तिरुतलैयूर नाम का गांव चोल राज्य में स्तिथ था। पशुपति का जन्म इसी गाँव के एक वैदिक ब्राह्मण कुल के परिवार में हुआ था। पशुपति को पति (प्रभु भगवान शिव) से बहुत प्रेम था, जो सूर्य के समान पशुओं (जीवन) को बांधने वाले पाशों (बंधन) के अंधकार को नष्ट कर देते है। वेदों द्वारा घोषित वे पति ही सर्वोच्च है। वेदों में सबसे पवित्र भाग श्री रुद्रम है। इसी पवित्र स्तुति में सबसे पवित्र मंत्र है - नमः शिवाय यानि शिव पंचाक्षर है। भगवान शिव की सभी प्रमुख पूजा परंपराओं में श्री रुद्रम का जाप किया जाता है।
नायनार की साधना इसी पवित्र स्तुति का जाप करते रहना था, जो वेदों के सार (भगवान शिव) को प्रसन्न करता है। भोर के समय, जब पक्षी चहचहाने लगते थे, मधुमक्खियाँ अपनी लय में आ जाती थीं, आकाश में लालिमा प्रसारित हो जाती थी और सूर्य उदय होने के व्याकुल हो जाता था, पशुपति शीतल जल वाले तालाब के पास जाते थे जहाँ रक्तवर्ण कमल दिन का स्वागत करने के लिए खिलते थे। वे उस तालाब में अपनी पैरों से गर्दन तक जल के भीतर खड़े हो जाते थे। कमल की कली की तरह वे अपने हाथों को शीर्ष के ऊपर प्रणाम मुद्रा में रखते थे, उनका मुख भक्ति के बूंदों के साथ खिलते हुए कमल के समान होता था और भगवान के पंखुड़ी जैसे कोमल चरणों को अपने में हृदय कमल मे लिए, वे अपने पूर्वजों द्वारा निर्धारित लय में, उस पवित्र रुद्रम का जाप करते थे जो सर्वशक्तिमान भगवान को आनंदित करता हैं।
उनके प्रेम के निरंतर प्रवाह से, जिसकी लालिमा उस श्रेष्ठ मंत्र द्वारा बढ़ गई थी, भोर में और दिन भर भगवान का अभिषेक होता रहता था। उनकी तपस्या, उनके प्रेम और मंत्र की पवित्रता ने उन्हें भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायता की, जिन भगवान को जानना दिव्य शक्तियों के लिए भी कठिन है। भगवान की कृपा से, श्री रुद्रम का निरंतर जाप करने वाला भक्त बिना किसी कष्ट के भगवान के धाम तक पहुँच गए। पवित्र रुद्रम के जाप से प्रतिष्ठित स्थान पाकर वे रुद्र पशुपति नायनार के नाम से जाने गए। रुद्र पशुपति नायनार के जीवन द्वारा दर्शाए गए उस पवित्र श्री रुद्रम के जाप की महिमा हमारे मन में बनी रहे।
गुरु पूजा : पुरट्टअसि / अश्विनी या कन्या / अश्विनी
हर हर महादेव
See Also:
1. रुद्र
63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र