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हरिहर अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम - Harihara Ashtottara Shatanama Stotram

Harihara Ashtottara Shatanama Stotram


 

गोविन्द माधव मुकुन्द हरे मुरारे शंभो शिवेश शशिशेखर शूलपाणे ॥ 
दामोदराच्युत जनार्दन वासुदेव त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥१॥ 

 

गङ्गाधरान्धकरिपो हर नीलकण्ठ वैकुण्ठ कैटभरिपो कमठाब्जपाणे॥ 
भुतेश खण्डपरशो मृड चण्डिकेश त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥२ ॥ 

 

विष्णो नृसिंह मधुसूदन चक्रपाणे गौरीपते गिरिश शङ्कर चन्द्रचूड ॥ 
नारायणासुरनिबर्हण शार्ङ्गपाणे त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥३॥ 

 

मृत्युञ्जयोग्र विषमेक्षण कामशत्रो श्रीकान्त पीतवसनांबुद नील शौरे ॥ 
ईशान कृत्तिवसन त्रिदशैकनाथ त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति  ॥४॥ 

 

लक्ष्मीपते मधुरिपो पुरुषोत्तमाद्य श्रीकण्ठ दिग्वसन शान्त पिनाकपाणे ॥ 
आनन्दकन्द धरणीधर पद्मनाभ त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति  ॥५॥ 

 

सर्वेश्वर त्रिपुरसूदन देवदेव ब्रह्मण्यदेव गरुडध्वज शङ्खपाणे ॥ 
त्र्यक्षोरगाभरण बालमृगाङ्कमौले त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥६॥ 

 

श्रीराम राघव रमेश्वर रावणारे भूतेश मन्मथरिपो प्रमथाधिनाथ ॥ 
चाणूरमर्दन हृषीकपते मुरारे त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥७॥

 

शूलिन गिरीश रजनीश कलावतंस कंसप्रणाशन सनातन केशिनाश ॥ 
भर्ग त्रिनेत्र भव भूतपते पुरारे त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥८॥ 

 

गोपीपते यदुपते वसुदेवसूनो कर्पूरगौर वृषभध्वज भालनेत्र ॥
गोवर्धनोद्धरण धर्मधुरीण गोप त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति  ॥९॥ 

 

स्थाणो त्रिलोचन पिनाकधर स्मरारे कृष्णानिरुद्ध कमलाकर कल्मषारे ॥
विश्वेश्वर त्रिपथगार्द्रजटाकलाप त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥१०॥ 

 

अष्टोत्तराधिकशतेन सुचारुनाम्नां सन्दर्भितां लळितरत्नकदंबकेन ॥ 
सन्नायकां दृढगुणां निजकण्ठगतां यः कुर्यादिमां स्रजमहो स यमं न पश्येत ॥११॥ 
गणावूचतुः ॥ 

 

इत्थं द्विजेन्द्र निजभृत्यगणान्सदैव संशिक्षयेदवनिगान्स हि धर्मराजः ॥
अन्येऽपि ये हरिहराङ्कधरा धरायां ते दूरतः पुनरहो परिवर्जनीयाः ॥१२॥ 

अगस्त्य उवाच ॥ 

 

यो धर्मराजरचितां लळितप्रबन्धां नामावळिं सकलकल्मषबीजहन्त्रीम ॥ 
धीरोऽत्र कौस्तुभभॄतः शशिभूषणस्य नित्यं जपेत्स्तनरसं न पिबेत्स मातुः ॥१३॥ 

 

इति श्रृण्वन्कथां रम्यां शिवशर्मा प्रियेऽनघाम ॥ 
प्रहर्षवक्त्रः पुरतो ददर्श सरसीं पुरीम ॥१४॥ 

 

इति हरिहराष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम ॥

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