मंदिरों में दैनिक छह पूजाएँ (षट् काल) की जाती हैं –
- सुबह ६ बजे उष्त्काल, ८ बजे कालसंधि और १२ बजे उचिकाल
- शाम ६ बजे सायरक्ष, ८ बजे द्वितीय काल और ९ बजे अर्धजाम।
इसी प्रकार, देवता भी दिन के षट् कालों में पूजा करते हैं। किन्तु उनका एक दिन हमारे एक वर्ष के तुल्य है। उत्तरायण और दक्षिणायन उनके लिए दिन और रात हैं। वर्ष में छह दिन भगवान नटराज का विशेष अभिषेक किया जाता हैं, जो देवताओं के दैनिक षट् काल पूजा के अनुरूप माना जाता है। इनमें से तीन विशिष्ट नक्षत्रों पर किए जाते हैं और अन्य तीन विशिष्ट तिथियों पर।
देवों के दिन के अनुरूप षट्-काल पूजा के लिए नटराज के अभिषेक इस प्रकार किए जाते हैं –
सुबह मरकली (धनुर) मास में उषात्काल, मासी (कुंभ) मास में कालसंधि और चित्रा (मेष) मास के श्रावण (तिरुवोणम) नक्षत्र के दिन उचिकाल
शाम आनी (मिथुन) मास में सायरक्ष, आवनि (सिम्ह) मास में द्वितीय काल और पुरटास्सी (कन्या) मास में अर्धजाम
तिलै चिदंबरम में भगवान नटराज के वार्षिक षट् अभिषेक निम्नलिखित हैं –
चित्रा (मेष) माह में श्रावण (तिरुवोण) नक्षत्र के दिन कनक सभा में शाम को अभिषेक किया जाता है
आनी (मिथुन) माह में उत्तर फाल्गुनी (उत्तरा) नक्षत्र के दिन राज सभा नामक सहस्र स्तंभ मंडप में सूर्योदय से पूर्व ४ बजे अभिषेक किया जाता है
आवनी (सिंह) माह में शुक्ल पक्ष चतुर्दशी के दिन कनक सभा में शाम को अभिषेक किया जाता है
पुरटास्सी (कन्या) माह में शुक्ल पक्ष चतुर्दशी के दिन कनक सभा में शाम को अभिषेक किया जाता है
मार्गली (धनुर) माह में आर्द्रा (तिरुवदिरै) नक्षत्र के दिन, राज सभा नामक सहस्र स्तंभ मंडप में सूर्योदय से पूर्व ४ बजे अभिषेक किया जाता है
मासी (कुंभ) के माह में शुक्ल पक्ष चतुर्दशी के दिन, कनक सभा में शाम को अभिषेक किया जाता है
ऐसा माना जाता है कि इन दिनों भगवान नटराज के दर्शन से मोक्ष प्राप्त होता है।