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पञ्चभूत क्षेत्र पञ्चरत्नम् (अप्पय्य दीक्षित) - Panchabhuta Kshetra Pancharatnam of Appayya Dikshita


श्रीमद् वेगवती तटे  मणि लसद् गेहान्तरोद्यद् घन 
       श्यामाम्र द्रुम मूल शैलतनया पूज्यं पृथिव्याकृतिम्  ।
कामाक्षी कुच कुङ्कुमाङ्कित तनुं  कारुण्य रत्नाकरं 
       क्षेमार्थं वरदार्चिताङ्घ्रि मचिरादेकाम्र नाथं भजे  ॥ १॥

कावेरी तट शोभि रङ्ग नगर प्राग्भाग जम्बूतरु 
       प्रान्तोद्यन् मणि सद्मनि स्थितमधो जम्बू तरोः स्थायिनः ।
लूतेभार्चित रङ्गनाथ वरदं भक्त्याखिलाण्डेश्वरी 
       पूजा निर्मित सज्जलाकृति धरं श्रीजम्बुनाथं भजे ॥ २॥

अम्भोजासन माधवाप्त दुरहङ्कारच्छिदग्नि ज्वलज् 
       ज्वालालीढ धराधराकृति धरं पुर्णेन्दु बिम्बाननम्  ।
देव्याऽपीतकुचाम्बया सुविलसद् वामांङ्गमङ्घ्रि द्वयी 
       पूजा तत्पर कामितार्थ फलदं शोणाचलेशं भजे  ॥ ३॥

शेषाशेष फणा भरोद्धति जवात् कैलास निर्मुक्त भू 
       भृच्छ्रुङ्गाग्र समीरणात्मकतयोद्भूताकृतिं शाश्वतम् ।
व्याधाभीष्ट फलप्रदं हृदि भजे ज्ञान प्रसूनाम्बिका 
       धीशं स्वर्णमुखी तटस्थमनिशं श्रीकालहस्तीश्वरम्  ॥ ४॥

श्रीमद् व्याघ्र पुरालयान्तर गत श्रीशैव गङ्गा तटे 
       भास्वच्छ्री शिवकाम सुन्दरियुतं देवं नभो रूपिणम् ।
व्यत्यस्ताङ्घ्रि पतञ्जलि प्रियतमं नृत्यन्तमत्यादरात् 
       गोविन्दाभिनुतं भजेहमनिशं शम्भुं सभा नायकम् ॥ ५॥

पञ्चरत्नमनिशं पठन्ति ये पञ्चभूतपुरीशितुः स्तवम् ।
सञ्चिताघमपहृत्य शङ्करो वाञ्छितार्थमखिलं दिशेत् सताम् ॥ ६॥

इति श्रीमद् भारद्वाज कुलजलधि कौस्तुभ नित्याग्निहोत्रि मीमांसक 
मूर्धन्य श्रीकण्ठमत प्रतिष्ठापनाचार्य चतुरधिक शत 
प्रबन्ध निर्वाहक श्रीमदद्वैत विद्याचार्य विश्वजिद्याजि 
श्रीरङ्गराजाध्वरि वरसूनु श्रीमदप्पय्य दीक्षितेन्द्र रचितं पञ्चरत्नं सम्पूर्णम् ॥

 

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