ऐसे ही अर्धनारीश्वर की सेवा में पृथ्वी पर अपने दिन बिता रहे युवक तम्पिरान तोलर को अपने मित्र चेरमान पेरुमाल के प्रेम और भक्ति का स्मरण हुआ। अपने आध्यात्मिक सखा को देखने के लिए उन्होंने तिरुवारूर से प्रस्थान किया। पर्वतीय केरल के मार्ग में, उन्होंने कोंगु भूमि को पार किया। तिरुपुकोलियूर नगर में उन्हे उल्लास और विलाप की ध्वनियाँ एक साथ सुनाई दी जो एक दूसरे के सम्मुख दो घरों से आ रहीं थीं। नगर के लोगों ने उन्हें बताया कि दोनों घरों में ध्वनि दो पांच वर्ष के बालकों के कारण थी। एक घर में, उनके बालक का उस दिन उपनयन था। दूसरा घर में कुछ वर्ष पूर्व मगरमच्छ का आहार बने बालक के स्मृति-दिवस पर उनका परिवार रो रहा था। सुंदरर का कोमल हृदय तुरंत द्रवीभूत हो गया। ईश्वरीय कृपा से उनके दुख को मिटाने के लिए दृढ़ संकल्प लेकर, उन्होंने उस जलाशय, जहाँ वह बालक लुप्त हुआ था, पर अविनाशी के भगवान की स्तुति करते हुए देवारम गाया। प्रभु की कृपा से एक चमत्कार हुआ। मगरमच्छ प्रकट हुआ और उससे वह बालक भी निकला। जिस आयु में वह लुप्त हुआ, उससे बड़ा होकर वह एक सात वर्ष के बालक की अवस्था में बाहर आया! हर्षोल्लासित माँ अपने पुत्र को आलिंगन करने के लिए दौड़ी। माता-पिता ने सुंदरर पेरुमान को आभार सहित प्रणाम किया और सुंदरर ने अपने शिव को प्रणाम किया।
मार्ग में पश्चिम की ओर स्थित विभिन्न तीर्थस्थलों पर परमपिता के चरणों में आनंद पाते हुए, तम्पिरान तोलर चेर राज्य में पहुँचे। अपने प्रिय मित्र के आगमन का समाचार सुनकर, प्रसन्न, सम्राट पेरुमाकोदैयार उनका स्वागत करने के लिए राज्य सीमा पर पहुँचे। उस अद्वितीय परमेश्वर के दो महान भक्तों ने एक दूसरे को प्रणाम किया और आलिंगन किया। नायनार के शीर्ष पर श्वेत छत्र धर कर, राजा उन्हें हाथी पर बिठाकर राजमहल ले गए। तम्पिरान तोलर ने चेर भूमि के संत शासक की सेवाएँ स्वीकार कीं और वहीं रहकर चेर भूमि में भस्म विभूत भगवान के अद्भुत मंदिरों के दर्शन किए।
एक दिन जब चेरर भगवान की पूजा में लीन थे, सुंदर मूर्ति नायनार ने तिरुवंचैकलम में भगवान के मंदिर में प्रवेश किया। पुन: पुनः भक्ति में नमन करते हुए, शिव के प्रतिभाशाली सेवक ने इस संसार के बंधनों से मुक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से आनंदमय "तलैक्कु तलै मालै" गाया। भगवान ने उन्हें कैलाश में अपनी सेवा में पुनः लाने के लिए अपने गणों को एक श्वेत हाथी के साथ भेजा। तम्पिरान तोलर सहस्र नामों वाले महादेव का आभार प्रकट करते हुए हाथी पर चढ़ गए। उन्हे चेर राजा के साथ अपनी मित्रता का स्मरण हुआ। राजा ने तुरंत यह अनुभव किया, समीप एक अश्व पर सवार होकर वे तिरुवंचैकलम की ओर दौड़े और देखा कि नायनार श्वेत हाथी पर सवार होकर आकाश के मार्ग से कैलाश की ओर जा रहे थें। वे रुके नहीं, प्रभु के दिव्य पंचाक्षर को अश्व के कानों में कहते ही अश्व हाथी के पीछे आकाश में उड़ने लगा। उनका अश्व सुन्दरर के हाथी के निकट पहुंचा, परिक्रमा करते हुए वे उनके साथ उस परम पवित्र धाम की ओर चले।
मार्ग में धन्य सुन्दरर ने भगवान की अपार कृपा की स्तुति करते हुए "तानेनै मुन्पडैतान" देवारम गाया। पर्वत के दक्षिणी द्वार पर पहुँचकर चेरर और सुन्दरर नीचे उतरे। अपने मन को परमेश्वर पर केंद्रित करके दोनों उनके धाम की ओर चल पड़ें। उस अलौकिक धाम के द्वार पर चेरर को द्वारपालों ने रोक दिया, जबकि सुंदरर को भीतर जाने दिया। जैसे बहुत दिनों के वियोग के पश्चात बछड़ा गाय की ओर दौड़ता है, वैसे ही सुन्दरर भगवान को प्रणाम करते हुए उनके समीप दौड़े। शुद्ध हृदय आरूरर ने अपने लिए सबसे उत्तम परमानंद प्राप्त करने के पश्चात भी भगवान को संकेत दिया कि चेर राजा अभी भी बाहर ही थे। भगवान ने उन्हे भी अपने धाम में प्रवेश करने की अनुमति देने का आदेश दिया। निश्चय ही, अच्छे लोगों की संगति से अच्छाई ही मिलती है! महान भक्त चेरमान, जिसे ऐसा अद्भुत मित्र प्राप्त हुआ था, "तिरु कैयिलया न्याना उला" में प्रभु की स्तुति करते हुए उनके चरणों की ओर दौड़े। सुंदरर शिव की सेवा में पुनः आलाल सुंदरर बन गए। वे और चेरमान भगवान के दिव्य निवास पर उनकी सेवा गणों के प्रमुख बन गए। देवी के आशीर्वाद से परवैयार और संगीलियार, कमलिनीयार और अनिन्दिदैयार का रूप पुनः प्राप्त कर के उनकी सेवा करने लगे। समुद्र के राजा ने तिरुवंचैकलम में संसार के समक्ष वह पतिगम लाया जिसे सुंदरर ने कैलाश जाते समय गाया था। महा शास्ता ने तिरुपिडवूर में चेरर द्वारा गाए गए उला को जगत के समक्ष लाया। भगवान शिव को अपने हृदय में धारण करने वाले भक्तों की महिमा संसार में व्याप्त हो! भगवान शिव के प्रति सुंदरर का उत्तम प्रेम हमारे मन में बना रहे।
गुरु पूजा : आडि / स्वाती या कर्क / स्वाती
हर हर महादेव
63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र