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तारकेश्वराष्टकम् - Sri Tarakeshwarashtakam

स्फुरच्चन्द्रभालंलसद्व्यालमालं
जटाजालमध्येवहद्गाङ्गतोयम्।
शरण्यंवरेण्यंभवानी-सहायं
प्रभुंतारकेशंनतोऽहंनतोऽहम्      ॥१॥

ज्वलद्भास्कराभंविभुंविश्वनाथं
शिवंशाश्वतंब्रह्मचिन्मात्ररूपम्।
प्रसन्नंपरेशंसदास्मेरवक्त्रं 
प्रभुंतारकेशंनतोऽहंनतोऽहम्            ॥२॥

चलच्याश्विद्युत्प्रभादीप्तदेहं
सुराराध्यपादंपरंब्रह्मरूपम् |
सदानन्दमूर्तिकृपापूर्णदृष्टिम्
प्रभुंतारकेशंनतोऽहंनतोऽहम्          ॥३॥

हरंशङ्करंभूतनाथंमहेशं
शिवंसुन्दरंसच्चिदानन्दमेकम्।
उमावामभागंतनौभस्मलेपं
प्रभुंतारकेशंनतोऽहंनतोऽहम्      ॥४॥

दहद्वह्निनेत्रं  जगत्पापनाशंविशालं
त्रिशूलंकरेधारयन्तम्।
महाकालकालंकरालंपुरारिंप्रभुं
तारकेशंनतोऽहंनतोऽहम्           ॥५॥

जगन्मङ्गलंरोगशोकार्तिनाशं 
पुनर्जन्म- दुःखाज्जनंतारयन्तम्।
दयालुंसुरेशंमहादेवमेकं
प्रभुंतारकेशंनतोऽहंनतोऽहम्        ॥६॥

भवंवामदेवंमृडंरुद्ररूपं
गुणातीतमुग्रंत्रिलोकाधिपालम्।
विपत्तौविपन्नंनरंरक्षयन्तं
प्रभुंतारकेशंनतोऽहंनतोऽहम्        ॥७॥

ततंविश्वमध्येसदासुप्रकाशं
श्रुतानुक्ततत्त्वंतपस्यैकगम्यम्।
अनादिह्यपारंहृदावेदनीयं
प्रभुंतारकेशंनतोऽहंनतोऽहम्        ॥८॥

तारकेशाष्टकंपुण्यंयःपठेतप्रयतःपुमान्।
अभीष्टंलभतेतूर्णंतारकेश-प्रसादतः   ॥६॥

इतिश्रीजगन्नाथाश्रमपूज्यपाद-शिष्य-श्रीहृषीकेशाश्रमविरचितंश्रीतारकेश्वराष्टकंसम्पूर्णम्।
 

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