वृद्धाचलम के समीप पेण्णाकडम नगर है। यहीं पर तिरुनावुक्करसर ने अपने कंधों पर ऋषभ और शूल के चिन्ह धारण किए और उन्हे प्रभु के सेवक के रूप में आशीर्वाद प्राप्त हुआ। उस नगर में, जहाँ भगवान भक्तों की सेवाओं से प्रसन्न होते हैं, कलिक्कम्ब नायनार का जन्म एक वणिक परिवार में हुआ था। कामन्तक ईश्वर के प्रति असीम प्रेम के साथ वे बड़े हुए। सांसारिक इच्छाओं से मुक्त, उन्होंने नगर के तिरुत्तूङ्गानै माडम (सुन्दर गज पृष्ट) मंदिर में भगवान की सेवा करने का दृढ़ संकल्प लिया था। भक्त की इस दृढ़ता ने उन्हे भगवान का प्रिय बना दिया।
स्वयं भिक्षा के लिए अटन करने वाले प्रभु के सेवकों के लिए फल, तरकारियाँ, घी सहित अन्न और निर्दोष सेवा के साथ कलिक्कम्बर ने प्रतिदिन भोज आयोजित किया। उन्होंने अपने पूरे जीवन में भक्तों के लिए इस सर्वोत्कृष्ट सेवा को निरंतर रखा। उन्होंने प्रत्येक दिन, मुख पर मंदहास सहित, मीठे शब्दों और विनम्र भाव से भक्तों का स्वागत किया। निर्मल कलिक्कम्बर शिवभक्तों को भोज परोसने से पूर्व, उनके चरण धोते थे। उनकी पत्नी षड रसों से परिपूर्ण भोजन पकाती थी, आसान और अन्य सभी व्यवस्थाओं का ध्यान रखती थी। तद्पश्चात वे चरण प्रक्षालन में अपने पति की सहायता करती थी। वे जल देती थीं और नायनार चरण धोते थे।
एक दिन एक भक्त, जो पूर्व उनके घर में परिचर था, भगवान के अन्य भक्तों के साथ आया। प्रेम से नायनार ने उनके चरण धोने के लिए अपने हाथों में लिए। किन्तु उनकी पत्नी ने तोडा संकोच किया क्योंकि वह व्यक्ति एक भृत्य था। पूर्व अवस्था के कारण एक भक्त की सेवा करने में संकोच करने वाली उनकी पत्नी पर कलिक्कम्बर क्रोधित हो गये। उन्होंने उनके हाथ काट दिया और भक्त के चरण धोने के लिए स्वयं जलपात्र ले लिया। शिव भक्तों की सेवा में भगवात्कृपा से पूर्व, भक्त के अतीत को अंगीकरण नहीं करने का एक विलक्षण उदाहरण उस दिन कलिक्कम्बर ने स्थापित किया। उन्होंने अन्य भक्तों के साथ इस भक्त की सेवा की और उन्हे मनोवांछित दान दिया। कलिक्कम्बर ने अपने समर्पण के मार्ग पर सेवा निरंतर रखी और अंत में शिव के पवित्र चरणों में स्थान पाया। कलिक्कम्बर ने भक्तों के रूप को जो सम्मान दिया, जिसके कारण उन्होंने अपनी पत्नी को भी एक भक्त की सेवा न करने के लिए दंडित किया, हमारे मन में सदैव रहें।
गुरु पूजा : तै / रेवती या मकर / रेवती
हर हर महादेव
See also:
63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र