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तिरुमालिगै देवर दिव्य चरित्र

तिरुमालिगै देवर उन नौ भक्तों में से प्रथम हैं जिन्होंने नौवें तिरुमुरै - दिव्य तिरुविसैपा के पदिगम गाए हैं। उनका जन्म शैव धर्म का पालन करने वाले किसानों की परंपरा में हुआ था। तिरुविडैमरुदूर में रहने वाले उनके पूर्वज, जिन्हें शैवरायर कहा जाता था, चोल राजाओं के आध्यात्मिक दीक्षा गुरु थे। (यह भी कहा जाता है कि वे शैव पुजारियों की वंशावली में से थे।) उनके पूर्वज "मालिगै मडम" नामक स्थान पर रहते थे और इसलिए उन्हें तिरुमालिगै देवर के नाम से जाना जाने लगा। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने सांसारिक जीवन त्यागकर, तिरुवावुडुतुरै में एक पीपल के वृक्ष के नीचे तपस्या की। बाद में उन्होंने तिरुवावुडुतुरै के दक्षिण में एक मठ की स्थापना की और भगवान की आराधना की। उन्होंने सिद्ध भोगनाथ से अपना ज्ञान-उपदेश प्राप्त किया। अपनी तपस्या के कारण, उनका शरीर अत्यंत आकर्षक था। उन्होंने अनेक चमत्कारी सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। उन्होंने शैव और सिद्धांत में अन्वेषण तथा उनका प्रचार किया था। 

एक दिन जब वे काविरी नदी में स्नान करके भगवान के अभिषेक के लिए पवित्र जल, फूल और नैवेद्य लेकर लौट रहे थे, तो लोग एक शव को श्मशान में ला रहे थे। शव के कारण पूजा की सामग्री अपवित्र न हो जाए, इसके लिए उन्होंने उन सभी सामग्रियों को आकाश की ओर उछाल दिया और उन्हें वहीं रहने का आदेश दिया। साथ ही शव को श्मशान की ओर चलने का आदेश दिया। तद्पश्चात उन्होंने पूजा की सामग्री पुनः ले ली और भगवान की पूजा की। जब वे तिरुविलिमिललै में थे, तो उन्होंने मंदिर के रथ को बिना रस्सी के चला दिया! उनकी तपस्या के कारण उनके अद्भुत शरीर ने कई स्त्रियों को आकर्षित किया। उनके विषय में सोचने मात्र से, उन स्त्रियों ने ऐसे पुत्रों को जन्म दिया जो तिरुमालिगै देवर के समान दिखते थे। लोगों को इस महान योगी पर संदेह हुआ और उन्होंने राजा नरसिंहन से उनका अभियोग किया। राजा नरसिंह पल्लव सम्राट काडवरकोन कलरसिंहन (825ई.पू - 850ई.पू) के अधीन उस छोटे से राज्य पर शासन कर रहे थे। राजा नरसिंह ने तथ्यों का विश्लेषण किए बिना अपने सैनिकों को महान योगी को पकड़ने के लिए भेजा। लेकिन जब वे योगी के मठ से लौटे, तो वे सभी एक-दूसरे को पकड़ते हुए दिखाई दिए। क्रोधित होकर राजा अपनी सेना के साथ आये। राजा के उद्देश्य को समझते हुए संत ने गोमतीश्वर मंदिर की स्तंभों पर बैलों को जीवित कर दिया और राजा की सेना को भगा दिया! उन्होंने कई अन्य चमत्कार किए जैसे - शमशान में जलते हुए शवों से निकलने वाले दुर्गंध को सुगंध में परिवर्त्तित करना, सिद्ध कोंगनवर के कभी न सूखने वाले पात्र को सुखाना और शिव प्रसाद के रूप में प्राप्त उबले दाल (पयत्रनी चुंडल) से फसल उगाना!! उन्होंने तिल्लै चिदंबरम के नटराज पर तिरुविसैपा के चार पदिगम गाए हैं।

See Also:
1. सिद्ध करुवूर देवर
2. திருவிசைப்பா

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