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नक्कीरर दिव्य चरित्र

नकीर देव नायनार उन बारह भक्तों में से एक हैं जिन्होंने दिव्य पदिनोरान तिरुमुरै - ग्यारहवें तिरुमुरै में योगदान दिया है। इतिहास में नकीरन नाम के कई कवियों का उल्लेख है। ग्यारहवें तिरुमुरै की रचनाओं में, तिरुमुरुगरुप्पडै नामक नौवीं रचना संगम संकलन "पत्तु पाट्टु" की पहली रचना है। यह मानना है कि इस रचना के रचयिता मदुरै के कणकायनार के पुत्र नकीरर हैं। नकीरन नाम के दो भाग हैं - कीरन, एक व्यक्तिवाचक संज्ञा, और "नल" एक उपसर्ग जिसका अर्थ है उत्तम। नकीरर की कथा पेरुम्पट्रपुलियूर नंबी और परंज्योति मुनि के तिरुविलयाडल पुराण में उल्लिखित है।

एक बार पांड्या राजा शेणबग मारन अपनी रानी के साथ एकांत में क्रीडा कर रहे थे, तभी उन्हें रानी के केशों से सुगंध आई और उन्हें यह संशय हुआ कि क्या स्त्रियों के केशों की सुगंध प्राकृतिक है? उन्होंने अपने पूरे राज्य में घोषणा कर दी कि जो कोई भी उनकी शंका का समाधान करेगा, उसे एक सहस्र स्वर्ण मुद्राएँ पुरस्कार में दी जाएँगी। कई महान कवियों और विद्वानों ने प्रयत्न किया, किन्तु किसी के पास भी स्वर्ण प्राप्ति के लिए प्रत्यापक उत्तर नही था।

मदुरै मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने वाले पुजारी धरुमी ने विवाह करने की इच्छा से प्रभु से प्रार्थना की कि वे उसकी दरिद्रता दूर करें और उसे धन-संपत्ति प्रदान करें। भगवान आलवाय ने उसकी प्रार्थना स्वीकार करने के लिए ‘कोंगुतेर वाल्कै’ नामक एक गीत की रचना की। उन्होंने धरुमी से कहा कि वह इसे संगम विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत करे और स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त करे।

धरुमी ने गीत लिया और संगम कवियों को प्रस्तुत किया। जब उन्होंने इसे पढ़ा और कुछ नहीं कहा, तो उसने इसे पांड्य राजा को प्रस्तुत किया। राजा ने गीत पढ़ा जिससे उनका संदेह दूर हो गया। उन्होंने धरुमी की प्रशंसा की और वचन के अनुसार स्वर्ण मुद्राएँ प्रदान कीं। ठीक उसी समय, नकीरर ने धरुमी को यह कहते हुए रोक दिया कि यह गीत त्रुटिपूर्ण है और उसे उस व्यक्ति को लाने के लिए कहा जिसने इसे रचा था। यह सुनते ही, आलवाय के भगवान स्वयं एक तमिल कवि के रूप में प्रकट हुए और धरुमी के साथ संघ मंडप में पहुँचे। उन्होंने सभा से पूछा, 'इस गीत में दोष किसने निकाला है?' नकीरर ने कहा कि यह उन्होंने ही निकाला है और आगे कहा, “स्त्री के केश सुगंध पदार्थ और पुष्पों के उपयोग के कारण सुगंधित होते हैं। यह स्वाभाविक रूप से सुगंधित नहीं है, इसलिए रचना का आधार ही दोषपूर्ण है।' बढ़ते क्रोध के साथ भगवान ने पूछा 'क्या देवी उमा के केशों के लिए भी यह बात सत्य है?' नकीरर ने उत्तर दिया कि उनका दृष्टिकोण सम्पूर्ण स्त्रीजाति पर उपयुक्त है।

भगवान शिव ने नकीरर को मृदु करने हेतु अपनी जटा को प्रकट किया। किन्तु नकीरर ने इसे अनदेखा कर दिया। तब भगवान ने एक हास्य गर्जना के साथ अपने तीसरे नेत्र को खोल दिए। अडिग, नकीरर ने कहा त्रुटि तो त्रुटि ही है, भले ही उन्होंने अपने तीसरे नेत्र खोले हो। किन्तु, उष्ण सहन करने में असमर्थ, नकीरर मदुरै मंदिर के स्वर्ण कमल तटाक में गिर पड़े। भगवान अदृश्य हो गए।

धरुमी ने राजा से स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त किए। जो कुछ हुआ था उससे व्याकुल नकीरर ने शिव की स्तुति "कैलै पादि कालहस्ती पादि अंतादि" के साथ की। भगवान उन्हे तट पर ले आए और तमिल भाषा की सूक्ष्मताओं को समझने के लिए अगस्त्य मुनि के समीप भेज दिया। नकीरर ने भगवान शिव की स्तुति में कोप प्रसादम, पेरुंदेवपाणी और तिरु-एलु कुत्रिरुकै जैसी कई रचनाएँ लिखीं।

नकीरर का तिरुमुरुगरुप्पडै, जो ग्यारहवें तिरुमुरै में संकलित है दस प्रबंधों (पत्तु पाट्टु - साहित्यिक रचना) में से नौवां है। यह “पत्तु पाट्टु” नामक संगम काल के कृति का पहला गीत भी है। अंतिम संगम के विद्वान के रूप में नकीरर का काल दूसरी शताब्दी है।

हर हर महादेव 

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