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तिरुवालियमुदनार दिव्य चरित्र

तिरुवालियमुदनार उन नौ भक्तों में से एक हैं जिन्होंने नौवें तिरुमुरै - दिव्य तिरुविसैपा के पदिगम गाए हैं। उनकी रचनाएँ तिरुविसैपा के सातवें भाग में अंकित हैं। तिरुवालियमुदनार का जन्म मयिलै (चेन्नई में मयिलापुर) में एक वैष्णव ब्राह्मण के घर में हुआ था। सिरकाली के पूर्व में आली नाडु नामक एक छोटा सा राज्य था। उस राज्य की राजधानी तिरुवाली नगर थी। उस नगर में भगवान विष्णु का नाम अमुदनार है। चूंकि तिरुवालियमुदनार के माता-पिता इस देवता के भक्त थे, इसलिए उन्होंने उनका नाम यह रखा। यद्यपि उनका परिवार एक वैष्णव परिवार था, किन्तु उन्होंने भगवान शिव को ही अपना आराध्य माना। उन्होंने नियमित रूप से तिल्लै (चिदम्बरम) के भगवान की पूजा की। इन साहसी भक्त ने समय का मूल्य अनुभव किया और इसे तिल्लै के नटराज की पूजा के आनंद में व्यतीत किया। 

उन्होंने भगवान नटराज पर कई गीतों की रचना की है। उनमें उन्होंने सवयं को "मयिलयर मन्नवन", "मयिलै मरैवल आली" कहा है। (कुछ लोग कहते हैं कि यह मयिलै मयिलाडुतुरै की ओर संकेत करता है)। शिलालेखों में तंजै मंदिर में भगवान की सेवा के लिए समर्पित स्त्रियों को सूची में "एडुत पादम", "मललै सिलम्बु" जैसे नाम हैं जो तिरुवालियमुदनार के तीसरे पदिगम के पांचवें गीत में प्राप्त होते है। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि उनका समयकाल राजा राजराज से पूर्व था (985 ई.पू से पूर्व)। उनके द्वारा रचित तिरुविसैपा में चार पदिगम हैं जो सभी तिलै के भगवान की प्रशंसा करते हैं। 

See Also:
1. திருவிசைப்பா

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