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श्री राजशेखर पाण्ड्य कृत श्रीमत् शिवताण्डव स्तुतिः

हालास्य स्तुति 

परिपूर्ण-परानन्द-सत्यज्ञानाद्वयात्मकम्। 
भजामि सुन्दरेशानं महदद्भुतताण्डवम्॥ १ ॥

श्रीमत्पञ्चाक्षरमयं पञ्चकृत्यैककारणम्। 
भजामि सुन्दरेशानं महदद्भुतताण्डवम्॥ २ ॥

विश्वाधिकं विश्वरूपं विश्वात्मानं परात्परम्। 
भजामि सुन्दरेशानं महदद्भुतताण्डवम्॥ ३ ॥

योगाभ्यास-रतैस्सद्भिः सदा ध्येयं सुसिद्धिदम्। 
भजामि सुन्दरेशानं महदद्भुतताण्डवम्॥ ४ ॥

भक्तापद्भञ्जनपरं भक्तिगम्यं भवापहम्। 
भजामि सुन्दरेशानं महदद्भुतताण्डवम्॥ ५ ॥

भोगमोक्षप्रदं पुंसां आगमान्तैरभिष्टुतम्। 
भजामि सुन्दरेशानं महदद्भुतताण्डवम्॥ ६ ॥

द्वादशान्तगतं सूक्ष्मं सोम-सूर्याग्नि-कोटिभम्। 
भजामि सुन्दरेशानं महदद्भुतताण्डवम्॥ ७ ॥

षट्त्रिंशत्तत्व-सोपान-महाप्रासाद-मध्यगम्। 
भजामि सुन्दरेशानं महदद्भुतताण्डवम्॥ ८ ॥

कालातीतं कालकालं कलाधरकलाधरम्। 
भजामि सुन्दरेशानं महदद्भुतताण्डवम्॥ ९ ॥

सूक्ष्मपञ्चाक्षरीभूत-प्रणवागार-मध्यगम्। 
भजामि सुन्दरेशानं महदद्भुतताण्डवम्॥ १० ॥

निवृत्त्यादिकलातीतं नित्यं सकलनिष्कलम्। 
भजामि सुन्दरेशानं महदद्भुतताण्डवम्॥ ११ ॥

सर्वसम्पत्करस्सद्यः सर्वापद्भञ्जनक्षमम्। 
भजामि सुन्दरेशानं महदद्भुतताण्डवम्॥ १२ ॥

वीताघसङ्घै-र्विबुधै-र्विशिष्टै
र्विद्याविशेषार्चित-पादपद्म। 
हालास्यनाथाय नमोऽस्तु तुभ्यं 
श्रीसुन्दरेशाद्भुत-ताण्डवेश॥ १३ ॥
 

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