कण्डरादित्य चोल देवर उन नौ भक्तों में से एक हैं जिन्होंने नौवें तिरुमुरै - दिव्य तिरुविसैपा के पदिगम गाए हैं। उनकी रचना तिरुविसैपा के चौते भाग में अंकित हैं। कण्डरादित्यर चोल साम्राज्य के राजा थे। उन्होंने 950ई.पू. - 957ई.पू. के बीच साम्राज्य पर शासन किया। वे अपने पिता परान्तक १ के पश्चात सिंहासन पर बैठे। परान्तक १ ने तिरुचित्रम्बलम (तिल्लै चिदम्बरम) की छत को सोने से बनाकर भगवान की सेवा की थी। राजा कण्डरादित्यर साम्राज्य को नैतिक और आध्यात्मिक रूप से उच्च स्तर पर ले गए। वे तमिल साहित्य के विशेषज्ञ और महान संगीतकार थे। उन्होंने अपना हृदय भगवान नटराज को समर्पित कर दिया था। इन राजसी भक्त ने साम्राज्य में शैव धर्म का पोषण किया। उन्होंने भगवान के मंदिरों का निर्माण और विकास करके भगवान की सेवा करने के अतिरिक्त, सुंदर तमिल में उनकी स्तुति की रचना की। यह स्पष्ट है कि उन्होंने मूवर (संबंधर, अप्पर और सुंदरर) द्वारा गाए गए देवारम में बहुत रुचि ली। एक शिलालेख में इन राजा को "शिव ज्ञान कण्डरादित्यर" कहा गया है।
शैव धर्म का पालन करते हुए राजा ने वैष्णव धर्म और अन्य धर्मों का भी पोषण किया। उन्होंने भगवान विष्णु के लिए कण्डरादित्य विन्नगरम नामक एक मंदिर बनवाया। वे तिलै और तिरुवारूर में नियमित रूप से भगवान की पूजा करते थे। उनकी पत्नी, रानी, सेम्बियन मादेवियार भी भगवान की प्रसिद्ध और सम्मानित भक्त थीं। उन्होंने भगवान शिव के कई मंदिरों के विकास एवं उनके शिला से पुनर निर्माण के लिए दान दिया। इनमें प्रमुख हैं कोनेरीराजपुरम और तिरुवक्करै। उन्होंने सम्राट राजराज का पालन-पोषण किया, जिन्होंने उत्तर काल में हिंद महासागर के पार शैव धर्म का प्रचार किया। एक शिलालेख में कण्डरादित्यर को "मर्केलुन्दरुलिय देवर" कहा गया है, जिसके विषय में यह माना जाता है कि उन्होंने सिंहासन का त्याग कर भारत के पश्चिमी भाग की ओर प्रस्थान किया। उनकी रचनाओं का अब केवल एक पदिगम ही उपलब्ध है। यह तिलै के सुंदर भगवान पर रचित है।
तिरुचिरापल्ली के निकट, कोल्लिडम के उत्तरी तट पर कण्डरादित्य चतुर्वेदी मंगलम है। दक्षिण अर्काट उलगापुरम में कण्डरादित्य पेरेरी (भव्य झील) है।
हर हर महादेव
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