महान माता, इसैज्ञानियार, तिरुमुनैपाडि राज्य के तिरुनावलूर नगर की निवासी थीं। एक पुरानी कहावत है, "जैसे तन्तु, वैसे वस्त्र। जैसी माँ, वैसे संतान"। इन भक्त ने सडैयार के साथ एक निष्ठावान जीवन व्यतीत किया और प्रसिद्ध भक्त सुंदर मूर्ति नायनार को जन्म दिया, जो सदैव यह कहने में गर्व अनुभव करते थे कि वे भगवान शिव के सेवकों के सेवक हैं। संतान का चरित्र सबसे पहले माँ द्वारा संवारा जाता है। वह अपने दूध के साथ संतान को गुण भी पिलाती है जो भविष्य में सही परिस्थितियों में विकसित होते है। वास्तव में यह कहा जाता है कि संतान का चरित्र ही माता-पिता के व्यक्तित्व का संकेत है। भगवान के पवित्र चरणों के प्रति उनकी भक्ति और तपस्या से इसैज्ञानियार को अपने पुत्र के रूप में वनतोंडर प्राप्त हुए। धन्य है वे और उनकी भक्ति! इसैज्ञानियार द्वारा सुंदरर का भक्तिपूर्ण पालन-पोषण हमारे मन में सदैव रहें।
गुरु पूजा : चित्रै / चित्रा या मेष / चित्रा
हर हर महादेव