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श्रीदूर्वेश स्तोत्रम् - Shri Doorvesha Stotram

Shri Doorvesha Stotram

 

गणनाथषण्मुखयुक्तो गिरिजासंश्लेषतुष्टहृदयाञ्जः 
दूर्वाभिख्यपुरस्थान् लोकान् परिपातु भक्तिविनययुतान् ॥१॥ 

विद्यानाथ विनीतिभक्तिसहितान् लोकान् कृपावारिधे 
दूर्वाभिख्यपुरस्थितान् करुणया पाहीभवक्त्रं यथा । 
विद्यायुःसुखयुक्तिशक्तिभिरलं युक्तान् विधायानिशं 
शान्त्याद्यैरपि दिव्यमुक्तिपदवीसन्दर्शकैः शङ्कर ॥२॥ 

इति श्रीदूर्वेशस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
 

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