पवित्र भस्म से लिप्त तपस्वी भक्त
शिव, जिन्होंने एक मंदस्मित से तीन पुरों को भस्म किया, जिन्होंने मात्र दृष्टि से कामदेव को भस्म किया और संहार के समय जिनका नृत्य पूरी सृष्टि भस्म करता हैं, उन्ही का आशीर्वाद पवित्र भस्म है। पवित्र भस्म के तीन प्रकार हैं - कल्प, अनुकल्प और उपकल्प। इन भस्म प्रकारों को ही स्वीकार करना चाहिए और इनका धारण काम जैसे कई दोषों का निवारण करता हैं। वह भस्म जो उपरोक्त तीनों से भिन्न है और जिसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए उसे अकल्प कहा जाता है।
पंचगव्य प्रदान करने वाली गायों के गोमय, गोमय मंत्र का जाप करते हुए सीधे हाथ से इकट्ठा किया जाता है। देवों द्वारा स्तुतित शिव मंत्र के साथ भगवान शिव के लिए प्रज्वलित शिवाग्नि में, त्रिनेत्र ईश्वर के पवित्र चरणों को नमस्कार करते हुए गोमय को डाला जाता है। परिणामस्वरूप प्राप्त भस्म शुद्ध कल्प कहलाता है।
वनों में सुखे गोमय को एकत्र कर, उसे चूर्ण कर, गोमूत्र से आर्द्र किया जाता है। तद्पश्चात इसे अत्थिर मंत्र का जाप करते हुए गूँथकर गोलाकार पिण्ड बनाया जाता है और शिवाग्नि में डाला जाता है। इस प्रकार एकत्र की गई भस्म को अनुकल्प कहा जाता है।
वन में जले हुए वृक्षों और झाड़ियों, आग में जले गोशाला, ईंटों को पकाने वाले भट्टों और ऐसे ही कुछ जले हुए स्थानों से भस्म एकत्र की जाती है। फिर संबंधित मंत्रों का जाप करते हुए गोमूत्र को मिलाकर गोले बनाए जाते हैं और फिर शिवाग्नि में डाल दिए जाते हैं। इस प्रकार प्राप्त भस्म को उपकल्प कहा जाता है।
शिव मंत्र का जाप करते हुए पवित्र भस्म को विनम्रतापूर्वक ग्रहण कर, शिवभक्त धारण करते हैं। पवित्र भस्म के लिए कोई भी प्रशंसा कम ही है और इसे धारण करने से आध्यात्मिक प्रगति सुनिश्चित हो जाती है। तपस्वी भक्त शिव की स्तुति करते हुए इस पवित्र पदार्थ से भस्म स्नान करते हैं। मुलुनीरु पूसिय मुनिवर द्वारा धारण पवित्र भस्म और इसकी महानता हमारे मन में सदैव रहें।
गुरु पूजा : पंगुनी / मीन अंतिम तिथि
हर हर महादेव