पल्लव राजाओं के वंश में न्यायप्रिय और धर्मपरायण राजा कलर्सिंह नायनार (राजसिंह) आविर्भाव हुए। उनके जीवन का लक्ष्य उस परम धन - भगवान शिव के चरण, को प्राप्त करना था। उन्होंने उत्तर के कई राज्यों पर विजय प्राप्त किया था। युद्ध भूमि के सिंह, कलर्सिंह, ने पूरी विनम्रता और भक्ति के साथ, कई तीर्थ स्थलों में स्थित शंभु के मंदिरों की यात्रा की। ऐसे ही एक समय राजा प्रसिद्ध तिरुवारूर मंदिर में आए। वे रानी और सभासदों के साथ भगवान, जो आनंद तांडव करते अपने गणों सहित वनों में घूमते है, के दर्शन के लिए आए। उस मंदिर में विराजमान त्यागेश्वर के दिव्य दर्शन में नायनार मंत्रमुग्ध हो गए। रानी ने मंदिर की परिक्रमा करते हुए उसकी सुंदरता का आनंद लिया। रानी उस मंडप में पहुंची जहां भगवान की पूजा के लिए पुष्पों से मालाएँ बनाईं जातीं थीं। यहाँ मंडप के मंच पर ईश्वर के जटा को सजाने हेतु कुमुद, चमेली, बिल्व पत्र और मत्तम के ढेर थे। उस मंच से जहां मालाएं बनाई जा रही थीं, रानी ने एक पुष्प नीचे गिरा पाया। उन्होंने प्रभु के लिए लाये गए उस पुष्प को उठाकर सूंघ लिया।
सेरुतुनै नायनार, जिनका जीवन सर्वेश्वर की दोषरहित सेवा में समर्पित था, एक मानव को महादेव की पूजा के लिए निर्धारित पुष्प का सुगंध लेते हुए देख लिया और वे तुरंत कुपित हो गए। उन्होंने सोचा कि पुष्प मंच से लिया गया होगा। अनुशासन रहित इस कार्य को देखकर, क्रोधित, निडर भक्त ने, इस बात की चिंता किए बिना कि वे रानी थी या कोई सामान्य नागरिक, पुष्प को सूंघते हुए उनकी नाक को काट दिया। मोरनी के समान कराहती हुई, रानी पीड़ा से रोने लगी। उसी समय राजा कलर्सिंह नायनार वहां आए। राजा ने रानी को पीड़ाग्रसित देखा और गरजते हुए पूछा 'इस अपराध का साहस किसने किया?' सेरुतुनै नायनार ने आगे आकर सम्पूर्ण वृतांत बताया। राजा ने अपना राजदंड उठाते हुए घोषणा की कि दण्ड अभी पूरा नहीं हुआ था। उन्होंने अपनी असी उठाई और रानी के कोमल हाथों को काट दिया। उनके इस न्याय की प्रशंसा करते हुए स्वर्ग से पुष्प वृष्टि हुई। अपने हृदय में न्याय के स्वामि परमेश्वर के पवित्र चरणों को स्थापित करते हुए कई वर्षों तक राजा ने शासन किया। पृथ्वी पर अपने जीवन के अंत में उन्होंने शिवपद प्राप्त किया। कलर्सिंह नायनार की धर्मपरायणता और भक्ति हमारे मन में सदैव रहें।
गुरु पूजा : वैकासी / भरणी या वृषभ / भरणी
हर हर महादेव
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