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होली या काम दहन - पौराणिक महत्व

रंगों का त्योहार होली भारत में भव्य रूप से मनाया जाता है। किन्तु, कई लोग इस त्योहार के पारंपरिक महत्व के विषय में नहीं जानते होंगे।

पुराणों से होली 

दक्ष-यज्ञ के पश्चात, शक्ति ने पर्वत राजा हिमावन की पुत्री पार्वती के रूप में अवतार लिया। बालपन से ही भगवान शिव को समर्पित, उन्होंने प्रभु को पति के रूप में प्राप्त करने लिए घोर तपस्या की। किन्तु, भगवान शिव दक्षिणामूर्ति के रूप में योग की स्थिति में थे, और ऋषियों - सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार के लिए परम सत्य की व्याख्या कर रहे थे। इस बीच, सुरपद्मा, सिंहमुख और तारक के नेतृत्व में असुर देवताओं को कष्ट दे रहे थे। यह पीड़ा तो दक्ष-यज्ञ में भाग लेने के कारण देवताओं को दिया गया श्राप ही था। सुरपद्म को वरदान था कि शिव के पुत्र के अतिरिक्त कोई भी उसे नहीं मार सकता। किन्तु भगवान शिव ऋषियों को आनंद का मार्ग सिखा रहे थे और पार्वती तपस्या में थीं। देवता समाधान के लिए व्याकुल थे और उन्होंने भगवान के हृदय में पार्वती के लिए काम उत्पन्न करने के लिए कामदेव को भेजा। कामदेव, जिनके तीर कभी विफल नहीं होते थे, जानते थे कि यह कार्य कितना संकटपूर्ण था। अन्य कोई विकल्प के बिना वे भगवान शिव के निवास पर गये और तीर चला दिया। भगवान शिव ने कामदेव को प्रजनन की प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए सभी प्राणियों में वासना उत्पन्न करने की शक्ति प्रदान की थी, इसलिए वे सदैव सफल रहे थे। सर्व तत्व से परे प्रभु में क्या वासना शक्ति विकार उत्पन्न कर सकती है? जो भगवान अपने स्वयं के आनंद में मग्न है क्या उन्हे काम वश में कर सकता है?
कामदेव का बाण विफल हुआ! भगवान ने अपने तीसरे नेत्र को लेशमात्र खोला। उसी क्षण कामदेव जलकर भस्म का ढेर हो गये। अनर्गल, भगवान ऋषियों को आत्मा ज्ञान देते रहे! काम को जलाने की इस प्रसंग को काम-दहन या होली कहा जाता है। जिस रूप में भगवान ने काम का अन्त किया था, उसे काम दहन मूर्ति कहा जाता है और यह 25 माहेश्वर मूर्तियों में से एक है। भगवान शिव द्वारा "काम" को जलाने के वृत्तांत को मनाने के लिए, होलिका प्रज्वलित किया जाता है। जैसे ही काम का शरीर राख हुआ, भस्म भगवान शिव के अंग पर जमा हुआ (काम दहन मूर्ति ध्यान श्लोक में कहा गया है - भस्म उद्धूलित विग्रहम्)। होली के पर्व में, कामदहन का प्रतीक होलिका जलाने के पश्चात, लोग काम पर इस विजय की स्मृति में स्वयं पर और दूसरों पर रंग लगाते हैं। आज भी लोग कामदेव को होलीका के ताप से शांति देने के लिए आम के फूल और चंदन का लेप चढ़ाते हैं।

होली और पंगुनी उत्तर (कल्याण व्रत)

पुराण में आगे कहा गया है कि देवताओं को बल और छल से प्रभु के मार्ग में असमय परिवर्तन लाने की अपनी मूर्खता का अनुभव होता है। उन्होंने भगवान से क्षमा मांगी और उनसे काम को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। उन्होंने भगवान से अनुरोध किया कि वे पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार करें और उनके कष्टों का अंत करें। परमदयालु भगवान ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और पार्वती से विवाह कर लिया। विवाह के दिन, कामदेव पुनर्जीवित हुए किन्तु अपनी पत्नी रति के अतिरिक्त वे सभी के लिए अदृश्य रहे, जिससे उनका नाम अनंग पड़ा। पार्वती और परमेश्वर के विवाह का यह दिन कल्याण व्रत है जिसे पंगुनी उत्तरम के नाम से भी जाना जाता है।

होली कब मनाया जाता है?

कामदाहन उत्सव फाल्गुन मास (मार्च मध्य से अप्रैल मध्य) के चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है।

See Also:

1. Holi Festival

2. kAmadahana mUrti

3. kalyANa vratam

4. dakshiNAmUrti

5. dakshayAga and vIrabhadra

6. 25 mAhEshvara mUrtisi
 

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