पुरुषोत्तम नम्बि उन नौ भक्तों में से एक हैं जिन्होंने नौवें तिरुमुरै - दिव्य तिरुविसैपा के पदिगम गाए हैं। उनकी रचनाएँ तिरुविसैपा के आठवें भाग में अंकित हैं। पुरुषोत्तम भगवान विष्णु के नामों में से एक है। इसलिए, प्राय: वे एक वैष्णव परिवार से थे। उन्होंने स्वयं को "मासिल मरैपल ओदुनावन वण पुरुदोत्तमन" (निर्मल वेदों का जप करने वाला) कहा है। उन्होंने अपने भीतर भगवान शिव के लिये अथाह भक्ति विकसित की। ऐसा कहा जाता है कि वे बड़े विद्वान और अत्यधिक कुशल थे। वे तिल्लै (चिदम्बरम) में रहते थे और उस नगर के मंदिर में नटराज की पूजा करते थे। उनके जीवन के विषय में अधिक विवरण उपलब्ध नहीं हैं। कुछ लोग कहते हैं कि वह ११वीं शताब्दी ईस्वी में रहते थे। तिल्लै के महान भगवान पर उनके द्वारा गाए गए दो पदिकम हैं, जो तिरुविसैपा का भाग हैं।
See Also:
1. திருவிசைப்பா