तुति की, साष्टांग किया और उस अपार आनन्द को देवारम में वर्णित किया। तभी, एक दिव्य वाणी ने सुंदरर को अपने आरूर में आने के लिए कहा।
भगवान के आशीर्वाद से सुंदरर ने आरूर के लिए प्रस्थान किया। मार्ग में वे कलुमलम आये जहाँ अज्ञानता के अंधकार को दूर करने के लिए शैव धर्म के युवा प्रकाशस्तंभ तिरुज्ञानसंबंधर का जन्म हुआ था। सुंदरर उस भव्य नगर में अपना पैर नहीं रखना चाहा इसलिए उन्होंने नगर के परिसर से ही नगर को प्रणाम किया और आगे बढ़ गए। कलुमलम के भगवान भक्त को आशीर्वाद देने के लिए आकाश में प्रकट हुए। भगवान के सेवक ने कलुमलम के करुणामयी भगवान को प्रणाम किया और देवारम गाया। काविरी नदी के तट पर पहुंचने से पूर्व उन्होंने तिरुक्कोलक्का, तिरुपपुनकुर और कई अन्य स्थानों पर भगवान की स्तुति की। काविरी नदी को पार करते हुए, मयिलाडुतुरै, अंबर मकालम और तिरुप्पुकलूर में भगवान के दर्शन करते हुए, नंबियारूरर आरूर पहुंचे।
गुरु पूजा : आडि / स्वाती या कर्क / स्वाती
हर हर महादेव
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63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र